लोकसभा चुनाव करीब आने के साथ ही पंजाब किसान यूनियनों का “दिल्ली चलो” आंदोलन ने राज्य की राजनीति को फिर तेज कर दिया है। इसका असर एनडीए के पूर्व सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (SAD) और बीजेपी के आपसी संबंध पर साफ तौर पर पड़ रहा है। दोनों दल फिलहाल गतिरोध को दूर करने के लिए आंदोलनकारी किसान संगठनों के साथ केंद्र के नेताओं की बातचीत पर नजर रखे हुए हैं।
किसान नेताओं के साथ अगली बैठक में पंजाब के सीएम मान भी शामिल होंगे
किसान संगठनों की मांगों को लेकर कृषि संघों और तीनों केंद्रीय मंत्रियों पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और नित्यानंद राय के बीच गुरुवार-शुक्रवार की रात तीसरे दौर की वार्ता हुई। इसमें फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और लोन माफ करने को लेकर कानून की बात भी शामिल रही। हालांकि किसी नतीजे पर यह बातचीत नहीं पहुंची। अब इनकी अगली मुलाकात रविवार शाम को होगी। इस बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान भी शामिल होंगे।
SAD कोर कमेटी ने कहा- हल निकलने के बाद ही साझेदारी पर सोचेंगे
सुखबीर बादल के नेतृत्व वाले शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने पहले ही प्रदर्शनकारी किसानों के साथ एकजुटता जता दी है। उनकी पार्टी की कोर कमेटी के नेता तेजी से बदल रही स्थिति पर विचार-विमर्श करने के लिए गुरुवार को एक बैठक करेंगे। किसानों के आंदोलन के प्रति अपनी पार्टी का पूरा समर्थन की बात दोहराते हुए एसएडी कोर कमेटी ने तय किया है कि पार्टी को तब तक बीजेपी के साथ फिर से गठबंधन नहीं करना चाहिए जब तक कि उनकी शिकायतों के निवारण के लिए कोई समाधान नहीं मिल जाता।
शिरोमणि अकाली दल (SAD) के टॉप पैनल के एक सदस्य ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इसके अधिकतर सदस्यों का विचार था कि “इस स्तर पर और जब तक किसानों के मुद्दे हल नहीं हो जाते और कृषि आंदोलन समाप्त नहीं हो जाता, तब तक अकाली दल को बीजेपी के साथ गठबंधन की संभावना नहीं तलाशनी चाहिए।”
एक अन्य वरिष्ठ अकाली नेता ने कहा, “हालांकि पार्टी के 75 प्रतिशत शीर्ष नेताओं का विचार था कि बीजेपी के साथ गठबंधन करना दोनों पार्टियों के हित में है, लेकिन कृषि आंदोलन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अकाली दल को गठबंधन करने से बचना चाहिए।” उन्होंने कहा, “पार्टी में सभी इस पर एकमत थे कि जब किसानों की चिंताओं का समाधान न हो जाए, इस स्टेज पर गठबंधन की किसी भी बातचीत को आगे नहीं बढ़ाया जाए।”
सितंबर 2020 में तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी अकाली दल ने अपने संबंध तोड़ लिए थे।