आम आदमी पार्टी (आप) की आंधी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों में जीत के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए। आप ने 54 फीसद वोट हासिल कर 67 सीटें जीती हैं। अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य 14 फरवरी को पिछली बार की तरह इस बार भी रामलीला मैदान में ही शपथ लेंगे। केजरीवाल ने इसकी घोषणा मतदान के दिन ही कर दी थी। इसकी विधिवत घोषणा शाम को चुनाव नतीजे आने के बाद हुई। यह फैसला आप विधायक दल की बैठक में लिया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत अनेक नेताओं ने आप की भारी जीत के लिए केजरीवाल को बधाई दी है। कई नेताओं ने तो उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने का न्योता दिया है। चुनाव में आप का मुकाबला अनुमान के मुताबिक भाजपा से हुआ लेकिन ज्यादातर सीटों पर कमजोर ढंग से चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने आप की जीत में बड़ी भूमिका निभाई। आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से 31 हजार से ज्यादा मतों से भाजपा की नूपुर शर्मा को हराया। वहीं भाजपा की मुख्यमंत्री की दावेदार किरण बेदी कृष्णानगर सीट से आप के एसके बग्गा से 2277 मतों से हार गईं। कांग्रेस के प्रचार अभियान के प्रमुख अजय माकन को सदर सीट पर तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।


अरविंद केजरीवाल के अलावा आप के प्रमुख उम्मीदवार मनीष सिसोदिया, सोमनाथ भारती, राखी बिड़लान, सौरभ भारद्वाज, गोपाल राय, अलका लांबा, गिरीश सोनी, पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते आदर्श शास्त्री इत्यादि बड़े अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। कांग्रेस के कभी न हारने वाले अल्पसंख्यक नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है। वहीं आप के सभी अल्पसंख्यक उम्मीदवार चुनाव जीत गए हैं। चुनाव हारने वालों में भाजपा नेताओं में किरण बेदी के अलावा जगदीश मुखी, साहब सिंह चौहान, कुलवंत राणा, करण सिंह तंवर, रामवीर सिंह बिधूड़ी, कृष्णा तीरथ के नाम शामिल हैं।

वहीं कांग्रेस के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष चौधरी प्रेम सिंह, डॉक्टर अशोक कुमार वालिया, सुभाष चोपड़ा, राष्ट्रपति की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी, हारुन यूसुफ, मतीन अहमद, शोएब इकबाल, हसन अहमद, मुकेश शर्मा, महाबल मिश्र, राजकुमार चौहान, जय किशन, योगानंद शास्त्री, किरण वालिया चुनाव हार गए हैं। भाजपा के बड़े नेताओं में केवल पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ही रोहिणी से चुनाव जीतने में सफल रहे। भाजपा को तीन सीटों से संतोष करना पड़ा है।


इस बार भाजपा को 32.2 फीसद वोट मिले हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 46 फीसद वोट मिले थे। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को करीब 33 फीसद वोट मिले थे। विधानसभा की 70 सीटों में से 67 आप ने जीती हैं। दो सीटों पर आप के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे। भाजपा के 62 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस कोई सीट नहीं जीत पाई। उसके केवल चार उम्मीदवार मंगोलपुरी, मुस्तफाबाद, मटिया महल और बादली दूसरे नंबर पर रहे। नजफगढ़ में इनेलो के भरत सिंह दूसरे नंबर पर रहे।

इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा मतों से आप के महेंद्र यादव विकासपुरी सीट से 77665 से चुनाव जीते हैं। उनके अलावा बवाना से वेद प्रकाश, बुराड़ी से संजीव झा, देवली से प्रकाश, ओखला से अमानतुल्ला खां और सुल्तानपुर माजरा से संदीप कुमार की जीत का फासला भी 50 हजार से ज्यादा रहा। नोटा का इस्तेमाल का इस्तेमाल केवल 35916 मतदाताओं ने किया।

दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनाव में 70 सदस्यों वाली विधानसभा में अकाली दल के एक सदस्य समेत भाजपा के 32 और आप के 28 और कांग्रेस के आठ सदस्य थे। भाजपा के मना करने पर कांग्रेस से बिना मांगे समर्थन से केजरीवाल ने 28 दिसंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।

जन लोकपाल बिल न पेश कर पाने के चलते 14 फरवरी को केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर उपराज्यपाल से विधानसभा भंग करने की सिफारिश की थी। उपराज्यपाल के न मानने पर आप ने विधानसभा भंग करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। केजरीवाल के इस्तीफे के बाद 17 दिसंबर से साल भर के लिए दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था। चार नवंबर को विधानसभा भंग होने के बाद 12 जनवरी को दिल्ली विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की घोषणा हुई।

सात फरवरी को हुए मतदान में पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले एक फीसद ज्यादा 67.27 मतदान हुआ। उसके नतीजे मंगलवार को घोषित किए गए।

मई 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने न केवल दिल्ली की सभी सातों सीट जीत लीं बल्कि 70 में से 60 सीटों में बढ़त हासिल कर ली। जिन सीटों में भाजपा को लोकसभा चुनाव में बढ़त थी उनमें केजरीवाल और उनके सभी प्रमुख नेताओं की सीटें शामिल थीं। चुनाव में हर दल जीत के दावे कर रहे थे लेकिन आप ने बिना चुनाव घोषित हुए जून से चुनाव की तैयारी कर दी थी। उसके नतीजे सामने आ गए हैं। कांग्रेस में लगातार बिखराव हो रहा था। भाजपा अति आत्मविश्वास में थी।

लोकसभा चुनाव की भारी सफलता के बाद आप और कांग्रेस के सहयोग से बनने वाली सरकार पर फैसला महीनों टाला गया। इतना ही चुनाव का फासला लगातार टालते रहे। भाजपा की दिल्ली की परंपरा से हट कर दूसरे राज्यों की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने की घोषणा की गई। चुनाव अभियान की शुरुआत 10 जनवरी को प्रधानमंत्री की रामलीला मैदान की रैली से की घई। रैली सफल न होने पर अचानक आनन-फानन में पूर्व आइपीएस अधिकारी किरण बेदी को 15 जनवरी को भाजपा में शामिल कराकर उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया गया। बेदी की घोषणा से आप के लोगों को एक झटका तो लगा, क्योंकि बेदी उनकी ही पुरानी सहयोगी थीं। लेकिन वे तुरंत संभल गए आप नेता अरविंद केजरीवाल की सभा में भारी भीड़ का आना बदस्तूर जारी रहा।

भाजपा का सारा गणित कांग्रेस की ताकत बढ़ने से भी था। वैसे 24.50 फीसद वोट कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में आने पर भी त्रिशंकु विधानसभा आई थी। चार सीटों की कमी से भाजपा की सरकार नहीं बन पाई थी। फिर भी माना जा रहा था कि कांग्रेस के मुकाबले में आने से आप का वोट बंटेगा और कम वोट लाकर भी भाजपा पूर्ण बहुमत पा लेगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन को कांग्रेस की कमान मिलने पर ऐसा वातावरण बनता दिख रहा था। कांग्रेस के आपसी कलह ने उसे कमजोर हालत में पहुंचा दिया। इस चुनाव ने उसे लंबे समय के लिए हाशिए पर ला दिया।

जो गलती पिछली बार प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल के रहते चुनाव से दो महीने पहले डॉक्टर हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री घोषित कर भाजपा ने की थी उससे बड़ी गलती इस बार चुनाव से तीन हफ्ते पहले किरण बेदी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाकर कर भाजपा नेतृत्व ने की है। यह सही है कि मोदी का भाजपा पर पूरा कब्जा हो गया है। कोई भी इधर-उधर करने की कोशिश करेगा तो उसे पैदल कर दिया जाएगा। डा. हर्षवर्धन तो पार्टी के पुराने नेता थे। 2008 के चुनाव में उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते विजय कुमार मल्होत्रा को भाजपा ने मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया था। तब भाजपा 33 फीसद से ज्यादा वोट लेकर 32 सीट जीत पाई थी। किरण बेदी तो बाहरी थीं। पार्टी में आते ही वे चिरपरिचित पुलिस अधिकारी के अंदाज में लोगों को निर्देश देने लगीं। पार्टी के अनुशासन का डंडा चलते रहने के बावजूद हर इलाके में भारी भीतरघात हुआ। अनेक बाहरी लोगों को पार्टी में शामिल कराते ही सीधे टिकट पकड़ा दिया गया। वे सभी हारे जबकि आप में शामिल सभी दलबदलू चुनाव जीत गए।

भाजपा हाईकमान यानी मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को पता चल गया कि बेदी भी जीत की गारंटी नहीं है। तब केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की अगुआई में दो दर्जन मंत्रियों को दिल्ली में लगाया गया। पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के अलावा वहां के अनेक मंत्री दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। खुद प्रधानमंत्री ने दिल्ली के चारों कोने में चार सभाएं कीं। इससे भाजपा का चुनाव कठिन होता गया। भाजपा का पूरा तंत्र केजरीवाल की काट नहीं खोज पाया न ही केजरीवाल की तरह भाजपा से जनता से अपने को जोड़ने वाला कोई नेता दिखा।

दिल्ली के इतिहास में अब तक किसी भी दल को उतना जनसमर्थन नहीं मिला था। दिल्ली में 1993 में विधान सभा बनने के बाद हुए चुनाव में भाजपा 42.82 फीसद वोट और 29 सीटें जीत कर सरकार में आई थी। 1998 में कांग्रेस को 47.76 फीसद वोट और 52 सीटें मिली थी। 2003 के चुनाव में कांग्रेस को 48.13 फीसद वोट और 47 सीटें मिलीं। 2008 के चुनाव में कांग्रेस 39.88 फीसद वोट लाकर तीसरी बार सत्ता में आई लेकिन किसी भी दल को 54 फीसद वोट और 67 सीटें कभी भी नहीं मिली थीं।

आप नेताओं को भी इतने विशाल जनादेश का अंदाजा नहीं था। मतों की गणना सवेरे आठ बजे शुरू हुई और ईवीएम के चलते मतगणना तेजी से हुई। महज दो घंटे में ही सभी 70 सीटों के रुझान आ गए थे। रुझान आते ही सभी आप के नेता जनादेश पर खुशी जताते हुए अपने सदस्यों से संयम बरतने की सलाह देने लगे। खुद पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने अपनी पत्नी और पिता के साथ लोगों के बीच आकर दिल्ली की जनता और आप के कार्यकर्ताओं को बधाई दी और बड़ी जीत को बड़ी जिम्मेदारी बताया। कांग्रेस और भाजपा ने भी चुनाव नतीजों को स्वीकार कर केजरीवाल को बधाई दी। अजय माकन ने तो पार्टी महासचिव पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी।

भाजपा की इस करारी हार का ठीकरा भी कई नेताओं पर गिरने की आशंका है। आप समेत सभी दलों में दोपहर बाद से बैठकों का दौर लगातार जारी रहा। आप नेता केजरीवाल के एक सीट आने पर भी भाजपा को विपक्ष के नेता की कुर्सी देने की घोषणा को भी बड़ी राजनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा दे सकता है। लोकसभा में अपेक्षित संख्या न होने से कांग्रेस के नेता को विपक्ष का दर्जा न दिए जाने से इसे जोड़ा जा रहा है। चुनाव नतीजों के बाद देश भर के नेताओं ने केजरीवाल के पक्ष में जो बयान दिए हैं उससे भी भविष्य की राजनीति के संकेत मिलने लगे हैं।

 

 मनोज मिश्र