अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट में चली 40 दिनों की लंबी सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के वकीलों ने एक-दूसरे के खिलाफ जबर्दस्त तर्क दिए। कोर्टरूम में ऐसे कई मौके आए जब दोनों पक्षों (मुस्लिम पक्ष और रामलला विराजमान) के वकील ने एक-दूसरे को जबर्दस्त तरीके से हराने की कोशिश की।
यहां तक कि सुनवाई के अंतिम दिन मुस्लिम पक्ष (सुन्नी वक्फ बोर्ड) के वकील राजीव धवन ने कोर्टरूम में ही हिन्दू महासभा के वकील द्वारा पेश किए गए नक्शे को फाड़ दिया। बुधवार (16 अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में अंतिम सुनवाई की, अब इस पर फैसला आना है। अंतिम सुनवाई जैसे ही पूरी हुई, उसके बाद दोनों पक्षों के वकील कोर्टरूम से बाहर निकले।
इस दौरान रामलला विराजमान की तरफ से पेश वकील के परासरण और मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन दोनों एक-दूसरे की पीठ पर हाथ रखे बाहर निकले। जिस वक्त ये दोनों बड़े वकील वहां से गुजर रहे थे, उस वक्त उनके साथ उनके जूनियर्स की भी टीम साथ में थी। कोर्ट में मौजूद दूसरे वकील और अन्य लोग भी इस नजारे को देख रहे थे।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की कार पार्किंग में पहुंच कर के परासरण राजीव धवन का इंतजार करने लगे। थोड़ी ही देर में राजीव धवन भी वहां पहुंचे। दोनों वकीलों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया और फिर हंसते-मुस्कुराते हुए दोनों विदा हो लिए।
कौन हैं राजीव धवन: 73 साल के राजीव धवन सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील हैं। साल 1992 और 1994 में वो तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने मंडल कमीशन और अयोध्या केस में जबर्दस्त तरीके से जिरह की थी। इसके बाद वो सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील नियुक्त किए गए थे। धवन ने वकालत की शुरुआत कपिल सिब्बल के साथ की थी लेकिन बाद में वो उनसे अलग हो गए। धवन इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर हैं और अयोध्या मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से मुकदमा लड़ रहे हैं।
धवन ने इलाहाबाद और शेरवुड स्कूल, नैनीताल से अपनी स्कूली शिक्षा हासिल की है। बाद मेंउन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और लंदन यूनिवर्सिटी से हायर एजुकेशन पूरी की है। साल 1943 में अविभाजित भारत ( अब पाकिस्तान) में पैदा हुए। वह मानवाधिकार कार्यकर्ता होने के साथ-साथ इंटरनेशनल कमिशन ऑफ ज्यूरिस्ट के कमिश्नर भी हैं। उनके पिता शांति स्वरूप धवन ब्रिटेन में भारत के राजदूत, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और लॉ कमिशन के सदस्य रह चुके हैं।
कौन हैं के परासरण: रामलला विराजमान के वकील के परासरण सीनियर वकील हैं। 92 साल के परासरण तमिलनाडु में राष्ट्रपति शासन के दौरान 1976 में महाधिवक्ता रह चुके हैं। इसके अलावा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों के दौरान वो अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया भी रह चुके हैं। साल 2003 में उन्हें पद्म भूषण साल 2011 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया जा चुका है। साल 2012 में राष्ट्रपति ने उन्हें राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत किया था।
2016 के बाद परासरण को केवल दो मुकदमों के सिलसिले में ही सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होना पड़ा है। एक तो सबरीमला केस में और दूसरा अयोध्या विवाद में। 1970 के दशक से ही परासरण लगभग सभी सरकारों के चहेते कानूनी सलाहकार रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज और मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कौल ने धर्म से समझौता किए बगैर कानून के क्षेत्र में परासरण के योगदान को याद करते हुए उन्हें इंडियन बार का पितामह की संज्ञा दी है। सबरीमला केस में परासरण ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध के समर्थन में केस लड़ा था।
