एक शख्स की जमीन एक्वायर करने के बाद 15 साल तक कर्नाटक सरकार मुआवजा तय करने में भी हीलाहवाली करती रही। हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर मामले को टालती रही। लेकिन ये केस हाईकोर्ट पहुंचा तो सरकार को लेने के देने पड़ गए। हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ये तो डकैतों जैसा बर्ताव है। सरकार डकैतों की तरह से काम तो नहीं कर सकती।
सरकार की उस समय ज्यादा फजीहत हुई जब जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार संविधान के भी विरोध में जा रही है। संविधान में u/a 300A के तहत मुआवजे की गारंटी का अधिकार लोगों को दिया गया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कर्नाटक इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट बोर्ड (KIADB) तत्काल प्रभाव से 50 फीसदी मुआवजा जारी करे।
2007 में फाइनल नोटिफिकेशन के जरिये एक्वायर की गई थी जमीन
याचिकाकर्ता एमवी गुरुप्रसाद ने अपनी जमीन एक्वायर करने के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया था। सरकार ने प्रिलिमनरी आर्डर के तहत 9 जनवरी 2007 को जमीन पर कब्जा लिया था। उसके बाद 17 मई 2007 को फाइनल नोटिफिकेशन के जरिये जमीन पर पक्का कब्जा कर लिया था। सरकार ने Karnataka Industrial Areas Development Act, 1966 के तहत अधिग्रहण की ये कार्यवाही की थी।
KIADB के अधिकारियों ये कहते हुए फैसले का बचाव किया कि 17 मई 2007 को फाइनल नोटिफिकेशन के जरिये जमीन को एक्वायर किया गया था। ऐसे में याचिकाकर्ता को ये नहीं लौटाई जा सकती, क्योंकि जमीन जनहित के काम के लिए अधिग्रहित की गई थी। सरकार का कहना था कि उसने खातेदारों के नामों को शामिल करने के बाद एक Corrigendum (भूल सुधार) नोटिफिकेशन जारी किया था। ये 5 जून 2014 को निकाला गया था। सरकार का कहना था कि प्रोटोकॉल की वजह से मुआवजा देने में देरी हुई लेकिन अब सरकार इस तरफ तेजी से काम कर रही है।
डेढ़ दशक से नहीं दिया मुआवजा और अब सरकार दे रही बेसिर पैर की दलीलें
हाईकोर्ट ने कहा कि 9 जनवरी 2013 को KIADB के समक्ष याचिकाकर्ता ने दरखास्त की थी कि उन्हें मुआवजा जारी किया जाए। इसके बाद उन्होंने 1 जुलाई और 3 जुलाई 2014 को एक रिमांइडर भी अथॉरिटी को भेजा था। सरकार के Corrigendum (भूल सुधार) नोटिफिकेशन का जिक्र कर हाईकोर्ट ने कहा कि डेढ़ दशक का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक सरकार मुआवजा भी नहीं दे सकी। अदालत का कहना था कि सरकार के पास मुआवजा देने में देरी होने का कोई वाजिब कारण नहीं है। जबकि पब्लिक प्रापर्टी का अधिग्रहण सरकारी काम के लिए किया गया था। कोर्ट का कहना था कि KIADB को तत्काल मुआवजा जारी करना था लेकिन वो तो पीड़ित शख्स की रिट कैंसिल कराने के लिए कोर्ट में दलील दे रही है।