इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि यदि लड़का और लड़की व्यस्क हैं और वह अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं तो किसी को भी ये अधिकार नहीं है कि वह उनके साथ रहने में दखल दें या फिर आपत्ति जताएं, उनके मां-बाप को भी नहीं। जस्टिस कौशल जयेन्द्र ठाकेर ने एक कपल द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही गई। कोर्ट ने कपल के माता-पिता और अन्य को भी उनके जीवन में दखल ना देने के निर्देश दिए। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई फैसलों का भी जिक्र किया। हाईकोर्ट बेंच ने कहा कि जोड़े को साथ रहने की पूरी आजादी है और किसी को भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल देने का अधिकार नहीं है।

हालांकि कोर्ट ने यह साफ किया कि वह युवक और युवती की शादी को सही नहीं ठहरा रहे हैं और ना ही उनकी शादी को सही ठहराने के लिए कोई सर्टिफिकेट दे रहे हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में पुलिस को भी निर्देश देते हुए कहा कि यदि जोड़ा सुरक्षा की मांग करता है तो पुलिस उसे सुरक्षा भी मुहैया कराए। उल्लेखनीय है कि इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने जीवनसाथी चुनने के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया था और कहा था कि दो व्यस्क युवक और युवती की शादी में परिवार, समुदाय आदि को दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।

इसी साल मई माह में ही शीर्ष अदालत के सामने एक ऐसा मामला सामने आया था, जिसमें लड़के की उम्र शादी की उम्र 21 साल से कम थी और लड़की के पिता ने केरल हाईकोर्ट के फैसले के बाद लड़की की कस्टडी अपने पास रखी हुई थी। इस पर युवक ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की थी। लेकिन अदालत ने इस शादी को मान्यता देते हुए हिंदू विवाह अधिनियम 1995 के तहत ऐसी शादियों को अमान्य करार देने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि शादी की निर्धारित उम्र ना होने के बावजूद यह पर्याप्त है कि याचिकाकर्ता बालिग है और बिना शादी के साथ रहने का अधिकार रखते हैं।