शहरों में पेयजल और सीवर सुविधाओं को मजबूत करने के लिए शुरू की गई अटल नवीनीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) और अमृत–2 योजनाओं के क्रियान्वयन में गंभीर बाधाएं सामने आई हैं। केंद्र सरकार से समय पर धनराशि जारी न होने के कारण कई परियोजनाएं बीच में फंसी हुई हैं। अमृत और अमृत–2 से जुड़ी योजनाओं पर आई ताजी रिपोर्ट में यह स्थिति उजागर हुई है, जिस पर हाल ही में संसदीय समिति ने भी गहरी चिंता जताई है।
समिति का कहना है कि केंद्रीय हिस्से की देरी से पुरानी परियोजनाओं को पूरा करने में लगातार विलंब हो रहा है। यह स्थिति तब है, जब सरकार खुद स्वीकार कर चुकी है कि 2030 तक शहरी क्षेत्रों में पानी की मांग लगभग दोगुनी हो सकती है।
भारत के शहरों पर बढ़ता जल संकट
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 20 सबसे अधिक जल-संकटग्रस्त शहरों में से पांच भारत में हैं, जिनमें दिल्ली वैश्विक स्तर पर दूसरे स्थान पर है। इसके अलावा, भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के लगभग 80 लाख बच्चे स्वास्थ्य और स्वच्छता से जुड़ी कमियों के कारण जोखिम में हैं। इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए अमृत मिशन की शुरुआत की गई थी।
अमृत योजना के तहत देश के 500 चुनिंदा शहरों में लगभग 65 प्रतिशत शहरी आबादी के लिए पेयजल, सीवर और अन्य बुनियादी सेवाओं के विस्तार का लक्ष्य रखा गया था। इन योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर थी।
अमृत–1: खर्च और प्रगति की स्थिति
अमृत–1 योजना की कुल अनुमानित लागत 83,550 करोड़ रुपये थी, जिसमें से 77,640 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया। इस राशि से कुल 6,010 परियोजनाएं शुरू की गईं, जिनमें से 95 प्रतिशत भौतिक कार्य पूरे हो चुके हैं। हालांकि, अब तक कुल आवंटित धनराशि का केवल 87 प्रतिशत ही खर्च हो पाया है।
अब भी 4,073 करोड़ रुपये की स्वीकृत परियोजनाओं का निर्माण कार्य जारी है, जिन्हें बाद में अमृत–2 में शामिल करना पड़ा। यह तथ्य पुरानी परियोजनाओं को पूरा करने में हो रही लगातार देरी को दर्शाता है। अमृत मिशन के तहत 4.68 करोड़ घरों तक नल से पानी और सीवर सेवाओं का विस्तार 31 प्रतिशत से बढ़ाकर 62 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया था।
अमृत–2: कागजों में तेज, जमीन पर धीमी रफ्तार
केंद्र सरकार ने अमृत–2 के तहत लगभग 1.90 लाख करोड़ रुपये की 8,791 परियोजनाओं को मंजूरी दी है। रिपोर्ट बताती है कि इनमें से:
1.54 लाख करोड़ रुपये की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार हुई
1.47 लाख करोड़ रुपये के लिए निविदाएं (NIT) जारी की गईं
1.18 लाख करोड़ रुपये के अनुबंध दिए गए
इसके बावजूद, अब तक केवल 48,050 करोड़ रुपये के कार्य ही ज़मीनी स्तर पर हो पाए हैं, जबकि वास्तविक व्यय सिर्फ 35,520 करोड़ रुपये रहा है। यह स्थिति प्रक्रियागत अड़चनों और धीमी प्रगति को साफ दिखाती है।
सबसे गंभीर बात यह है कि अब तक केवल 12,724 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं, जो केंद्रीय हिस्से का मात्र 19 प्रतिशत है। समिति का मानना है कि इससे राज्यों और शहरी निकायों का योगदान भी हतोत्साहित हो सकता है। रिपोर्ट में राज्यवार आवंटन में भारी असमानताओं की ओर भी इशारा किया गया है।
2050 की चुनौती और समिति की सिफारिशें
आवासन और शहरी कार्य संबंधी स्थायी समिति ने संसद को सौंपी अपनी सिफारिशों में कहा है कि 2050 तक भारत की आधी से अधिक आबादी शहरों में रहने लगेगी। ऐसे में यह सवाल बेहद अहम है कि बढ़ती शहरी आबादी के लिए केंद्र सरकार ने दीर्घकालिक पेयजल मांग का कोई व्यापक आकलन किया है या नहीं।
समिति ने सिफारिश की है कि अगले 25–30 वर्षों के लिए शहरी पेयजल मांग का एकीकृत राष्ट्रीय स्तर का आकलन और अनुमान तत्काल शुरू किया जाना चाहिए। इस अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर एक राष्ट्रीय शहरी जल सुरक्षा नीति बनाई जाए, ताकि भविष्य में जल-सुरक्षित शहरों की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।
