तवांग में टकराव लंबा नहीं खींचा और जल्दी ही चीनी सेना को वापस उनकी सीमा में भेज दिया गया। फिर भी, चीन को लेकर भारत की कूटनीतिक स्थिति पर चर्चा शुरू हो गई है। गलवान घाटी से जुड़े विवादों को लेकर सैन्य अधिकारियों के स्तर पर लगातार वार्ताओं का दौर अभी जारी ही है कि तवांग झड़प की खबरें सामने आईं।

राजनीति और कूटनीति

भारत और चीन के बीच 1962 में एक सीधी जंग पहले ही हो चुकी हैं, लेकिन आज के दौर में चीन द्वारा भारतीय सीमा पर टकराव की स्थिति का उत्पन्न किया जाना पहले के मुकाबले अलग है। आज भारत का- विश्व-राजनीतिक मंचों पर प्रमुखता से मुखर होना, अमेरिका सहित अन्य यूरोपीय देशों के साथ मजबूत संबंध बनाना तथा अपनी तटस्थता की नीति के साथ चीन के प्रतिद्वंद्वी मुल्कों के साथ मित्रवत संबंध होना- आदि कई ऐसे मुद्दे हैं जो चीन को परेशान कर रहे हैं।

जानकारों के मुताबिक, यह भारत की विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए एक बड़ी चुनौती है जिसे राजनीतिक नजरिए से इतर देखना होगा। चीनी सेना की निगाहें एलएसी पर रही हैं, लेकिन अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले को लेकर उसका मंसूबा बार-बार सामने आता रहा है। दूसरी ओर, भारत कूटनीति धारदार हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत के प्रधानमंत्री के आह्वान को दुनिया ने तरजीह दी है। भारत अमेरिकी समीकरण का सबसे मुख्य हिस्सा बना हुआ है। रूस की युद्ध नीति के विरोध के बावजूद भारत-रूस संबंध मजबूत बनते गए। यह सब कुछ चीन की आंखों में किरकिरी के सामान था। चीन अपने एकमुश्त आर्थिक जाल के जरिए सामरिक समीकरण की बिसात बिछाने में फेल प्रतीत हो रहा है।

सामरिक समीकरण

तवांग में चीन का दुस्साहस अनसुलझी उत्तरी सीमा पर अपनी स्थिति मजबूत करने की एक और कोशिश बताई जा रही है। जून 2017 में डोकलाम और जून 2020 में गलवान घाटी के बाद तवांग के यांगस्ते क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पीएलए टुकड़ियों के घुसपैठ की कोशिश के दौरान हुई झड़प भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच टकराव की तीसरी बड़ी घटना है।

दोनों परमाणु शक्तियों के बीच ताजा संघर्ष केवल ‘शारीरिक टकराव’ थी, जिसमें कोई गोली-बंदूक नहीं चली। दोनों ओर से लोहे के छड़े, कील-कांटों वाले नुकीले दस्ताने, घूसों और टेजर गन (दुश्मन को बेदम करने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाला एक इलेक्ट्रोशाक गैर-घातक हथियार) जैसे औजारों का ही इस्तेमाल किया गया। दोनों ओर के जवान जख्मी हुए, लेकिन चीन के सैनिकों को अधिक घाव झेलने पड़े। जानकारों के मुताबिक, तवांग सेक्टर के यांगत्से में भारतीय इलाके में घुसपैठ की उसकी यह कोशिश आखिरी नहीं है।

अरुणाचल प्रदेश-तिब्बत सीमा पर किसी न किसी जगह यह कोशिश अभी भी जारी रह सकती है। 1972 तक जिसे नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजंसी (नेफा) कहा जाता था, उस अरुणाचल प्रदेश की अंतरराष्ट्रीय सीमा उत्तर और उत्तर-पश्चिम में तिब्बत से, पश्चिम में भूटान और पूरब में म्यांमार से मिलती है। इसलिए यह भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्त्वपूर्ण है। यह तिब्बती बौद्ध धर्म का अहम धार्मिक केंद्र है। यहां गांदेन नामग्याल ल्हात्से मठ तिब्बत में ल्हासा के बाद दूसरा सबसे बड़ा मठ है। तवांग तिब्बत और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच रणनीतिक महत्त्व का गलियारा है।

