Syed Sallar Masood Ghazi Dargah Jeth Mela: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल लगने वाले जेठ मेले को लेकर अहम टिप्पणी की है। अदालत ने शनिवार को इस मामले में राज्य सरकार के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया। बताना होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर मेले की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। हिंदू संगठनों ने मेले के आयोजन का विरोध किया था।

जस्टिस अत्ताउ रहमान मसूदी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि दरगाह शरीफ में रोजमर्रा की गतिविधियां जारी रहेंगी। अदालत ने कहा कि दरगाह का प्रबंधन करने वाली समिति इस बात को तय करेगी कि श्रद्धालु नियमित रूप से यहां आएं और यहां पर किसी भी तरह की भगदड़ के हालात न बनें।

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क्या कहना था हिंदू संगठनों के नेताओं का?

अदालत बहराइच के जिला मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। बताना होगा कि डीएम की ओर से जेठ मेले के आयोजन की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था। हिंदू संगठनों के नेताओं का कहना था कि सैयद सालार मसूद गाजी जब बहराइच आया था तो उसका सामना महाराजा सुहेलदेव और अन्य शासकों से हुआ था और इस लड़ाई में वह मारा गया था।

हिंदू संगठनों का कहना था कि मेले के दौरान अतिक्रमण, धर्मांतरण जैसी गतिविधियां भी होती हैं। इसके अलावा भदोही और मुरादाबाद में भी इसे लेकर आवाज उठी थी।

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि जहां तक मेले के आयोजन की बात है, हम पहली नजर में राज्य की सरकार के अफसरों के द्वारा दिए गए फैसले में दखल नहीं देना चाहते।

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याचिकाकर्ताओं के वकील का तर्क

अदालत में इससे पहले याचिकाकर्ताओं के वकील ने राहत देने की मांग की थी। वकील ने कहा था कि इस दरगाह की स्थापना 1375 में सैयद सालार मसूद गाजी की याद में फिरोजशाह तुगलक ने की थी। वकील का कहना था कि इस संबंध में अनुमति लेने की कोई कानूनी जरूरत नहीं है।

वकील का कहना था कि यहां पर पिछले कई सालों से उर्स या मेले का आयोजन किया जा रहा है और इस दौरान कानून व्यवस्था की कोई स्थिति नहीं बनी इसलिए उर्स या मेले के आयोजन को नहीं रोका जाना चाहिए।

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