राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भले ही बीफ खाने के विचार से सहमत न रहे हों, लेकिन उनका मानना था कि दूसरों को उनकी मर्जी की चीज खाने से रोकना ‘हिंसा’ से कम नहीं है। बापू से जुड़ी एक किताब में यह दावा किया गया है। ‘गांधीज़ सर्च फॉर द परफेक्ट डायट’ में अमेरिका के इतिहासकार निको स्लेट ने बापू के हवाले से कहा है कि भले ही वह गोहत्या के खिलाफ थे, इसके बावजूद वह मीट खाने वालों से ‘खुलकर’ जुड़े हुए थे।

पीटीआई के अनुसार, किताब में गांधी के हवाले से लिखा है, ‘यह लोगों को अमूमन पता ही है कि मैं पूरी तरह शाकाहारी और खाद्य सुधार का पैरवीकार हूं। हालांकि, लोगों को यह नहीं पता है कि अहिंसा इंसानों के साथ पशुओं पर ही लागू होती है और यह भी कि मैं मीट खाने वालों से जुड़ा हुआ हूं।’

स्लेट लिखते हैं कि गोहत्या का मामला गांधी के भारत में ‘सबसे बड़े विभाजनकारी मुद्दों’ में से एक है। यह उस वक्त भी ज्वलंत मुद्दा बन गया, जब 2015 में 52 साल के मोहम्मद अखलाक को गोहत्या के शक में यूपी के दादरी में पीट-पीटकर मार डाला गया। इसके बाद, पशु तस्करी के शक में भीड़ द्वारा लोगों को मारने के कई मामले अखबार की सुर्खियों के हिस्सा बने।

किताब के मुताबिक, गांधी ने कहा, ‘किसी शख्स को उसकी पसंद की चीज खाने से रोकना अहिंसा नहीं, हिंसा है। गाय को बचाने के लिए मुस्लिम भाई को मारना धर्म नहीं , बल्कि धर्म का अभाव है।’ किताब के अनुसार गांधी गोरक्षा के लिए हिंसा के इस्तेमाल को खारिज करते थे तो मुसलमानों को बदनाम करने के लिए गोरक्षा के इस्तमाल की भी निंदा करते थे।