5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को लागू कर जम्मू और कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत मिलने वाले विशेष राज्य के दर्जे को छीन लिया। विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया और 31 अक्टूबर से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बन गए। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और महबुबा मुफ्ती समेत कई अन्य नेताओं को घर मेंcकर दिया गया था और वे अब भी नजरबंद हैं।
फारूक अब्दुल्ला की 84 वर्षीय बड़ी बहन खालिदा शाह, छोटे भाई शेख मुस्तफा कमाल और भतीजे मुजफ्फर अहमद शाह को गुरुवार को तीन महीने में पहली बार अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति दी गई थी। लेकिन शाम होते ही उन्हें फिर से हिरासत में ले लिया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक ये दावा उनके परिवार ने किया है।
अब्दुल्ला के परिवार के तीनों सदस्यों को रिहा किए जाने या फिर से नजरबंद किए जाने के बारे में प्रशासन ने अबतक कोई बयान जारी नहीं किया है। मुजफ्फर अहमद शाह ने टीओआई को बताया था कि उन्हें और उनकी मां को “मौखिक रूप से” रिहा कर दिया गया है। हमें सुरक्षा गार्डों द्वारा सूचित किया गया था कि हम बाहर जाने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन हमें किसी भी रैली या मीडिया ब्रीफिंग में भाग लेने के माना किया था।
मुज़फ़्फ़र के अनुसार, उनकी माँ और चाचा अपनी चाची से मिलने के लिए पास के गुप्कर रोड पर गए थे, जब उन्हें फिर नजरबंद कर दिया गया। फारुक भी गुप्कर रोड के पड़ोस में रहता है। आधिकारिक तौर पर, फारूक की बहन, छोटे भाई और भतीजे की नज़रबंदी के बारे में पुष्टि नहीं की गई है। बता दें 5 अगस्त के बाद से सरकार ने यहां मोबाइल फोन, इंटरनेट और लैंडलाइन सेवाओं पर रोक लगा राखी है। एक महीने के बाद लैंडलाइन और मोबाइल फोन कनेक्टिविटी बहाल हो गई थी, लेकिन 102 दिनों के बाद भी ब्रॉडबैंड और इंटरनेट सेवाएं अब भी निलंबित हैं।

