आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत से मुलाकात के बाद विवाद बढ़ने पर जर्मन राजनयिक वाल्टर लिंडनर ने सफाई दी है। भारत में जर्मनी के राजदूत लिंडर 16 जुलाई को नागपुर के दौरे पर थे। वे नागपुर में जर्मनी के सहयोग से चल रही मेट्रो परियोजना की प्रगति का निरीक्षण करने पहुंचे थे।

जर्मनी इस परियोजना में वित्तीय मदद दे रहा है। जर्मन राजनयिक ने ‘द हिंदू’ से बातचीत में आरएसएस को भारत का एक ‘जन आंदोलन’ बताया। उन्होंने कहा कि नागपुर में आरएसएस मुख्यालय की यात्रा ‘भारतीय विविधता’ को समझने का एक हिस्सा थी।

वाल्टर लिंडनर ने कहा कि नागपुर यात्रा के दौरान मैंने संघ मुख्यालय जाने और संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिलने का निर्णय किया। उन्होंने कहा कि मैं संघ के बारे में जानकारी हासिल करना चाहता था। लिंडनर ने कहा, ‘मैंने संघ के बारे में बहुत सकारात्मक और बहुत ही नकारात्मक लेख पढ़े थे। इसमें फांसीवाद के आरोप से लेकर सामाजिक संलग्नता तक शामिल है। मैं इस बारे में अपनी राय विकसित करना चाहता था। इसलिए मैंने मोहन भागवत से कई सवाल पूछे।’

उन्होंने कहा कि मैंने कट्टरवाद को लेकर भी कई सवाल पूछे। इन सवालों के जवाब इतने आसान नहीं थे। लिंडनर ने कहा, ‘यह (आएसएस) भारत की बनावट का हिस्सा है। आप इससे इनकार नहीं कर सकते कि यह एक जन आंदोलन है और आप इसे पसंद करे या ना करें। जर्मन राजनयिक के संघ मुख्यालय के इस दौरे के बाद अमेरिका के दक्षिण एशिया मामलों के स्कॉलर पीटर फ्रेडरिक ने एक ऑनलाइन याचिका दायर की।

इसमें वाल्टर लिंडनर को इस्तीफा देने/वापस बुलाने की मांग की गई थी। इस याचिका पर 1000 लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को शनिवार एक कार्यक्रम में कहा कि संस्कृत को जाने बिना भारत को पूरी तरह से समझना मुश्किल है।

देश में सभी मौजूदा भाषाएं, जिनमें आदिवासी भाषाएं भी शामिल हैं, कम से कम 30 प्रतिशत संस्कृत शब्दों से बनी हैं। भागवत ने कहा कि यहां तक कि डा. बी आर आंबेडकर ने भी इस बात पर अफसोस जताया था कि उन्हें संस्कृत सीखने का अवसर नहीं मिला क्योंकि यह देश की परंपराओं के बारे में जानने के लिए महत्वपूर्ण है।