इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक रेप के आरोपी को बीते सप्ताह बरी कर दिया। 18 साल से जेल में बंद शख्स के मामले में गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि न तो उसके खिलाफ कोई पुख्ता गवाह है और न ही कोई पुख्ता सबूत। फिर भी वो जेल में 18 साल से बंद है। हाईकोर्ट का कहना था कि ये सरासर कानून का मजाक है।
हाईकोईट के जस्टिस अश्वनि कुमार मिश्रा और शिवशंकर प्रसाद ने अपने फैसले में कहा कि न तो मेडिकल रिपोर्ट आरोपी को शक के घेरे में लाती है और न ही पीड़िता और उसके पिता का बयान। अदालत का कहना था कि 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज पीड़िता का बयान भी आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि पहले उसका स्टैंड कुछ और था और अब कुछ और। पिता का बयान भी आरोपी को दोषी नहीं ठहराता।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी राजकुमार को ट्रायल कोर्ट ने सजा सुनाई थी। लेकिन उन्हें नहीं लगता कि उसे सजा देने के लिए कोर्ट के पास पर्याप्त आधार थे। लिहाजा ट्रायल कोर्ट का फैसला खारिज करके राजकुमार को बरी किया जाता है। हाईकोर्ट का कहना था कि ये खेद की बाद है कि पर्याप्त सबूतों के बगैर भी उसे 18 साल तक जेल के भीतर बिताने पड़े। हाईकोर्ट का कहना था कि ट्रायल कोर्ट ने एफआईआर के साथ पीड़िता के बयान पर भरोसा करके अपना फैसला सुनाया। मामले के अहम पहलुओं को नजरंदाज किया गया। ये इस केस की अहम कड़ी है।
मामले के मुताबिक राजकुमार पर आरोप है कि 5 मार्च 2008 को उसने 8 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था। आरोप के मुताबिक बच्ची के साथ कुकर्म भी किया गया। पांच दिन बाद मामले की एफआईआर कराई गई। उसके बाद आईओ ने एफआईआर को बेस मानकर पीड़िता का बयान दर्ज किया। लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में पीड़ित बच्ची के केवल गाल पर काटने का निशान मिला। उसके प्राईवेट पार्ट पर भी ऐसा कोई निशान नहीं मिला जिससे दुष्कर्म या कुकर्म की पुष्टि होती हो। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक वारदात के समय बच्ची की उम्र 11 साल थी। मेडिकल रिपोर्ट में बच्ची के शरीर के किसी भी हिस्से पर पुरुष का स्पर्म नहीं मिला। लड़की का कौमार्य भी भंग नहीं हुआ था।