मंत्रियों ने प्रस्ताव दिया कि जब तक समिति की रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक कृषि कानून निलंबित रहेंगे। सरकार के इस प्रस्ताव पर किसान संगठन तुरंत सहमत नहीं हुए। विचार करने के लिए एक दिन का समय लिया है। अगली बैठक 22 जनवरी को होगी, जिसमें किसान संगठनों के नेता अपनी राय से अवगत कराएंगे।
बैठक के बाद किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि वे कृषि कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर अडिग हैं, लेकिन कानूनों को निलंबित करने के सरकार के प्रस्ताव पर गुरुवार को चर्चा करेंगे। बैठक के बाद किसान संगठनों ने कहा, ‘सरकार ने कहा है कि हम कोर्ट में हलफनामा देकर कानूनों को 1.5-2 साल तक स्थगित रख सकते हैं। समिति बनाकर, चर्चा कर, जो रिपोर्ट देगी, हम उसको लागू करेंगे।’ हालांकि इस प्रस्ताव का किसान संगठनों ने तुरंत समर्थन नहीं किया।
बैठक की जानकारी देते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, ‘आज की बैठक में कोई समाधान नहीं निकला। हम अगली तारीख को फिर मिलेंगे।’ टिकैत ने कहा कि किसान संगठन के नेताओं ने किसानों को एनआइए की नोटिस का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने कुछ संशोधनों का प्रस्ताव दिया लेकिन किसान संगठनों ने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें तीनों कानूनों को निरस्त करने से कम पर कुछ मंजूर नहीं है।’ किसान नेता कविता कुरूगंती ने कहा कि बैठक एनआइए नोटिस से जुड़े मुद्दे से शुरू हुई। इसके बाद किसान संगठनों की ओर से कानूनों को निरस्त करने की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि किसान नेताओं ने बताया कि सरकार की ओर से कृषि मंत्री ने संसद में दिए जवाबों में कृषि को राज्य का विषय बताया है और यहां तक कि कृषि-बाजार को भी राज्य का विषय बताया गया है।
इससे पहले दोपहर बाद पौने तीन बजे तीन कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध को दूर करने के प्रयासों के तहत सरकार और कृषि संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच 10वें दौर की वार्ता शुरू हुई। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेल, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल व केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश लगभग 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ यहां विज्ञान भवन में वार्ता में शामिल हुए।
बैठक में पहले सरकार ने तीनों कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा, लेकिन प्रदर्शनकारी किसान इन कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे। किसानों ने यह आरोप भी लगाया कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने पर चर्चा टाल रही है। कृषि कानूनों के फिलहाल अमल पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक पहले ही रोक लगा रखी है।
ट्रैक्टर रैली पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने फिर किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र की उस अर्जी पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी में आंदोलनकारी किसान संगठनों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली पर रोक की फरियाद की गई थी। सरकार की तरफ से यह अर्जी दिल्ली पुलिस ने दी थी। मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाले पीठ ने कहा कि अदालत के लिए इस मामले में हस्तक्षेप करना कतई अनुचित होगा। कानून व्यवस्था के मामले में निर्णय लेने का पहला अधिकार पुलिस को है। पीठ में न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वीराम सुब्रह्मण्यम भी थे।
अदालत ने केंद्र की इस मामले में अर्जी को विचाराधीन रखते हुए 25 जनवरी को सुनवाई करने की फरियाद को भी ठुकरा दिया। उसके बाद सरकार ने अपनी अर्जी वापस ले ली। मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और महान्यायवादी तुषार मेहता से कहा-आप कार्यपालिका हो। आप पुलिस के जरिए कोई भी कार्रवाई करने के लिए अधिकृत हैं। कानून व्यवस्था के मामले में केंद्र को कार्रवाई के अधिकार हैं। हम कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
