इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध के मामलों में आरोपी और पीड़ित के बीच हुए समझौते के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती है। अदालत ने कहा कि इस तरह की शर्ते ‘उचित न्याय’के सिद्धांत के विपरित है।

लाइव लॉ की खबर के अनुसार इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जमानत देते वक्त न्यायालय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपर्णा भट्ट एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश मामले में दिए गए निर्देशों का ध्यान रखें। गौरतलब है कि उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जमानत की ऐसी कोई शर्त नहीं होनी चाहिए जो कि आरोपी द्वारा पहुंचाए गए नुकसान को धूमिल कर दे और पीड़िता के दुख को और बढ़ा दे।

अदालत की तरफ से कहा गया था कि पीड़िता को आरोपी से हर संभव सुरक्षा उपलब्ध करवाया जाए। आरोपी को किसी भी तरह के संबंध स्थापित करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

बताते चलें कि मौजूदा मामला इमरान नामक एक व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। जिन्होने फिरोजाबाद के एडिशनल सत्र जन द्वारा जमानत खारिज किए जाने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि आरोपी एक ड्राइवर है और शादीशुदा व्यक्ति है और कथित तौर पर पीड़ित जो कि ट्रांसजेंडर हैं उसकी टैक्सी हायर किया करती थी। पैसे के लालच में उसे फंसाया गया है। लेकिन अदालत ने कहा कि मामले की प्रामाणिकता का पता ट्रायल के समय ही लगाया जाता है।

साथ ही अदालत ने कहा कि जमानत की शर्त ऐसी न हो कि पालन ही न किया जा सके और जमानत सिर्फ दिखावा ही बनकर रह जाए।अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए कहा कि महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध के मामलों में जमानत की शर्त किसी भी तरह का समझौता या शादी नहीं होना चाहिए।