उच्चतम न्यायालय ने आधार कार्ड का इस्तेमाल सीमित करने के अपने पहले के आदेश में संशोधन करके मनरेगा, सभी पेन्शन योजनाओं, भविष्य निधि और राजग सरकार की प्रधानमंत्री जनधन योजना सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं में इसके स्वैच्छिक इस्तेमाल की गुरुवार को अनुमति दे दी।

प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इसकी अनुमति देते हुये अपने अंतरिम आदेश में कहा, ‘‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि आधार कार्ड योजना इस न्यायालय द्वारा अंतिम रूप से निर्णय लिये जाने तक विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक है और अनिवार्य नहीं है।’’

समाज के निर्धनतम वर्ग तक पहुंचने के इरादे से बनायी गयी ये सामाजिक कल्याण योजनायें सार्वजनिक वितरण प्रणाली और रसोई गैस योजनाओं के अतिरिक्त हैं जिनमें शीर्ष अदालत ने स्वैच्छा से आधार कार्ड के इस्तेमाल की अनुमति दी थी।

संविधान पीठ ने रसोई गैस और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ चार अन्य योजनाओं में आधार कार्ड के इस्तेमाल की अनुमति देते हुये कहा कि इस न्यायालय द्वारा केन्द्र सरकार को 23 सितंबर, 2013 से दिये अन्य सभी आदेशों का पालन करना होगा।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल, न्यायमूर्ति सी नागप्पन, न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताव राय शामिल हैं। न्यायालय ने कहा कि संविधान पीठ का गठन सिर्फ केन्द्र और रिजर्व बैंक, सेबी, इरडा, ट्राई, पेन्शन कोष नियामक प्राधिकरण और गुजरात तथा झारखण्ड जैसे राज्यों के आवेदनों पर निर्णय करने के लिये ही किया गया था। इन आवेदनों में न्यायालय के 11 अगस्त के आदेश में संशोधन का अनुरोध किया गया था।

पीठ ने कहा कि इन याचिकाओं का अंतिम रूप से निस्तारण करने के लिये वृहद पीठ का गठन करना होगा। इन याचिकाओं में अन्य सवालों के साथ यह सवाल भी शामिल है कि क्या निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है।

प्रधानमंत्री जनधन योजना, मनरेगा, सभी पेन्शन योजनाओं और भविष्य निधि सहित विभिन्न कार्यक्रमों को शामिल करने के अनुरोध का वरिष्ठ अधिवक्ता सोली सोराबजी, गोपाल सुब्रमणियम और श्याम दीवान सरीखे वकीलों ने पुरजोर विरोध किया।

जनधन योजना 23 अगस्त, 2014 को शुरू होने के एक सप्ताह में ही 18,096130 बैंक खाते खोलने के लिये गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल है। इस योजना के तहत सात अक्तूबर, 2015 तक 18.70 करोड़ बैंक खाते खोले जा चुके हैं।

आधार कार्ड योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दावा किया कि विशिष्ट पहचान पत्र प्राधिकरण के इस कार्यक्रम को किसी कानून या अधिसूचना का समर्थन प्राप्त नहीं है ओर यह निजी एजेन्सियों के माध्यम से बायोमेट्रिक विवरण प्राप्त कर रहा हैं।

उन्होंने कानूनी आपत्ति उठायी और कहा कि 11 अगस्त के आदेश में किसी भी प्रकार का संशोधन या तो उसी तीन न्यायाधीशों की पीठ को करना चाहिए या फिर पांच सदस्यीय संविधान पीठ में वे तीन न्यायाधीश भी होने चाहिए जिसे पहले वाला आदेश दिया था क्योंकि मौजूदा कार्यवाही तो इस आदेश पर पुनर्विचार जैसा है।

इस पर न्यायालय ने उस आदेश का हवाला दिया जिसमें तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इसमें संशोधन के अनुरोध पर विचार करने से इंकार कर दिया था और कहा था कि इस पर सिर्फ वृहद पीठ ही विचार करेगी।

संविधान पीठ ने करीब दो घंटे की सुनवाई के दौरान वकीलों से बार बार सवाल किया कि यह अन्य योजनाओं के लिये क्यों नहीं अच्छा है और अन्य कल्याणकारी योजनाओं में स्वेच्छा से आधार कार्ड के इस्तेमाल को न्यायालय कैसे रोक सकता है जबकि उसने रसोई गैस और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये इसकी अनुमति दी है।

पीठ ने सवाल किया कि क्या यह न्यायालय 50 करोड़ लोगों को, जो इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं, इसके इस्तेमाल से रोक सकती है। यदि रसोई गैस और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये इसकी अनुमति दी गयी है तो फिर मनरेगा और जन धन योजना के लिये क्यों नहीं?

केन्द्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने शुरू में कहा कि आधार कार्ड के स्वैच्छिक इस्तेमाल की अनुमति सारी योजनाओं के लिये दे दी जाये। इस पर पीठ ने कहा कि इस समय ऐसा नहीं हो सकता। इस पर अटार्नी जनरल रसोई गैस और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अलावा चार योजनाओं के लिये सहमत हो गये।