किरन रिजिजू के कानून मंत्री के पद से हटने के बाद भी कॉलेजियम और मोदी सरकार के बीच रस्साकसी बदस्तूर चल रही है। सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश पर अमल तीन वकीलों को बॉम्बे हाईकोर्ट का जज बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अलबत्ता उस सिफारिश को फिर से ठंडे बस्ते में डाल दिया है जिसमें कॉलेजियम ने एडवोकेट सोमशेखर सुंदरसन को हाईकोर्ट का एडिशनल जज बनाने को कहा था।
सरकार के पास सोमशेखर के नाम की सिफारिश का प्रस्ताव कॉलेजियम ने फरवरी 2022 में भेजा था। जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट की तरफ से उनका नाम कॉलेजियम को अक्टूबर 2021 में रिकमंड किया गया था। सरकार ने ये कहकर सिफारिश पर अमल करने से इनकार कर दिया कि सोमशेखर ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उसकी आलोचना की है। हालांकि कॉलेजियम ने सरकार की आपत्ति को ये कहकर दरकिनार करने की कोशिश की कि एडवोकेट सोमशेखर किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं हैं। उन्होंने एजेंडे के तहत सरकार की आलोचना नहीं की थी।
कॉलेजियम ने दी थी सोमशेखर को क्लीन चिट पर सरकार नहीं मानी
लेकिन लगता नहीं है कि सरकार ने कॉलेजियम की क्लीन चिट को स्वीकार किया। नवंबर 2022 में सरकार ने कॉलोजियम से अपनी सिफारिश पर फिर से विचार करने को कहा था। लेकिन कॉलेजियम ने अपनी सिफारिश को वापस लेने से साफ तौर पर इनकार कर दिया। सरकार ने भी अड़ियल रुख दिखाते हुए एडवोकेट सोमशेखर के बाद भेजे गए तीन प्रस्तावों पर अमल करके साफ कर दिया कि वो सोमशेखर को क्लीन चिट देने के मूड़ में नहीं है।
ध्यान रहे कि कॉलेजियम की स्थापना सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत की गई थी। हालांकि फैसले में साफ है कि सरकार कॉलेजियम की सिफारिश को टाल नहीं सकती। लेकिन मोदी सरकार लगातार कॉलेजियम के फैसलों को रोक रही है। जस्टिस संजय किशन कौल ने कुछ समय पहले ओपन कोर्ट में सरकार को चेतावनी भी दी थी। लेकिन लगता नहीं है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की बात को गंभीरता से लिया भी है। किरन रिजिजू के कानून मंत्री रहते सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ काफी बातें कही गईं। खुद उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी संविधान को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर बताया था।