चीन की स्थिति

चीन के अंदरूनी हालात अच्छे नहीं बताए जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण को लेकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग का विरोध बढ़ रहा है। राजनीतिक तौर पर उनकी मंशा आनन फानन में अपनी राजनीतिक हैसियत को माओ त्से तुंग के बराबर लाकर खड़ा करने की है। जबकि सच्चाई यह है कि चीन का आर्थिक ढांचा 2013 के बाद से निरंतर लुढ़क रहा है। कूटनीतिक चुनौती ताइवान और जापान की तरफ से ज्यादा सख्त है।

ऐसे मौके पर पड़ोसी देशों से संघर्ष की बातें लोगों को भ्रमित करती हैं। गलवान संघर्ष के बाद चीन ने तवांग को निशाना बनाया। दूसरे, चीन हर समय तौलना चाहता है कि भारत की सैन्य और राजनीतिक व्यवस्था कितनी सजग और मजबूत है। डोकलाम, गलवान और अब तवांग – चीन युद्ध नहीं करना चाहता है, लेकिन यह जरूर जानना चाहता है कि भारत किस हद तक तैयार है? दूसरे, चीन की साख निरंतर विवाद के घेरे में है। 2013 के बाद से चीन की आर्थिक रफ्तार धीमी हुई है। जापान और ताइवान चीन के साथ मुठभेड़ की स्थिति में दिख रहे हैं। पश्चिमी दुनिया चीन के विरोध में गोलबंद हो गई है।

ढांचागत विकास की रणनीति

चीन ने 2014 में तिब्बत की राजधानी ल्हासा से शिगात्से (257 किमी पश्चिम) को जोड़ने वाली एक रेलवे लाइन शुरू की। शिगात्से सिक्किम के उत्तर में है। उसकी योजना भविष्य में इस रेल नेटवर्क को भारत और नेपाल सीमा तक ले जाने की है। यह रेल नेटवर्क तिब्बत से खनिज संसाधनों की ढुलाई के अलावा, चीन के लिए सामरिक महत्त्व रखता है, क्योंकि इसका उद्देश्य ‘तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के आर्थिक विकास और राष्ट्रीय रक्षा को मजबूत करना है।’ जहां तक भारत की बात है, सरकार ने बड़े पैमाने पर रेल-सड़क नेटवर्क तैयार करने का फैसला किया, ताकि लोगों की आवाजाही की सुविधा के अलावा सेना की सीमा तक पहुंच आसान हो जाए।

क्या कहते हैं जानकार

तवांग के पास सीमा पर तैनात चीनी सैनिकों ने झड़प का फैसला खुद किया होगा, यह सोचना गलत है। शी जिनपिंग की इजाजत के बगैर चीन में कुछ भी नहीं होता। जो भी देश भारत के साथ हैं वो सब भारत को उकसाने वाले हैं। क्वाड के सदस्य देश भी भारत की मदद करना चाहेंगे लेकिन वो मदद कूटनीतिक हल में होनी चाहिए।

  • लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) पीआर शंकर, रक्षा विशेषज्ञ

चीन को यह समझना होगा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगी सबसे ताकतवर समूह हैं, चीन दूसरी शक्ति है लेकिन भारत भी तीसरी शक्ति है। मौजूदा झड़प के दो कारण हो सकते हैं। अमेरिका का एक प्रतिनिधिमंडल चीन जाने वाला है। पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका की बढ़ती निकटता दूसरा कारण हो सकता है।

  • विजय गोखले, भारत के पूर्व विदेश सचिव