Bombay High Court News: बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा खंडपीठ द्वारा 25 सितंबर को सार्वजनिक रूप से अपलोड किए गए फैसले में इंजीनियर्स कोर के लेफ्टिनेंट कर्नल उमेश कनाडिकर और लेफ्टिनेंट कर्नल गुरिंदर सिंह उप्पल पर मुकदमा चलाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 के तहत दी गई अभियोजन स्वीकृति को रद्द कर दिया है।
सेना के दोनों लेफ्टिनेंस कर्नलों पर उन पर कुछ नागरिकों के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 304A (लापरवाही से मौत) के तहत गोवा की एक आपराधिक अदालत में मुकदमा चलाया जाना था।
किस मामले में हुआ था कर्नलों पर केस?
अपने अभियोजन को चुनौती देने वाले दोनों अधिकारियों द्वारा दायर रिट याचिकाएं 6 अप्रैल, 2017 की एक घटना की वजह से हुई थी, क्योंकि लेफ्टिनेंट कर्नल नरेंद्र आर. तारलकर और सर्जन लेफ्टिनेंट कमांडर तृष्णा तारलकर का साढ़े चार साल का बेटा, गोवा में नौसेना अधिकारियों के आवास में नवनिर्मित मैरिड एकोमोडेशन प्रोजेक्ट-II की 6वीं मंजिल से गिर गया था।
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इस घटना के चलते गोवा नौसेना क्षेत्र के मुख्यालय द्वारा एनकेजी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड नई दिल्ली के अध्यक्ष नरेश कुमार गर्ग और प्रबंध निदेशक प्रदीप कुमार गर्ग के खिलाफ वास्को पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया। दोनों ही सेना के जवानों पर इमारत के निर्माण के दौरान उचित देखभाल और सुरक्षा उपाय न करने का आरोप लगाया गया था। इसके कारण छठी मंजिल से गिरकर नाबालिग लड़के की मौत हो गई। साथ ही, खिड़की की ग्रिल भी दीवार पर ठीक से नहीं लगाई गई थी।
डिप्टी नेवल प्रोवेस्ट मार्शल ने किया था मुकदमा
इस मामले में गोवा नौसेना क्षेत्र मुख्यालय के डिप्टी नेवल प्रोवोस्ट मार्शल, कमांडर स्टर्ली जॉर्ज द्वारा दायर एक शिकायत में, एनकेजी इंफ्रास्ट्रक्चर के पदाधिकारियों और आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए के तहत मामला दर्ज किया गया था। जांच के दौरान तीन और लोगों को आरोपी बनाया गया और जाँच पूरी होने पर, आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिस पर सुनवाई लंबित है।
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खत्म हुआ कोर्ट मार्शल
इस बीच दोनों सैन्य अधिकारियों पर सेना अधिनियम की धारा 69 और भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए के तहत जनरल कोर्ट मार्शल (जीसीएम) द्वारा मुकदमा चलाया गया। दोनों अधिकारियों के संबंध में सेना नियम 51 के तहत उठाई गई ‘अधिकार क्षेत्र की दलील’ को जीसीएम द्वारा स्वीकार किए जाने पर कोर्ट मार्शल समाप्त हुआ।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए दोनों अधिकारियों के वकील, ब्रिगेडियर जनेश खेड़ा (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सेना नियमों के प्रावधानों के अनुसार अधिकारियों को एक और कोर्ट मार्शल बुलाने की अनुमति थी, जो इस मामले में नहीं किया जा सका क्योंकि मुकदमा एक निश्चित समय सीमा के कारण स्थगित हो गया था। बाद में, रक्षा मंत्रालय ने सीआरपीसी की धारा 197 के तहत दोनों सैन्य अधिकारियों पर एक आपराधिक अदालत में मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी।
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