एडवोकेट एमएल शर्मा ने आरोप लगाया है कि सीजेआई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला की प्रशांत भूषण ने मदद की। एमएल शर्मा ने एडवोकेट प्रशांत भूषण और अन्य के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। शर्मा ने कहा, “प्रशांत भूषण व अन्य ने सीजेआई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के शपथ पत्र तैयार करने और मीडिया से संपर्क करने में मदद की।” शर्मा ने सीजेआई को निशाना बनाने की साजिश का भी दावा किया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने सीजेआई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं।

महिला की ओर से लगाए गए आरोपों की जांच शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों वाली समिति कर रही है जिसने पिछले शुक्रवार को मामले में पहली सुनवाई की। वहीं, इस पूरे मामले का मीडिया में प्रकाशन पर रोक लगाने के लिए एक एनजीओ द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। हालांकि, कोर्ट ने आरोपों से जुड़ी खबरों के मीडिया में प्रकाशित करने से रोक की मांग की याचिका पर सुनवाई करने से बीते सोमवार को इंकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मामला शीर्ष अदालत में विचाराधीन है। ऐसे में किसी और हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।

शिकायतकर्ता महिला दिल्ली में सीजेआई के आवासीय कार्यालय में काम करती थी। उसने एक हलफनामे में सीजेआई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुये इसे उच्चतम न्यायालय के 22 न्यायाधीशों के आवास पर भेजा था। महिला ने अपने हलफनामे में न्यायमूर्ति गोगोई के प्रधान न्यायाधीश नियुक्त होने के बाद कथित उत्पीड़न की दो घटनाओं का जिक्र किया था। प्रधान न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न के आरोप की खबरें सामने आने पर शीर्ष अदालत ने 20 अप्रैल को ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित अत्यधिक महत्व का सार्वजनिक मामला’ शीर्षक से सूचीबद्ध विषय के रूप में अभूतपूर्व तरीके से सुनवाई की थी।

इसके बाद यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला बीते शुक्रवार को न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली आंतरिक जांच समिति के समक्ष पेश हुयी और अपना बयान दर्ज कराया। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की समिति ने चैंबर में अपनी पहली बैठक की। इस बैठक में समिति की अन्य सदस्य न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी भी उपस्थित थी। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि शिकायतकर्ता पूर्व कर्मचारी और उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल समिति के समक्ष पेश हुये। समिति ने सेक्रेटरी जनरल को इस मामले से संबंधित सारे दस्तावेज और सामग्री के साथ उपस्थित होने का निर्देश दिया था। सूत्रों ने बताया कि समिति ने शिकायतकर्ता का पक्ष सुना।

यौन उत्पीड़न आरोपों की समिति द्वारा की जा रही आंतरिक जांच, अदालत द्वारा नियुक्त पूर्व न्यायाधीश ए के पटनायक समिति द्वारा की जा रही जांच से अलग है। सीजेआई को फंसाने की व्यापक साजिश और पीठों की फिंक्सिं के बारे में एक वकील के दावे की जांच पटनायक समिति करेगी। न्यायमूर्ति बोबडे ने 23 अप्रैल को बताया था कि आंतरिक प्रक्रिया में पक्षकारों की ओर से वकीलों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था नहीं है क्योंकि यह औपचारिक रूप से न्यायिक कार्यवाही नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया था कि इस जांच को पूरा करने के लिये कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है और इसकी कार्रवाई का रुख जांच के दौरान सामने आने वाले तथ्यों पर निर्भर करेगा। न्यायमूर्ति बोबडे ने आंतरिक जांच के लिये इसमें न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी को शामिल किया था।

हालांकि, शिकायतकर्ता ने एक पत्र लिखकर समिति में न्यायमूर्ति रमण को शामिल किये जाने पर आपत्ति जताई थी। पूर्व कर्मचारी का कहना था कि न्यायमूर्ति रमण प्रधान न्यायाधीश के घनिष्ठ मित्र हैं और अक्सर ही उनके आवास पर आते जाते हैं। यही नहीं, शिकायतकर्ता ने विशाखा मामले में शीर्ष अदालत के फैसले में निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुरूप समिति में महिलाओं के बहुमत पर जोर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि समिति की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही न्यायमूर्ति रमण ने खुद को इससे अलग कर लिया। इसके बाद, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा को इस समिति में शामिल किया गया। इस तरह समिति में अब दो महिला न्यायाधीश हैं। (भाषा इनपुट के साथ)