रामानुज पाठक

पशुजन्य संक्रमण मनुष्य में जानवरों द्वारा जीवाणु, विषाणु या परजीवी आदि के माध्यम से फैलता है। एचआइवी-एड्स, इबोला, मलेरिया, रेबीज तथा कोरोना वायरस, स्केबीज, ब्रूसेलोसिस, स्वाइन फ्लू, डेंगू, बर्ड फ्लू, निपाह, ग्लैंडर्स साल्मोनेलोसिस, मंकी फीवर, मंकी पाक्स, प्लाक, हेपेटाइटिस ई, पैरटफीवर, ट्यूबरक्यूलोसिस (तपेदिक), जीका विषाणु, सार्स रोग आदि पशुजनित संक्रमण के कारण फैलने वाले रोग हैं।

कुछ समय पूर्व ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) तथा ‘अंतरराष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान’ (आइएलआरआइ) द्वारा कोविड-19 महामारी के संदर्भ में ‘प्रिवेंटिंग द नेक्स्ट पेंडेमिक: जूनोटिक डिजीज एंड हाउ टू ब्रेक द चेन आफ ट्रांसमिशन’ नामक रपट प्रकाशित की गई। इसमें मनुष्यों में होने वाली पशुजन्य बीमारियों की प्रकृति और प्रभाव पर चर्चा है। रपट के अनुसार, मनुष्यों में फैलने वाले 60 फीसद पशुजन्य रोग ज्ञात हैं तथा 70 फीसद पशुजन्य रोग ऐसे हैं, जो अभी ज्ञात नहीं हैं।

बहुत तेजी से बढ़ रही हैं पशुजन्य बीमारियां

‘स्टेट आफ द वर्ल्ड फारेस्ट’ रपट 2022 में भारत और चीन के नए पशुजन्य संक्रामक रोगों के लिए सबसे बड़े ‘हाटस्पाट’ (चिह्नित स्थल) के रूप में उभरने का उल्लेख किया गया है। विश्व में हर वर्ष निम्न-मध्यम आय वाले देशों में दस लाख लोग पशुजन्य रोगों के कारण मर जाते हैं। पशुजन्य बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। फिलहाल दो सौ से अधिक ज्ञात पशुजन्य रोग हैं। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि 2050 तक, इस तरह के संक्रमण से कोविड से 2020 में हुई मौतों की संख्या की तुलना में बारह गुना अधिक मौतें हो सकती हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक वैश्विक स्वास्थ्य अध्ययन में कहा गया है कि जानवरों से मनुष्यों में रोगों का संचरण अधिकांश मृत्यु का ‘आधुनिक कारण’ रहा है। इस अध्ययन में साठ साल के ऐतिहासिक महामारी विज्ञान के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है विषाणु

शोधकर्ताओं ने 3,150 कोशिकाओं और अनेक महामारियों पर गौर किया है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के दौरान विषाणुओं के चार समूहों पर ध्यान केंद्रित किया, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करने की क्षमता रखते थे। इनमें खतरनाक विषाणु समूह के अंतर्गत फिलो विषाणु (इबोला, मारवाड़), सार्स कोरोना विषाणु 1, निपाह विषाणु और माचुपी विषाणु शामिल हैं।

वैश्विक स्तर पर संक्रमण रोकने के लिए आवश्यक तैयारियों के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है, लेकिन ऐतिहासिक रुझान बताते हैं कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिए बढ़ते खतरे से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। पिछले दो दशकों में पशुजन्य रोगों के कारण कोविड की लागत के अलावा सौ अरब डालर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ है। इसके अगले कुछ वर्षों में नौ खरब डालर तक पहुंचने का आकलन है।

रपट के अनुसार, अगर पशुजनित बीमारियों की रोकथाम के प्रयास नहीं किए गए तो कोविड-19 जैसी अन्य महामारियों का आगे भी सामना करना पड़ सकता है। अमेरिकी और ब्रिटिश शोधकर्ताओं द्वारा एड्स के लिए जिम्मेदार विषाणुओं के पूर्वजों की पहचान कर ली गई है। इसे अफ्रीका के बंदरों में मौजूद विषाणुओं में पाया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार विषाणु चिंपांजी में शायद उस समय प्रवेश कर गए, जब उसने बंदर के दूषित मांस का भक्षण कर लिया था।

उल्लेखनीय है कि पहले के अध्ययनों में बताया गया था कि एचआइवी विषाणु सिमियन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस (एसआइवी) से पैदा हुआ था, जो चिंपांजी में पाया जाता है। शोधकर्ताओं ने अफ्रीका के बंदरों में मौजूद एचआइवी की बहुत-सी नस्लों की आनुवंशिक स्वरूप का अध्ययन किया था। अंतत: वे इसी निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि उनमें से केवल दो नस्लें इस प्रकार के एचआइवी के लिए जिम्मेदार हैं, जो अफ्रीका के चिंपांजियों में पाए जाते हैं। यानी एड्स पशुजनित रोग ही है।

