नागरिकता संशोधन कानून पर हंगामे के बीच असम सरकार ने वहां के मूल निवासियों के हितों की रक्षा के लिए कई उपायों की घोषणा की है। राज्य की बीजेपी सरकार की नई घोषणा के मुताबिक राज्य में जमीन की खरीद और बिक्री घुसपैठिए नहीं कर सकेंगे भले ही वो दूसरे देशों से 1941 से पहले ही क्यों न आए हों। सरकार ने दावा किया है कि इस मुहिम से असमिया भाषा और संस्कृति की रक्षा हो सकेगी। शनिवार (21 दिसंबर) को असम कैबिनेट ने इस पर चर्चा की।
कैबिनेट मीटिंग के बाद प्रेस कॉन्फ्रेन्स में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हेमन्त बिस्वा सर्मा ने कहा, “आगामी विधानसभा सत्र में सरकार दो नए कानून लाएगी। पहला स्वदेशी लोगों के भूमि अधिकारों को हासिल करने के लिए होगा।” उन्होंने कहा, “मंत्रिमंडल में आज कानून की रूपरेखा पर चर्चा की गई… इस कानून के आने के बाद कोई भी स्वदेशी व्यक्ति जमीन की खरीद बिक्री किसी स्वदेशी के साथ ही कर सकता है, किसी और के साथ नहीं।”
उन्होंने कहा कि दूसरा कानून, असम के विरासत स्थलों के आसपास की भूमि को संरक्षित करने के बारे में होगा, जिसमें वैष्णव मठों को ज़ातरा के रूप में जाना जाता है, जो किसी भी तरह के अवैध कब्जे या बिक्री को रोकते हैं। जब मंत्री से पूछा गया कि विवादास्पद स्वदेशी व्यक्ति की परिभाषा क्या होगी तो उन्होंने कहा कि असम समझौते (असम एकॉर्ड) के खंड 6 को लागू करने के लिए एक समिति के गठन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं होता है तो हमलोगों ने उसकी भी परिभाषा तय कर ली है… इस कानून का मूल उद्देश्य यह है कि एक स्वदेशी व्यक्ति एक स्वदेशी को ही जमीन बेच सकता है- हेमंत बिस्वा सरमा चंदन ब्रह्मा को ही जमीन बेच सकते हैं लेकिन हेमंत बिस्वा सरमा किसी घुसपैठिए को जमीन नहीं बेच सकते, भले ही वो 1951 या 1971 में आए हों। यहां तक कि वो 1941 में ही क्यों न आए हों। इसका मतलब ये हुआ कि हमारी जमीन हमारे लोगों के लिए संरक्षित होगी।”
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से “संविधान के अनुच्छेद 345” में संशोधन करने का अनुरोध किया है ताकि “असमिया को राज्य भाषा बनाया” जा सके। मंत्री ने कहा, “राज्य के सभी अंग्रेजी, हिंदी और बंगाली माध्यम के स्कूलों (कक्षा 10 तक) में असमिया अनिवार्य विषय होगा। हालांकि, यह प्रावधान बीटीएडी, पर्वतीय जिलों और बराक घाटी (बंगाली भाषियों के वर्चस्व) में लागू नहीं होगा।”