अपूर्वा विश्वनाथ

हाईकोर्ट के तीन जजों के साथ एक सीनियर वकील को सुप्रीम कोर्ट में लाने के फैसला फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। कॉलेजियम ने 30 सितंबर की बैठक को बंद करने को लेकर लिखित में बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों के एतराज के बाद ये फैसला लिया गया है।

हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि 8 अक्टूबर को केंद्रीय कानून मंत्री ने सीजेआई से अपने उत्तराधिकारी का नाम सुझाने का अनुरोध किया था। इसके बाद कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट में नियुक्तियों को लेकर कोई भी सिफारिश नहीं कर सकता है।

सीजेआई यूयू ललित ने 30 सितंबर को चिट्ठी जारी करके चार नामों पर अंतिम मुहर लगाने के लिए कॉलेजियम के सभी सदस्यों को चिट्ठी जारी की थी। इनमें पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि शंकर झा, पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय केरोल, मणिपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीवी संजय कुमार और एडवोकेट केवी विश्वनाथन का नाम शामिल है।

ऐसे पनपा था सुप्रीम कोर्ट में विवाद

30 सितंबर को शाम साढ़े चार बजे कॉलेजियम की बैठक होनी थी। लेकिन ये नहीं हो सकी, क्योंकि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ इसमें शामिल नहीं हो सके। जस्टिस चंद्रचूड़ ने 30 सितंबर को रात सवा बजे तक सुनवाई की थी। उसके बाद सीजेआई ने चिट्ठी पर सहमति लेने की कोशिश की। सीजेआई ललित ने 30 सितंबर को कॉलेजियम के सदस्यों को चिट्ठी लिखकर प्रस्तावों पर उनके विचार मांगे। लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने सीजेआई की चिट्ठी में अपनाए गए तरीके पर आपत्ति जताई।

8 अक्टूबर को केंद्रीय कानून मंत्री ने सीजेआई ललित से अपने उत्तराधिकारी का नाम देने का अनुरोध किया। ललित का कार्यकाल 9 नवंबर तक है। नए सीजेआई को इसी दिन पदभार ग्रहण करना है। केंद्रीय कानून मंत्री के पत्र के बाद कॉलेजियम ने 30 सितंबर की बैठक को बंद करने का फैसला किया। कॉलेजियम में पांच सदस्य हैं।

सीजेआई की लिखी चिट्ठी पर जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस संजय किशन कौल ने अपनी सहमति दी थी। अलबत्ता जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नजीर ने प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े कर दिए। उनका कहना था कि नियुक्ति के मामले में चिट्ठी पर सहमति लेना गलत है। फिलहाल कॉलेजियम के सभी पांच सदस्यों की तरफ से जो चिट्ठी जारी हुई उसमें 30 की मीटिंग को ही खारिज कर दिया गया।