ABG Shipyard Bank Fraud एबीजी शिपयार्ड एक समय देश की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी शिपयार्ड कंपनियों में से एक थी। एक समय पर कंपनी लगभग 16000 रुपए से अधिक के ऑडर थे। लेकिन अब यह कंपनी विवादों में फंस गई है। एबीजी शिपयार्ड पर देश के 28 बैंकों से 22,842 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी करने का आरोप है। जिसके चलते केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने कंपनी पर बैंक धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है।
मुनाफे से नुकसान का सफर: वित्त वर्ष 2012-13 तक कंपनी की वित्तीय स्थिति अच्छी थी। कंपनी को इस दौरान 107 का मुनाफा हुआ था। लेकिन साल बदलने के साथ-साथ कंपनी का मुनाफा घाटे में बदल गया। कंपनी का घाटा 199 करोड़ से बढ़ते हुए साल 2014-15 में 897 करोड़ और फिर मार्च 2016 तक 3704 करोड़ रुपए तक पहुंच गया।
वित्त वर्ष 2013-14 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने नए जहाज बनाने के आदेश रद्द होने, कर्ज की लागत बढ़ने, सूरत के दहेज शिपयार्ड की कम क्षमता उपयोग और 2007 में केंद्र सरकार की जहाज निर्माण पर सब्सिडी योजना बंद होने का हवाला देकर बैंको से अपने कर्ज को रिस्ट्रक्चर करवाया था।
कंपनी की शुरुआत: एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड की शुरुआत अहमदाबाद में मार्च 1985 में मगदल्ला शिपयार्ड प्राइवेट लिमिटेड के रूप में हुई थी। 1995 में कंपनी का नाम बदलकर एबीजी शिपयार्ड प्राइवेट लिमिटेड और फिर इसी साल इसका नाम बदलकर एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड कर दिया गया।
90 के दशक में एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड ने अपना पहला जहाज बनाया। कंपनी 2013 तक 165 से अधिक जहाजों का निर्माण कर चुकी थी। इस दौरान कंपनी को 80 प्रतिशत से अधिक ऑर्डर विदेशी ग्राहकों से मिले थें। वर्ष 2000 ने कंपनी को भारत सरकार से कोस्ट गार्ड के लिए 2 इंटरसेप्टर बोर्ड बनाने का ऑर्डर मिला। जिसके बाद वर्ष 2011 में केंद्र सरकार के द्वारा कंपनी को पनडुब्बियों सहित रक्षा जहाजों को भी बनाने का लाइसेंस दे दिया।
फरवरी 2012 में एबीजी शिपयार्ड की ऑर्डर बुक अपने उच्चतम स्तर 16,600 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। इस दौरान कंपनी के पास सूरत और दहेज में दो बड़े शिपयार्ड थे।
ABG Shipyard द्वारा अधिग्रहण: एबीजी शिपयार्ड ने 22 जनवरी 2006 को यूएई की कंपनी क्रॉसओसियन शिप रिपेयर लिमिटेड का अधिग्रहण किया था। जिसे मार्च 2008 में बेच दिया। इसके बाद कंपनी ने अपने सूरत शिपयार्ड के पास ही स्थित विपुल शिपयार्ड का अधिग्रहण किया।
एबीजी शिपयार्ड के द्वारा सबसे बड़ा अधिग्रहण आईसीआईसीआई बैंक और अन्य बैंको की मदद से वेस्टर्न इंडिया शिपयार्ड लिमिटेड का किया गया था। कंपनी ने वेस्टर्न इंडिया शिपयार्ड लिमिटेड में 60.15 प्रतिशत का कंट्रोलिंग स्टेक खरीदा था। यह कंपनी भारतीय नेव, कोस्ट गार्ड और अन्य कंपनियों के लिए शिप रिपेयर करने का कार्य करती थी।
ABG Shipyard का जमीन घोटाला: 2007 में एबीजी लिमिटेड ने 50 करोड़ रुपए की लागत से गुजरात में एक मैरिटाइम यूनिवर्सिटी बनाने के लिए एमओयू साइन किया था। जिसके लिए गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (GIDC) की तरफ से कंपनी को 1.21 लाख वर्ग मीटर जगह भी दी गई थी। जिसे सोमवार को जीआईडीसी ने जब्त कर लिया। जीआईडीसी के वाइस चेयरमैन एम थेन्नारसन का कहना है कि “हमने आवंटित जगह को फिर से अपने कब्जे में ले लिया है क्योंकि जिस उद्देश्य के लिए कंपनी को यह जगह दी गई थी। कंपनी ने उस पर अभी तक कोई कार्य नहीं किया है।”
गुजरात विधानसभा में पेश की गई कैग की रिपोर्ट के अनुसार एबीजी शिपयार्ड को अक्टूबर 2007 में 1.21 लाख वर्ग मीटर जमीन दी गई थी। उस समय वह कॉरपोरेशन का दम 1400 रुपए प्रति वर्ग मीटर था। लेकिन तब एबीजी शिपयार्ड को यह जगह मात्र 700 रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से दी गई। कैग की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया था कि गुजरात मैरिटाइम बोर्ड (GMB) कंपनी के द्वारा लीज की रकम न अदा करने को लेकर कोई भी एक्शन नहीं ले रहा है। गुजरात मैरिटाइम बोर्ड के अधिकारियों द्वारा इस बात को स्वीकार किया है कि एबीजी शिपयार्ड द्वारा अभी तक बकाया रकम को नहीं चुकाया है।
लोन बकाया को लेकर आईसीआईसी बैंक द्वारा नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में दाखिल की गई अर्जी पर सुनवाई करते हुए, एनसीएलटी ने 25 अप्रैल 2019 को इंसॉल्वेंसी एंड बंकृप्सी कोड (IBC) की धारा 33 के तहत कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया।
