Ambedkar Protests: इस समय देश में बीआर अंबेडकर के नाम पर जमकर सियासत हो रही है, होड़ लग चुकी है कि उनका सच्चा सम्मान कौन करता है। मुद्दा इतना बड़ा हो चुका है कि इसी वजह से ना देश की संसद चल पाई और ना ही कई महत्वपूर्ण बिल पारित हुए। इसके ऊपर जिस तरह अंबेडकर के सम्मान को लेकर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहा है, सवाल पूछना लाजिमी है कि आखिर कौन संविधान निर्माता का सच्चा अनुयायी है? बीजेपी या कांग्रेस, कौन अंबेडकर के सिद्धांतों को ज्यादा मानती है?
अंबेडकर और हिंदुत्व
अब इस सवाल का जवाब खोजने के लिए सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि एक समय के बाद बीआर अंबेडकर का हिंदू धर्म से मोह भंग हो चुका था। एक तरफ वे उसे जातिवाद बढ़ाने वाले धर्म के रूप में देखते थे, दूसरी तरफ खुद बौद्ध धर्म की तरफ उनका रुझान बढ़ चला था। इसी वजह से 15 अक्टूबर, 1956 को जब अंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म को त्यागा था, उनकी तरफ से कुल 22 प्रतिज्ञाएं ली गई थीं। यह ऐसी प्रतिज्ञाएं थीं जो किसी भी कीमत पर बीजेपी को रास नहीं आ सकती।
बीजेपी के विचार अंबेडकर से कितने अलग?
ऐसा कहने का कारण यह है कि इन प्रतिज्ञाओं में एक तरह से मूर्ति पूजन का विरोध था, भगवान के अस्तित्व पर सवाल था और पूरी तरह समानता की भावना पर जोर था। अब बीजेपी जिस विचारधारा के तहत चलती है, उसके लिए समानता पर चलना तो ज्यादा मुश्किल नहीं होगा, लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा को पीछे छोड़ देना काफी मुश्किल है। जिस विचारधारा के दम पर ही उसने कांग्रेस जैसी शक्तिशाली पार्टी के सामने अपनी एक पहचान बनाई है, जिस एक विचारधारा के दम पर उसने बड़े वोटबैंक को अपने पाले में किया है, वो उसे तो त्यागने का काम नहीं कर सकती।
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इसी वजह से माना जा रहा है कि बीजेपी के लिए पूरी तरह अंबेडकर के सिद्धांतों पर चलना खासा मुश्किल है। वैसे जिस समय अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया था, उनकी तरफ से कुल 22 प्रतिज्ञाएं ली गई थीं। यह प्रतिज्ञाएं कुछ इस प्रकार थीं-
1 मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं दिखाऊंगा, मैं कभी जीवन में उनकी पूजा नहीं करूंगा
2 मैं राम और कृष्ण, जिन्हें भगवान का अवतार माना जाता है, में उनके प्रति कोई आस्था नहीं रखूंगा और कभी उनकी पूजा नहीं करूंगा
3 मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के दूसरे देवी-देवताओं में भी अपनी आस्था नहीं रखूंगा और उनकी पूजा नहीं करूंगा
4 मैं भगवान के अवतार में कोई विश्वास नहीं दिखाऊंगा
5 मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध किसी भी तरह से विष्णु के अवतार थे। मैं इसे सिर्फ एक तरह के पागलपन और झूठे प्रचार के रूप मे देखूंगा
6 मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में कभी भाग नहीं लूंगा, मेरी तरफ से पिंड-दान नहीं होगा
7 मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले किसी भी तरीके से काम नहीं करूंगा
8 मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी कार्यक्रम को स्वीकार नहीं करने वाला हूं
9 मैं मनुष्य की समानता में अटूट विश्वास रखता हूं
10 मैं समानता स्थापित करने का पूरा प्रयास करूंगा
11 मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का पूरी श्रद्धा के साथ अनुसरण करूंगा
12 मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन जरूर करूंगा
13 मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया की भावना रखूंगा और उनकी रक्षा करूंगा
14 मैं कभी भी चोरी नहीं करूंगा
15 मैं कभी भी झूठ नहीं बोलूंगा
16 मैं कभी भी कामुक पापों को नहीं करूंगा
17 मैं शराब का सेवन कभी नहीं करूंगा
18 मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का पूरा प्रयास करूंगा, दयालु रहने का प्रयास करूंगा
19 मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूं जो मानवता के लिए हानिकारक है, यह असमानता पर आधारित है
20 मैं इस बात में अटूट विश्वास रखता हूं कि बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है
21 मुझे विश्वास है कि मैं इस धर्म परिवर्तन के बाद फिर से जन्म ले रहा हूं
22 मैं घोषित करता हूं कि मैं बुद्ध के सिद्धांतों के अनुसार ही मार्गदर्शन करूंगा
हिंदू राष्ट्र को लेकर अंबेडकर के विचार
अब बीआर अंबेडकर ने सिर्फ यह 22 प्रतिज्ञाएं नहीं ली थीं, बल्कि उन्होंने तो इसके अलावा हिंदू राष्ट्र का भी विरोध किया था। उनका तर्क था कि हिंदू राष्ट्र का बनना मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं के लिए ही खतरा बन सकता है। वे तो एक समय के बाद हिंदू राष्ट्र को एक बड़े खतरे के रूप में देखने लगे थे, वे इसे जातिवाद से जो़ड़कर देखा करते थे। वे इसे असमानता का आधार मानते थे, वे इसे भाईचारे और लोकतंत्र के विरोध के रूप में देखते थे।
जब अंबेडकर बोले- मैं हिंदू तमगे के साथ नहीं मरूंगा
वैसे ऐसा नहीं है कि बौद्ध धर्म अपनाने के बाद ही अंबेडकर हिंदुत्व के खिलाफ हुए थे, उनके यह विचार तो 20 अक्टूबर 1935 को ही दिख गए थे। उन्होंने तब एक कार्यक्रम में कहा था कि यह मेरा दुर्भाग्य रहा कि मैं अछूत हिंदू के दाग के साथ पैदा हुआ, लेकिन वो मेरे हाथों में नहीं था। खैर मैं अपने इसे गिरे हुए स्टैटस को पीछे छोड़कर स्थिति को सुधार सकता हूं। मुझे इस बात में कोई शक नहीं है कि मैं ऐसा जरूर करूंगा। मैं साफ कर दूं- मैं उस शख्स की तरह नहीं मरूंगा जो खुद को हिंदू कहेगा।
अब ऐसे थे अंबेडकर के विचार, उनकी अपनी मजबूरियां थीं, अपना संघर्ष, उस समय की कुछ कड़वी सच्चाईयां थीं, लेकिन क्या बीजेपी इन्हीं विचारों के साथ अंबेडकर को खुले दिल के साथ स्वीकार कर सकती है? क्या बीजेपी सही मायनों में अंबेडकर के सिद्धांतों पर आगे बढ़ सकती है, ऐसा लगता तो काफी मुश्किल है। अंबेडकर से जुड़ी और खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें