Make in India, Amethi-made AK-203 rifles: भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को नई ऊंचाई देने वाली एक बड़ी उपलब्धि सामने आई है। अमेठी के कोरवा में स्थित इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड (IRRPL) ने घोषणा की है कि 2025 के अंत तक भारतीय सेना में इस्तेमाल की जाने वाली AK-203 असॉल्ट राइफल का उत्पादन पूरी तरह से स्वदेशी हो जाएगा। यह वही राइफल है, जिसे सेना ‘शेर’ के नाम से जानती है और जो अब सीमाओं पर भारतीय जवानों का सबसे भरोसेमंद हथियार बनने जा रही है।

IRRPL के सीईओ और एमडी मेजर जनरल एस.के. शर्मा के अनुसार, अब तक भारतीय सेना को 48,000 राइफलें सौंपी जा चुकी हैं और दिसंबर 2025 तक यह संख्या बढ़कर 70,000 तक पहुंच जाएगी। खास बात यह है कि इनका निर्माण पूरी तरह देश में ही होगा, जिससे भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। स्वदेशीकरण की प्रक्रिया पहले ही 50% तक पहुंच चुकी है और साल के अंत तक इसे 100% करने का लक्ष्य है।

अब देश के अंदर ही हर दिन 600 राइफलें बनाने की तैयारी हो चुकी है

शुरुआती समय में सेना की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 70,000 राइफलें आयात की गई थीं, लेकिन अब देश के अंदर ही हर दिन 600 राइफलें बनाने की तैयारी हो चुकी है। IRRPL ने अब तक 60 अहम पुर्जों को देश में ही बनाना शुरू कर दिया है, और 100% तकनीक हस्तांतरण रूस से प्राप्त किया जा चुका है। कंपनी अब तक 260 कर्मचारियों को रोजगार दे रही है, जिसमें स्थायी रूसी विशेषज्ञ भी शामिल हैं, लेकिन भविष्य में इस संख्या को 537 तक ले जाने की योजना है, जिसमें 90% स्थानीय लोग होंगे।

मूल रूप से 2032 तक डिलीवरी पूरी करने का टारगेट था, लेकिन अब इसे दिसंबर 2030 तक निपटाने की योजना है, यानी तय समय से करीब दो साल पहले। 2026 से हर महीने 12,000 राइफलें बनाई जाएंगी, जिससे यह लक्ष्य समय से पहले पूरा हो सकेगा। INSAS राइफलों की जगह लेने वाली यह राइफल अब नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा जैसे संवेदनशील इलाकों में भी तैनात की जाएगी।

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इसके साथ ही भारत ने ओडिशा के चांदीपुर से पृथ्वी-2 और अग्नि-1 जैसी सामरिक मिसाइलों का भी सफल परीक्षण किया है, जो दिखाता है कि भारत सिर्फ हल्के हथियारों ही नहीं, बल्कि रणनीतिक हथियारों के क्षेत्र में भी पूरी तरह आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत अब न केवल अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए तैयार हो रहा है, बल्कि रक्षा उपकरणों के वैश्विक निर्यातक बनने की राह पर भी मजबूती से कदम बढ़ा रहा है।

AK-203 के बाद अब कलाश्निकोव कंसर्न के दूसरे उत्पादों को भी भारत में बनाने की योजना है। कंपनी का लक्ष्य 2032 तक दुनिया की शीर्ष पांच हथियार निर्माता कंपनियों में शामिल होना है। भारत और रूस की यह साझेदारी सिर्फ रणनीतिक नहीं, बल्कि उत्पादन, तकनीक और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में एक नई मिसाल बन रही है। अब अमेठी की ज़मीन पर बनने वाली यह ‘शेर’ राइफल और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें भारत की सैन्य ताकत और वैश्विक साख को एक नई परिभाषा देने जा रही हैं।