विश्व में प्रतिदिन बीस हजार से अधिक लोग एड्स के शिकार होते हैं और बारह हजार से अधिक लोगों की मौत इस बीमारी से हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के काहिरा स्थित क्षेत्रीय प्रतिनिधि के अनुसार 90 फीसद एड्स प्रभावित लोग विकासशील देशों के हैं। अब तक 2 करोड़ 50 लाख से अधिक मौतें एड्स से हो चुकी हैं। विश्व में एड्स मरीजों की संख्या छह करोड़ से भी अधिक है। इनमें से दस लाख से अधिक लोग अरब देशों से हैं, और सर्वाधिक सूडान के हैं।

सिंगापुर में संयुक्त राष्ट्र के एड्स विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि दुनिया के दो सर्वाधिक घनी आबादी वाले देशों- चीन और भारत में एड्स भयावह रूप ले चुका है। ‘सेंटर फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ (सीडीसी) की निदेशक की मानें, तो एशिया महाद्वीप के कंबोडिया में एड्स की बीमारी विस्फोटक रूप ले चुकी है। इसी तरह वैश्विक स्तर पर कुत्तों के काटने से होने वाली कुल मौतों में से अकेले 36 फीसद रेबीज से होती हैं। भारत में लगभग बीस हजार लोग हर साल रेबीज के कारण मर जाते हैं।

रपट में पशुजन्य रोगों में वृद्धि के लिए सात कारकों को चिह्नित किया गया है। पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग, गहन और अस्थिर खेती में वृद्धि, वन्यजीवों का बढ़ता उपयोग और शोषण, प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर उपयोग, यात्रा और परिवहन, खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव और जलवायु परिवर्तन। फिलवक्त आवारा पशु ही पशु जन्य बीमारियों के सबसे बड़े कारक हैं। इस रपट में दस ऐसे तरीके बताए गए हैं, जो भविष्य में पशुजनित संक्रमण को रोकने में सहायक हो सकते हैं। वे हैं- ‘स्वास्थ्य पहल’ पर बहुविषयक/ अंतर्विषयक तरीकों से निवेश पर जोर देना।

पशुजन्य संक्रमण/ बीमारियों पर वैज्ञानिक खोज को बढ़ावा देना, पशुजनित बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने पर बल, बीमारियों के संदर्भ में जवाबी कार्रवाई के लागत-लाभ विश्लेषण को बेहतर बनाना और समाज पर बीमारियों के फैलाव का विश्लेषण करना। पशुजनित बीमारियों की निगरानी और नियामक तरीकों को मजबूत बनाना, भूमि प्रबंधन स्थायित्व को प्रोत्साहन देना तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए वैकल्पिक उपायों को विकसित करना, ताकि आवास स्थलों और जैवविविधिता का संरक्षण किया जा सके। जैव सुरक्षा और नियंत्रण को बेहतर बनाना, पशुपालन में बीमारियों के होने के कारणों को पहचानना तथा उचित नियंत्रण उपायों को बढ़ावा देना।

कृषि और वन्यजीव के सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए भूदृश्य के स्थायित्व को सहारा देना, सभी देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र में हिस्सेदारों की क्षमताओं को मजबूत बनाना, अन्य क्षेत्रों में भूमि-उपयोग और सतत विकास योजना, कार्यान्वयन तथा निगरानी के लिए एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण का संचालन करना। साथ ही सबसे महत्त्वपूर्ण है आवारा पशुओं को सहारा देना।

रपट के अनुसार, अफ्रीकी महाद्वीप के अधिकांश देश इबोला तथा अन्य पशुजनित महामारियों से जूझ रहे हैं। अफ्रीकी महाद्वीप में बड़े पैमाने पर दुनिया के वर्षावनों के साथ-साथ दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही जनसंख्या भी विद्यमान है, जिसके चलते पशुओं, वन्यजीवन और मनुष्यों में संपर्क के कारण संक्रमण के मामले बढ़े हैं। इन सबके बावजूद अफ्रीकी देश इबोला और अन्य उभरती बीमारियों से निपटने के रास्ते भी सुझा रहे हैं। अगर वन्यजीवों तथा पारिस्थितिकी तंत्र में समन्वय नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में पशुओं से मनुष्यों को होने वाली बीमारियां इसी प्रकार लगातार सामने आती रहेंगी।

वैश्विक महामारियां मानव जीवन और अर्थव्यवस्था दोनों को नष्ट कर रही हैं। पशुजनित बीमारियों का सबसे ज्यादा असर निर्धन और निर्बल समुदायों पर होता है। इसलिए भविष्य में महामारियों को रोकने के लिए अपने प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा पर विचार करने की अधिक आवश्यकता है। विज्ञान एवं तकनीकी के आधुनिक नवाचार, जैसे टीकाकरण और अन्य स्वस्थ्य विधियों द्वारा पशुजनित बीमारियों को फैलने से रोका जा सकता है, ताकि यह महामारी का रूप न धारण कर पाए।