ओडिशा में हुए दर्दनाक ट्रेन हादसे के बाद से अभी तक ड्राइवर गुनानिधि मोहंती से उनके परिवार को मिलने की अनुमति नहीं दी गई है। उनके परिवार का कहना है कि सबको लगता है कि मोहंती की गलती की वजह से यह हादसा हुआ। वह 27 सालों से ट्रेन चला रहे हैं, लेकिन कभी कोई गलती नहीं हुई और अब जब उनको मिलने ही नहीं दिया जा रहा तो उनको ये कैसे पता चलेगा कि उस दिन हुआ क्या था।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, गुनानिधा मोहंती कटक से 10 किलोमीटर की दूरी पर नाहरपाड़ां गांव में रहते हैं, जहां के गलियारों में दो हफ्तों से लगातार ट्रेन हादसे की चर्चाएं हो रही हैं। खेल के मैदान, चाय की दुकान, फुटपाथ पर बैठे लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि गुनानिधि मोहंती तेज ट्रेन क्यों चला रहे थे। गुनानिधि के पिता बिष्णु चरण मोहंती ने कहा कि हर कोई सोचता है कि दुर्घटना के लिए उनका बेटा जिम्मेदार है, लेकिन वह पिछले 27 सालों से ट्रेन चला रहा है और उसने कभी गलती नहीं की। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने बेटे से दुर्घटना के बाद से बात ही नहीं की है तो उन्हें कैसे पता चलेगा कि उस शाम क्या हुआ था।

गुनानिधि के परिवार को दुर्घटना के दो दिन बाद उनसे मिलने की इजाजत दी गई थी, लेकिन कुछ सेकेंड के लिए ही उनकी बातचीत हुई। उन्हें आईसीयू में रखा गया था और वहां फोन ले जाने की भी इजाजत नहीं थी। गुनानिधि के भाई ने बताया कि उसके बाद परिवार को उनसे मिलने नहीं दिया गया। उधर, ईस्ट कोस्ट रेलवे के चिकित्सा विभाग में कार्यरत एक डॉक्टर ने चार दिन पहले गुनानिधि को अस्पताल से छुट्टी दे दी थी, लेकिन उनके पिता और भाई अभी भी कह रहे हैं कि वे नहीं जानते कि गुनानिधि कहां हैं। उनके परिवार को लग रहा है कि गुनानिधि अभी भी अस्पताल में ही हैं।

गुनानिधि ईस्ट कोस्ट रेलवे में तैनात हैं, लेकिन वहां उनके स्वास्थ्य के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। ईस्ट कोस्ट रेलवे के पीआरओ विकास कुमार ने कहा कि स्वास्थ्य एक निजी मुद्दा है और हम उस पर टिप्पणी नहीं कर सकते। इसके अलावा दो जांच (सीआरएस और सीबीआई द्वारा) चल रही हैं इसलिए हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। एएमआरआई अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि लोको पायलट और सहायक लोको पायलट दोनों को 4-5 दिन पहले छुट्टी दे दी गई थी।

रिपोर्ट के अनुसार, गुनानिधि के भाई संजय मोहंती ने कहा कि उन्हें यकीन है कि ट्रेन हादसे में उनके भाई की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा कि वह 1996 में गुनानिधि ने मालगाड़ी के ड्राइवर के तौर पर अपनी नौकरी शुरू की थी और कुछ साल पहले ही उन्होंने पैसेंजर ट्रेन चलाना शुरू किया था। उन्होंने कहा कि गुनानिधि उनको बताया करते थे कि ट्रेन कौन से ट्रैक पर जाएगी, इस पर लोको पायलट का बहुत कम नियंत्रण होता है और ये जिम्मेदारी ऑन-ड्यूटी स्टेशन मास्टर की होती है, जबकि सभी को लगता है कि हादसा गुनानिधि की गलती से हुआ। उन्होंने कहा कि कोरोमंडल एक्सप्रेस को उस ट्रैक पर 130 किमी प्रति घंटे की गति से यात्रा करने की अनुमति दी गई थी, जबकि उसकी वास्तविक गति 128 किमी प्रति घंटा थी।