केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी दिवस पर हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में घोषित किए जाने के संकेत दिए। अपने ट्वीट में अमित शाह ने कहा कि भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है परन्तु पूरे देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है जो विश्व में भारत की पहचान बने। आज देश को एकता की डोर में बाँधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वो सर्वाधिक बोले जाने वाली हिंदी भाषा ही है।

शाह ने आगे लिखा कि आज हिंदी दिवस के अवसर पर मैं सभी नागरिकों से अपील करता हूं कि हम अपनी-अपनी मातृभाषा को आगे बढ़ाएं और साथ में हिंदी भाषा का भी प्रयोग कर देश की एक भाषा के पूज्य बापू और लौह पुरुष सरदार पटेल के स्वप्न को साकार करने में योगदान दे।

शाह ने देशवासियों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं भी दीं। शाह की इस अपील पर एआईएमआईएम के प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी भड़क गए। ओवैसी ने कहा कि भारत हिंदी, हिंदू और हिंदुत्व से बड़ा है। उन्होंने ट्वीट में लिखा, ‘हिंदी सभी भारतीय की मातृभाषा नहीं है। क्या आप इस देश की अनेक मातृभाषाओं की विविधता और सौंदर्य को बढ़ाने का प्रयास कर सकते हैं?’

ओवैसी ने आगे लिखा कि अनुच्छेद 29 हर भारतीय को विविध भाषा, लिपि और संस्कृति का अधिकार देता है। मालूम हो कि देश के दक्षिणी राज्यों में हिंदी की स्वीकार्यता नहीं है। भारत में हिंदी को राजभाषा का दर्जा तो प्राप्त है लेकिन उसे राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं है।

इस साल जून में नई शिक्षा नीति 2019 के मसौदे में हिंदी को अनिवार्य किए जाने के प्रस्ताव को लेकर खूब हो हल्ला मचा था। दक्षिणी राज्यों ने खासकर इसका विरोध किया था। शिक्षा नीति में देशभर के सभी स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की बात शामिल थी। इस पर तमिलनाडु के प्रमुख राजनीतिक दलों एआईएडीएमके और डीएमके ने हिंदी का यह कहते हुए विरोध किया था कि यह योजना लंबी अवधि में राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए है।

कर्नाटक ने भी केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कन्नड़ में ट्वीट कर इस कदम का विरोध किया था। कर्नाटक के कांग्रेस नेताओं ने इस कदम के खिलाफ अपनी आपत्ति व्यक्त की थी। विरोध के बाद मसौदे से इस प्रस्ताव को हटा दिया गया था।