सु्प्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने बुधवार (26 सितंबर) को अपने अहम फैसले में आधार को कानूनी मान्यता तो दे दी है लेकिन उसकी अनिवार्यता को सीमित कर दिया है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि कहां-कहां आधार नंबर देना अनिवार्य होगा और कहां नहीं। आधार की वैधता को सबसे पहले साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। तब कर्नाटक हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस केएस पुट्टास्वामी ने इसकी वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उस वक्त केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। साल 2010 में यूपीए सरकार ने आधार को लॉन्च किया था और इसे विभिन्न सरकारी सेवाओं से जोड़ने की मुहिम शुरू की थी। तब जस्टिस पुट्टास्वामी ने इसे निजता का हनन बताया था और उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने कहा था कि सरकार इसे अनिवार्य नहीं कर सकती है। उस वक्त वो 86 साल के थे। जस्टिस पुट्टास्वामी अब 92 साल के हो गए हैं।

इस याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट में और कई जनहित याचिकाएं दाखिल की गईं। कोर्ट ने इन सभी को एक साथ जोड़कर सुनवाई शुरू की। अब इस फैसले को जस्टिस (रिटायर्ड) केएस पुट्टास्वामी बनाम केंद्र सरकार के नाम से जाना जाएगा। जस्टिस पुट्टास्वामी के मुताबिक आधार को चुनौती देने का ख्याल दोस्तों के साथ एक अनौपचारिक चर्चा के दौरान आया था। इन चह सालों में सुप्रीम कोर्ट में आधार से जुड़े कई मुद्दे उस केस में शामिल किए गए।

आधार की कानूनी लड़ाई से कांग्रेस और बाजपा की भी राजनीति जुड़ी है। जब आधार लागू हुआ था तब केंद्र में यूपीए की मनमोहन सरकार थी और उस वक्त बीजेपी इसका विरोध कर रही थी। आज केंद्र सरकार में बीजेपी है और कांग्रेस उसका विरोध कर रही है। जस्टिस के एस पुट्टास्वामी के घनिष्ठ मित्र और पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस और बिहार-झारखंड के गवर्नर रहे जस्टिस एम रमा जोयस भी इस केस से जुड़े हैं। पुट्टास्वामी ने रमा जोयस से चर्चा करने के बाद ही इसकी वैधानिकता को चुनौती दी थी। उस वक्त जोयस बीजेपी के राज्य सभा सदस्य थे। जोयस अभी भी कर्नाटक से बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं। इमरजेंसी के दौरान 1975 से 1977 तक रमा जोयस उसी बेंगलुरु सेंट्रल जेल में बंद थे जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को बंद किया गया था।