उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रविवार (25 जून, 2023) को नोएडा में ‘रामनाथ गोयनका मार्ग’ का उद्घाटन करेंगे। इसी दिन 48 साल पहले देश में इमरजेंसी की घोषणा की गई थी, जिसके बाद दो दिन तक सभी प्रेस बंद कर दी गईं थीं। इस दौरान, प्रिटिंग बंद कर दी गई, अखबारों के बंडल जब्त कर लिए गए और 200 से ज्यादा पत्रकारों की गिरफ्तारियां हुईं। दो दिन बाद जब अखबारों की प्रिंटिंग शुरू हुई तो, द इंडियन एक्सप्रेस ने अखबार के पहले पन्ने पर दो दिन अखबार ना छापने के लिए माफी मांगी और इंदिरा सरकार की सेंसरशिप के एडिटोरियल पेज को खाली छोड़ दिया।
इंदिरा की इमरजेंसी के सामने गोयनका की निर्भीक पत्रकारिता
रामनाथ गोयनका के नेतृत्व वाले अखबार ने इंदिरा सरकार के इमरजेंसी के फैसले के विरोध में यह कदम उठाया था। बाद में ‘स्टेटमैन’ जैसे अखबारों ने भी सेंसरशिप के विरोध में अपने एडिटोरियल को ब्लैंक रखने का कदम अपनाया था। ये बात 25 जून, 1975 की है, जब दिल्ली के अचानक बहादुर शाह जफर मार्ग पर बिजली गुल होने से बड़ी-बड़ी प्रिंटिंग प्रेस बंद हो गई थीं। उस समय देश के अखबारों के कार्यालाय यहीं पर मौजूद थे, ऐसे में सभी के मन में सिर्फ एक सवाल था- अब लोगों तक खबरें कैसे पहुंचाई जाएंगी? चिंता इस बात की भी थी कि इंदिरा सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया था।
इमरजेंसी में 2 दिन बंद रही थी प्रेस
इसके बाद कुछ दिनों तक अखबारों की प्रिंटिंग रोक दी गई, कई जगहों पर छापेमारी हुई, विदेशी पत्रकारों को निष्कासित भी कर दिया गया। बड़ी बात ये रही कि उस दौर में 200 से ज्यादा पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया था। इसके दो दिन बाद 28 जून को जब फिर से अखबारों की प्रिटिंग शुरू हुई तो द इंडियन एक्सप्रेस ने अखबार के पहले पन्ने पर दो दिन न्यूजपेपर ना छापने के लिए माफी मांगी और सरकार के सेंसरशिप वाले एडिटोरियल पेज को ब्लैंक छोड़ दिया। ये द इंडियन एक्सप्रेस का वो क्रांतिकारी कदम रहा जिसने ना सिर्फ तब की इंदिरा सरकार को बड़ा संदेश दिया, बल्कि निडर पत्रकारिता की परिभाषा भी रेखांकित कर दी।
प्रेस सेंसरशिप के सख्त खिलाफ थे रामनाथ गोयनका
अखबार ने न्यूजपेपर ना छापने के इंदिरा सरकार के कदम के विरोध में यह कदम उठाया, जिसे बाद में दूसरे अखबारों ने भी अपनाया। रामनाथ गोयनका ब्रिटिश शासनकाल के समय से ही प्रेस सेंसरशिप के खिलाफ थे। अखबार ने इमरजेंसी और इंदिरा सरकार की नीतियों के खिलाफ कई रिपोर्ट्स छापीं और सरकार से इन्हें लेकर लगातार सवाल उठाए। रामनाथ गोयनका ने सेंसरशिप की आलोचना करते हुए कई कार्टून भी तैयार किए। जब उनसे पूछा गया कि भारी दबाव के बावजूद वे सरकार के साथ लड़ाई जारी रखने में कैसे कामयाब रहे, तो उन्होंने जवाब दिया, “मेरे पास दो विकल्प थे: अपने दिल की बात सुनूं या अपनी जेब की। मैंने अपने दिल की बात सुनना चुना।”
भारत के संविधान पर गोयनका के भी दस्तखत
रामनाथ गोयनका का जन्म तीन अप्रैल 1904 को बिहार के दरभंगा जिले में हुआ था। उन्होंने फ्री प्रेस जर्नल में डिस्पैच वेंडर का काम भी किया था और बाद में 1936 में इंडियन एक्सप्रेस की शुरुआत की। 1941 में उन्हें नेशनल न्यूजपेपर एडिटर्स के सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। वे देश की पहली संविधान सभा के सदस्य भी थे। भारत के संविधान पर उनके भी दस्तखत हैं। आज भी द इंडियन एक्सप्रेस रामनाथ गोयनका के दिखाए मार्ग पर चल रहा है और निर्भीक, निष्पक्ष पत्रकारिता की दिशा में नए आयाम गढ़ रहा है।