उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल की कवायद के पीछे अगले विधानसभा चुनाव की चिंता साफ दिखती है। गुरुवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आठ मंत्रियों को हटा दिया। इसके साथ ही उन्होंने नौ मंत्रियों के विभाग अपने पास ले लिए। हालांकि जाहिरा तौर पर कोई कारण नहीं बताया गया, पर साफ है कि यह अखिलेश यादव की अपनी सरकार की छवि सुधारने की कोशिश है। पंद्रह मार्च 2012 को मुख्यमंत्री समेत अड़तालीस सदस्यीय मंत्रिमंडल ने शपथ ली थी। तब से छह बार मंत्रिमंडल का विस्तार हो चुका है। मगर मुख्यमंत्री को लगभग साढ़े तीन साल बाद फिर मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की जरूरत महसूस हुई है, वह भी अपेक्षया बड़े पैमाने पर। इसकी वजह छिपी नहीं है।

सपा नेतृत्व जानता है कि अगले विधानसभा चुनाव में राज्य सरकार के कामकाज पर ही उसका दांव टिका होगा। विपक्षी पार्टियां जहां अखिलेश सरकार को नाकाम करार देंगी, वहीं समाजवादी पार्टी को उपलब्धियां बतानी होंगी। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा को स्पष्ट बहुमत मिला तो इसकी बड़ी वजह यही थी कि अखिलेश यादव के युवा नेतृत्व में लोगों को नई शुरुआत की उम्मीद नजर आई। अखिलेश ने वादा किया कि अगर इस बार सपा को सत्ता में आने का मौका मिला तो वह पिछली गलतियां नहीं दोहराएगी।

मगर अखिलेश सरकार के दौरान भी प्रदेश को वही अनुभव हुए जो मुलायम सिंह सरकार के कार्यकाल में हुए थे। इसमें कोई हैरत की बात नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी सपा ने उसी तरह उम्मीदवार चुने जैसे वह पहले चुनती आई थी। नतीजा यह हुआ कि सफल उम्मीदवारों यानी विधायकों में किसी न किसी आरोप में फंसे लोगों की तादाद काफी थी। इनमें से कई लोग मंत्री भी बन गए। इससे राज्य सरकार की साख पर असर पड़ना स्वाभाविक था। बाहुबलियों और दबंगों से परहेज करना समाजवादी पार्टी अब भी नहीं सीख पाई है।

सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब जाकर अपने मंत्रियों के कामकाज और उनकी छवि को लेकर चिंतित हुए हैं तो इसलिए कि अगले विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है। पर क्या राज्य सरकार की साख सुधारने की यह कवायद रंग लाएगी? फिर, सवाल यह भी है कि आठ मंत्रियों को हटाने और नौ के विभाग बदले जाने की संभावना के पीछे क्या सिर्फ कार्य-प्रदर्शन को कसौटी बनाया गया, या निजी वफादारी और क्षेत्रीय तथा जातिगत समीकरण भी कारण रहे होंगे? जो हो, असल कसौटी बेदाग छवि और कार्य संस्कृति की है।

आठ मंत्रियों को हटाए जाने के बाद भी मंत्रिमंडल के पूरी तरह बेदाग होने का दावा कर पाना मुश्किल है। अब भी कई मंत्री हैं जिन पर कोई न कोई गंभीर आरोप है और उन्हें लेकर अंगुलियां उठती रहेंगी। सबसे विवादित रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया मंत्रिमंडल में बने हुए हैं, सिर्फ उनका विभाग बदले जाने की संभावना है। मुलायम सिंह कई बार यह कह कर नाराजगी जता चुके थे कि कई मंत्रियों का कामकाज ठीक नहीं