विदेश मंत्रालय ने ‘एयरलिफ्ट’ को अच्छी लेकिन तथ्यों के हिसाब से अधूरी फिल्म बताया। यह फिल्म 1990 में कुवैत से बड़ी संख्या में भारतीयों को बचाने के घटनाक्रम पर आधारित है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि यह एक फिल्म है और फिल्मों में अक्सर वास्तविक घटनाक्रमों, तथ्यों के मामले में आजादी ली जाती है। इस फिल्म विशेष में भी 1990 में कुवैत में वास्तव में जो हुआ, उसके घटनाक्रम को चित्रित करने में कलात्मक स्वतंत्रता ली गई है। उन्होंने कहा कि जिन्हें 1990 का यह घटनाक्रम याद होगा, उन्हें विदेश मंत्रालय की अग्रसक्रिय भूमिका भी याद होगी।
.@AirliftFilm: Great entertainment but rather short on facts 🙂 Here’s our take https://t.co/Ik6S9ZLHR6
— Vikas Swarup (@MEAIndia) January 28, 2016
स्वरूप ने कहा कि सरकारी प्रतिनिधिमंडल को बगदाद और कुवैत भेजा गया था और नागरिक उड्डयन मंत्रालय, एयर इंडिया और कुछ अन्य सरकारी विभागों के साथ जबरदस्त समन्वय किया गया था। उन्होंने कहा कि मैं खुद इस बात की गारंटी दे सकता हूं चूंकि मैं कुवैत से भारतीयों को बचाए जाने के मोर्चे पर अग्रणी पंक्ति में था जो सीरिया के रास्ते तुर्की में आ रहे थे। फिल्म में दिखाया गया है कि विदेश मंत्रालय की ओर से अग्रसक्रिय भूमिका की कमी रही। उन्होंने कहा कि जिन्हें 1990 का घटनाक्रम याद नहीं होगा, उन्हें हाल ही के अभियान जरूर याद होंगे जिनमें विदेश मंत्रालय ने इराक, लीबिया, यमन और यूक्रेन के साथ तालमेल किया था।
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स्वरूप ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि फिल्म लोगों को वास्तविक घटनाक्रम के बारे में और अधिक अध्ययन करने के लिए प्रेरित करेगी और उस अग्रसक्रिय भूमिका को जानने के बारे में भी प्रेरित करेगी जो विदेश मंत्रालय ने विदेशों में रहने वाले और काम करने वाले भारतीय नागरिकों के हितों, चिंताओं और सुरक्षा को महफूज रखने में हमेशा अदा की। उन्होंने कहा कि फिल्म के लिए इस तरह की थीम का चुना जाना ही दिखाता है कि यह कितना महत्वपूर्ण है। स्वरूप ने कहा कि विदेश मंत्रालय में हम विदेशों में भारतीय नागरिकों के संरक्षण को अपनी सर्वप्रथम जिम्मेदारी समझते हैं। हम अतीत में यह साबित कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे।