गुर कृपाल सिंह अश्क
शहादत एक बहुत महान रुतबे का नाम है। सिख धर्म के पांचवे गुरु अर्जन देव जी को शहीदों का सरताज कहा जाता है। उन्हीं से सिख धर्म में शहादतों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसकी लड़ी फिर बहुत लंबी होती गई। इसमें स्थान पाने वाले कभी भी अन्याय के सामने नहीं झुके और हमेशा सत्य के मार्ग पर चले।

गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को अपने ननिहाल गोइंदवाल में गुरु अमरदास जी की बेटी बीबी भानी की कोख से हुआ था। उनके पिता गुरु अमरदास जी गुरु गद्दी के तीसरे वारिस थे। बालपन में एक दिन खेलते हुए वह गुरु अमरदास जी की चारपाई के पास चले गए और खड़े होने का प्रयास करने लगे तो गुरु जी ने पूछा कि कौन है?, तो बीबी भानी ने कहा, ‘आप का दोहता’। इस पर गुरु के मुखारविंद से निकल गया ‘दोहिता, बानी का बोहिथा’ और यह बात सही साबित हुई। गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शाहकार रचना सुखमनी साहिब के अलावा बावन अखरी, बारामाहा (राग माझ) के अलावा राग गाउडी, गुजरी, रामकली, जैतसरी, मारु और बसंत रागों में 7 वारें (काव्यरूप) दीं। उन के 2218 शब्द गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं।

गुरु अर्जन देव जी के महान कार्यो में से एक प्रमुख कार्य गुरु ग्रंथ साहब जी की ‘आदि बीड़’ का संपादन है। गुरु अमर दास जी ने 1570 से 1572 के दो वर्षों में अपने पौत्र बाबा मोहन के बेटे सहंसर राम से, अब तक रची गई बाणी को दो सैंचियों (पुस्तकों) में पूरा करया था जिन्हें गोइंदवाल वाली सैंचियां कहा जाता है। इन में गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमर दास जी भक्त कबीर, नामदेव, त्रेलोचन, सैन, रविदास और जयदेव जी की बाणी 14 रागों में संकलित है।

ये पोथियां गुरु अमर दास जी के बेटे बाबा मोहरी जी के पास थीं। गुरु अर्जन देव जी ने इन्हें प्राप्त कर के इस में गुरु राम दास जी की बाणी, अपनी और दूसरे भक्तों की बाणी को इकट्ठा करवा भाई गुरदास से एक बीड़ बनवाई जिसे आदि ग्रंथ कहा जाता है। गुरु जी को रागों और रागनियां के बारे में भरपूर ज्ञान था। गुरु ग्रन्थ साहिब में बाणी को प्रसंग, विषयों और रागों के तहत दर्ज किया। एक और काम जो गुरु जी ने किया वह पंजाबी शब्द-जोड़ है जिसे उन्होंने एकरूपता प्रदान की। इस तरह वे आदि गुरु ग्रंथ साहिब के पहले संपादक थे।

जब मुगल बादशाह जहांगीर आगरा में तख्त पर बैठा तो उसके बेटे खुसरो ने बगावत कर दी और गुरु जी के पास तरन तारन पहुंच गया जहां गुरु जी एक ताल का निर्माण करवा रहे थे। गुरु जी ने उसूलों के मुताबिक शरण में आए खुसरो की सहायता की जिस से जहांगीर उन का दुश्मन बन गया। उस के एक उच्चधिकारी चंदू को, जो पहले ही अपनी बेटी का रिश्ता उन के बेटे हरगोबिंद जी से न होने के कारण गुरु जी के विरुद्ध था, बदला लेने का मौका मिल गया।

उस ने जहांगीर को भड़काया कि आदि बीड़ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है। जहांगीर ने पंजाब आ कर पड़ताल करवाई। जब इल्जाम गलत पाए गए तो उस ने अपने मुताबिक गुरु जी से कुछ लिखवाना चाहा। इनकार करने पर 2 लाख रुपए जुर्माना लगाया गया। जुर्माना न देने के कारण, गुरु जी को कैदी बना कर चंदू को सौंप दिया गया। यही तो वह चाहता था। पांच दिन तक गुरु जी को गर्म तवा पर बैठा कर उनके सिर पर गर्म रेत डाली गई। खौलते हुए गरम पानी में बैठाया गया। एक दिन गुरु जी सिपाहियों की निगरानी में रावी में स्नान करने गए तो अपने बेटे हरगोबिन्द जी को गुरु गद्दी संभाल कर इस दुनिया से विदा हो गए। यह घटना 30 मई 1606 की है।

गुरु अर्जन देव जी ने सिखों में दस्वंध (अपनी कमाई का दसवां हिस्सा) निकालने की परंपरा शुरू की ताकि लंगर और दूसरे सभी धार्मिक व सामाजिक काम चलाए जा सकें। विभिन्न केंद्रों पर अपने प्रतिनिधि जिन्हें मसंद कहा जाता था, नियुक्त किए। वर्ष 1588 में संतोखसर सरोवर को पक्का करवाया।

इसी वर्ष संत मीयां मीर को बुला कर गुरु के चक्क (अमृतसर) में दरबार साहिब का निर्माण करवाया। 1590 में तरन तारन के सरोवर को पक्का करवाया और 1594 में करतारपुर साहिब नगर की स्थापना की। 1604 में उन्होंने पहली बार आदि श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश दरबार साहिब में करवाया और बाबा बूढ़ा जी को पहले ग्रंथी की सेवा सौंपी।