कविता जोशी

शून्य से नीचे तापमान के साथ जानलेवा होती ठंड के बीच सेना जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैले साढ़े तीन हजार किलोमीटर फैली सीमा के सुदूर ऊंचाई वाले इलाकों में पूरी मजबूती के साथ दुश्मन की किसी भी चुनौती का मुकाबला करने के लिए डटी हुई है। मौजूदा विवाद की स्थिति में सेना की सीमा के सुदूर इलाकों में ठंंड में बनी हुई यह चौथी नियमित तैनाती है, जिसे और अधिक चाक-चौबंद बनाने के लिए बल की तरफ से सभी जरूरी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। इन इलाकों में पड़ने वाली अत्यधिक सर्दी की वजह से आवाजाही के सामान्य मार्गाें के बंद हो जाने की वजह से सेना की तरफ से यह पूरी कवायद की गई है।

रक्षा सूत्रों ने बताया कि सर्दियों के मद्देनजर ऊंचाई वाले सीमा के पर्वतीय इलाकों में फौज की पांच से छह महीने की सैन्य तैनाती को सुगम बनाने के लिए गोला बारूद, सैन्य उपकरणों व हथियारों के लिए ईंधन, जवानों के लिए राशन, सर्दियों के कपड़े, जूते, टेंट, गश्त से जुड़ा सामान, चिकित्सा सुविधा और अस्थायी हेलीपैड की व्यवस्था कर दी गई है। इसके अलावा सुदूर सैन्य चौकियों के करीब स्थित सैन्य केंद्रों पर आपात परिस्थिति में एलएसी के किसी भी इलाके में सेना की अतिरिक्त टुकड़ियों की तैनाती के लिए भी जरूरी सैन्य-असैन्य सामग्री का स्टाक पहुंचा दिया गया है।

सर्दियों से प्रभावित होतीं हैं तीन सौ चौकियां : सूत्रों ने बताया कि जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल-प्रदेश तक फैले एलएसी के सुदूर ऊंचाई वाले इलाकों में सर्दियों के मौसम में प्रभावित होने वाली सैन्य चौकियों की अनुमानित संख्या तीन सौ है। इसमें जम्मू कश्मीर स्थित सेना की उत्तरी कमान के इलाके में पड़ने वाली तीन सैन्य कोर (14, 15 और 16 वीं कोर) के तहत दो सौ चौकियां आती हैं। इसके अलावा पूर्वोत्तर भाग में 70 सैन्य चौकियां शामिल हैं।

सीमा के चप्पे-चप्पे पर रहेगी नजर : सीमा के साढ़े तीन हजार किलोमीटर के इलाके में सर्दी में तैनाती को पुख्ता बनाने के पीछे सेना का मकसद पूर्वी लद्दाख में मौजूदा समय में जारी विवाद के बीच दुश्मन के हौसलों को पूरी तरह से पस्त करना है। मालूम है कि विवाद के बीच वर्ष 2022 के अंत में भारत और चीन की सेना के बीच अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के यांग्त्से में एक हिंसक सैन्य झड़प देखने को मिली थी।

इसमें दोनों देशों के जवानों को कुछ चोटें आईं थीं। हालांकि भारतीय सेना ने अपनी सक्रिय तैनाती की वजह से चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के इस कुटिल प्रयास को तुरंत विफल कर दिया था। जबकि 2020 में पूर्वी लद्दाख में शुरू दोनों देशों की सेनाओं के बीच गलवान घाटी में हुई खूनी झड़प में भारत के 20 और चीन के भी 24 से ज्यादा जवान मारे गए थे। विवाद समाप्ति को लेकर कई दौर की सैन्य वार्ता के बाद भी अब तक इस समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं निकला है।

ईंधन, राशन और कपड़ों की विशेषता : सूत्रों ने बताया कि सीमा के बेहद सर्द इलाकों में सैन्य उपकरणों जैसे गाड़ियों, टैंकों और तोपों में प्रयोग किया जाना वाला ईंधन आमतौर पर जम जाता है। लेकिन सेना द्वारा उसे प्रयोग करने लायक बनाए रखने के लिए ऐसी सभी पोस्ट पर फ्यूल फार वार्मिंग एंड ड्राइंग (एफएफडब्लूडी) की व्यवस्था कर दी गई है। इसमें एक रसायन का इस्तेमाल किया जाता है जो कि कड़कड़ाती सर्दी के बीच ईंधन को जमने से बचाता है। साथ ही जवानों की चौकी को गर्म रखने के लिए हीटर और केरोसिन की व्यवस्था कर दी गई है। इसके अलावा जवानों के लिए सर्दियों के कपड़ों की पर्याप्त व्यवस्था है।