राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ में कहा गया है कि अगर दलितों के पास हथियार होते तो देश पर कभी विदेशियों का राज नहीं होता। डॉ. भीमराव अंबेडकर पर लिखी गई कवर स्‍टोरी में इस बात का जिक्र किया गया है। ‘ऑर्गेनाइजर’ के ताजा अंक में छपे इस लेख में अंबेडकर के बयान को उदधृत करते हुए लिखा गया है,’ यदि अछूतों को हथियारों से दूर न रखा जाता तो इस देश पर कभी विदेशियों का शासन नहीं होता।’

इस लेख के अनुसार अंबेडकर का मानना था कि भारतीय समुदाय का बड़ा हिस्‍सा जैसे दलितों के पास हथियार नहीं थे और उन्‍हें लड़ने की अनुमति थी। इसके चलते भारत पर मुस्लिम और अन्‍य विदेशी आक्रमण सफल रहे। लेख में अंबेडकर की भी काफी तारीफ की गई। बता दें कि 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती मनाई जाएगी। लगभग साल भर से केंद्र की एनडीए सरकार अंबेडकर को खुद से जोड़ने के लिए काफी प्रयास कर रही है। इस बार अंबेडकर जयंती संयुक्‍त राष्‍ट्र में भी मनाई जाएगी।

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‘ऑर्गेनाइजर’ के लेख में भारतीय समुदाय और दलितों के उत्‍थान के लिए अंबेडकर की लड़ाई का भी विस्‍तार से वर्णन किया गया है। इसमें कहा गया है कि अंबेडकर के विशेष योगदान के चलते भारत में राष्‍ट्रवाद और लोकतंत्र को नई दिशा मिली। उन्‍होंने इस बात पर जोर दिया कि जब तक समाज के दबे हुए वर्ग को नहीं उठाया जाएगा तब तक देश की प्रगति भी नहीं होगी। लेख में साथ ही कहा गया कि बंटवारे के लिए जिम्‍मेदार कुछ लोग अंबेडकर से जुड़ने के लिए पापपूर्ण कदम उठा रहे हैं।

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इसमें कहा गया है,’बाबासाहेब के आने से पहले तक अछूतों को भी नहीं पता था कि छुआछूत पाप है। उन्‍होंने आम आदमी को जगाया। हमारा देश मुस्लिम आक्रमणों से पीडि़त था। 1920 से पहले तक कोई भी समाज के निचले तबके को राष्‍ट्र निर्माण से नहीं जोड़ना चाहता था। परिस्थितियां बदली हैं। अब वंचित वर्ग का भी व्‍यक्ति राष्‍ट्रपति, राज्‍यपाल और मंत्री बन सकता है।’ लेख में इशारा किया गया है कि अंबेडकर ने कई बार सामाजिक दासता का सामना किया। उन्‍होंने एक बार महात्‍मा गांधी से भी कहा था कि उनकी कोई मातृभूमि नहीं है। 1935 में उन्‍होंने एलान किया था,’ मैं हिंदू के रूप में जन्‍मा हूं लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं।’ उनके इस बयान को सही संदर्भ में समझे जाने की जरूरत है। लेख के अनुसार उन्‍होंने यूरोपियन इतिहासकारों के अलग अलग जातियों को अलग वंश मानने की धारणा को अस्‍वीकार किया था। अंबेडकर का कहना था, ‘हम एक ही संस्‍कृति के धागे से बंधे हुए हैं।’