सोमवार को भी सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि रैली के बारे में निर्णय करने का अधिकार दिल्ली पुलिस को है, अदालत को नहीं। केंद्र सरकार ने दिल्ली पुलिस के माध्यम से अदालत में हलफनामा दाखिल कर किसी को भी राजधानी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसी भी तरह की रैली या प्रदर्शन करने से रोकने की इजाजत मांगी थी।
केंद्र का कहना था कि विभिन्न स्रोतों से सुरक्षा एजंसियों के संज्ञान में आया है कि प्रदर्शनकारियों के छोटे समूह राजधानी में 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकालने की योजना बना रहे हैं। गणतंत्र दिवस के समारोह में किसी भी तरह का व्यवधान केवल कानून व्यवस्था के विपरीत ही नहीं होगा बल्कि जनहित के खिलाफ भी होगा और देश के लिए बेहद शर्मनाक होगा।
ट्रैक्टर रैली : किसानों ने वैकल्पिक मार्ग का सुझाव खारिज किया
केंद्र के नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने 26 जनवरी को प्रस्तावित अपनी ट्रैक्टर रैली के लिए वैकल्पिक मार्ग के सुझाव को बुधवार को खारिज कर दिया। पुलिस अधिकारियों ने प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को दिल्ली के व्यस्त बाहरी रिंग रोड की बजाय कुंडली-मानेसर पलवल एक्सप्रेस वे पर आयोजित करने का सुझाव दिया था, जिसे किसान संगठनों ने अस्वीकार कर दिया।
दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा पुलिस के अधिकारियों ने गणतंत्र दिवस पर प्रस्तावित रैली के मार्ग और प्रबंधों पर चर्चा करने के लिए विज्ञान भवन में किसानों से मुलाकात की। पुलिस अधिकारियों ने किसान नेताओं को रैली के लिए कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे मार्ग का सुझाव दिया जिसे उन्होंने खारिज कर दिया।
किसानों ने पहले ही कहा था कि वे बाहरी रिंग रोड से अपना ट्रैक्टर जुलूस निकालने की तैयारी कर रहे हैं। बाहरी रिंग रोड विकासपुरी, जनकपुरी, उत्तम नगर, बुराड़ी, पीरागढ़ी और पीतमपुरा जैसे दिल्ली के कई क्षेत्रों से होकर गुजरता है। बैठक में शामिल किसान नेताओं के मुताबिक, गुरुवार को पुलिस अधिकारियों के साथ वार्ता का एक और दौर हो सकता है।
राष्ट्रीय राजधानी की अलग-अलग सीमाओं पर किसान पिछले 56 दिनों से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। एक वरिष्ठ किसान नेता ने कहा, ‘बैठक के दौरान हमने 26 जनवरी को अपनी ट्रैक्टर रैली के संबंध में पुलिस अधिकारियों के साथ कई बिंदुओं पर चर्चा की। दिल्ली पुलिस की ओर से संयुक्त पुलिस आयुक्त (उत्तरी क्षेत्र) एसएस यादव ने बैठक का समन्वय किया। बैठक में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पुलिस अधिकारी भी शामिल हुए।
कल की बैठक को लेकर आशावान : तोमर
किसान संगठनों के नेताओं के साथ बैठक खत्म होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि जिस दिन किसानों का आंदोलन समाप्त होगा, उस दिन भारतीय लोकतंत्र की जीत होगी। उन्होंने कहा, मैं 22 जनवरी को होने वाली अगली बैठक में किसानों का विरोध प्रदर्शन समाप्त करने की सहमति तैयार होने को लेकर आशावान हूं।
तोमर ने कहा, आज की वार्ता से किसानों के प्रदर्शन को लेकर सभी मुद्दों के समाधान की उम्मीद जगी है, सरकार चाहती है कि विरोध प्रदर्शन समाप्त हो, संगठनों के साथ बातचीत जारी रह सकती है। सरकार एक-डेढ़ साल के लिए तीनों कृषि कानूनों को निलंबित रखने के लिए तैयार है। इस अवधि में आपसी बातचीत से समाधान पर पहुंचा जा सकता है। तोमर ने कहा कि कुछ नरम-गरम क्षणों को छोड़ सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई वार्ता। किसान संगठनों के साथ आज की बैठक में अंतिम निर्णय पर पहुंचने के लिए तैयार थी सरकार।

