जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान निरस्त होने और प्रदेश दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित होने के बाद केंद्र सरकार लगातार दोनों प्रदेशों में स्थिति सामान्य करने की कोशिश में जुटी है। हालांकि अभी कश्मीर के मौजूदा हालात कैसे हैं इस पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा में चार बार विधायक रहे और सीपीआई(एम) की सेंट्रल कमेटी के सदस्य मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत की है। यहां हम आपको उनसे पूछे गए सवाल-जवाब जस के तस बता रहे हैं-

सवाल- जमीनी स्तर पर जम्मू-कश्मीर में हालात कैसे हैं?
जवाब- स्थिति बहुत दर्दनाक है। यह उन लोगों के लिए अविश्वसनीय है जिन्होंने पहले इसका अनुभव नहीं किया। यह कश्मीरियों के लिए एक भयानक समय है। यह हमारे देश के भविष्य, इसकी विनम्रता और चरित्र पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। जीवन लकवाग्रस्त हो गया है। स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज खुले हैं मगर वहां ना शिक्षक हैं और ना ही छात्र हैं। इससे पहले भी हमने प्रदेश में उथल-पुथल देखी है। पिछले करीब तीस सालों यानी साल 1989 से प्रदेश में खून खराबा हो रहा है। विनाश हो रहा है, हिंसा हो रही है। वो लोग जो देश की एकता के लिए खड़े रहे, बलिदान दिया, गोलियों का सामना किया और आम लोग आज खुद को धोखा खाया हुआ महसूस कर रहे हैं। यहां आगे और खतरा है। इस पर तुरंत ध्यान देने की जरुरत है।

सवाल- मगर क्या कश्मीर में विरोध-प्रदर्शन में कमी सामान्य स्थिति का तो संकेत नहीं है?
जवाब- आपने तिहाड़ जेल में कितनी बार प्रदर्शन देखें हैं? कश्मीर आइए और खुद देख लीजिए। मैं कहानियां नहीं बना रहा, मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूं। लोकतंत्र का मूल सिद्धांत सरकार को जवाबदेह बनाना है। मगर हमारे मामले में है, अनुच्छेद 370 को मनमाने ढंग से निरस्त कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर में संविधान को नष्ट कर दिया गया। राज्य स्वंय दो शाखाओं में बंटा है मगर उनका दावा है कि वो जम्मू-कश्मीर के लोगों को देश के बाकी हिस्सों के साथ जोड़ रहे हैं। क्या यही एकीकरण है?

जब मैं कश्मीर लौटता हूं तब मुझे अपने भाग्य का पता नहीं होता। मेरी कई साथी या तो हाउस अरेस्ट हैं यहां नजरबंदी कैंपों में हैं। युवा जेलों में सड़ रहे हैं, मगर उनके परिजनों को नहीं पता की उनकी औलादें कहां हैं। भारत के संविधान के कम से कम मौलिक अधिकारों को तो जम्मू-कश्मीर में काम करना चाहिए था। क्या मुझे अपनी पीड़ा व्यक्त करने की भी स्वतंत्रता नहीं है? अपनी नजरबंदी के कारणों को जानने का हक नहीं? मगर भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर में अस्तित्वहीन है।

देश पर राज करने वाले नेताओं की सनक के कारण सिर्फ आज ऐसा है। वो ऐसे बात करते हैं जैसे लोग खुद दुख सहने को तैयार है। अगर ये सच हैं तो दिल्ली को लोगों को एक सप्ताह इंटरनेट के बिना जीवन-बसर करने दें। सरकार कहती है कि अनुच्छेद 370 के प्रावधान निरस्त होने के बाद प्रदेश में कोई रक्तपात नहीं हुआ। हां… कब्रिस्तान में सन्नाटा है। मेरे कश्मीर, हमारे कश्मीर को कब्रिस्तान मत बनाओ।

सवाल- प्रदेश में राजनीतिक स्थिति कैसी है?
जवाब- सिर्फ एक राजनीतिक दल सक्रिय है। बाकी राजनीतिक पार्टियों को हाथ जोड़कर बैठना पड़ता है। यह मार्शल लॉ की तरह है। हम इस देश को लोगों से अपील करते हैं कि बहुत देर होने से पहले अपनी नींद से बाहर आइए। यहां देश के बाकी हिस्सों में लोकतांत्रिक ताकतों से निराशा है। अगस्त (अनुच्छेद 370 निरस्त) में लिया फैसला वापस लेना होगा। यह हमारा संकल्प है। ये जब होगा, ये कैसे होगा, हमारे मामले के न्यायाधीश इस देश के लोग हैं। हम सुप्रीम कोर्ट से न्याय पाने के लिए आशांवित हैं।

हमारी निराशा है कि अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने से पहले संसद में तो कम से कम उचित बहस होनी चाहिए थी। आपको हमारे विचार पूछने चाहिए थे। यह रिश्ता आपसी है। मगर हमें इसकी जानकारी नहीं दी गई बल्कि जेलों में ठूंस दिया गया। उनका नारा है सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास। मगर कश्मीर विश्वास की नई प्रयोगशाला है। कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने दीजिए, अगर उन्हें लगता है कि वो वहां सरकार बना लेंगे।

सवाल- पिछले 90 दिनों में आजिविका किस तरह प्रभावित हुई है?
जवाब- आप कल्पना कर सकते हैं। हमारे तीन मुख्य व्यावसायिक क्षेत्र हैं। कालीन बुनाई का काम हमारा पारंपरिक शिल्प और व्यवसाय है। अब यहां बुनकरों के लिए कोई काम नहीं है। कच्छा माल उपस्थित नहीं है। लाखों लोग कालीन बुनाई और व्यापार से अपनी आजिविका चलाते हैं। यहां इंटरनेट नहीं है जिससे व्यापारी अपना माल विदेशी ग्राहकों को बेच सकें।

हमारा दूसरा क्षेत्र है पर्यटन। पांच अगस्त से पहले स्थानीय प्रशासन ने अमरनाथ यात्रियों से वापस लौटने के लिए कहा गया। पर्यटकों को होटलों से बाहर निकाला गया और प्रदेश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। कहा गया कि यात्रा में आतंकी हमला हो सकता है, इसके चलते प्रशासन ने यह कदम उठाया।

हमारी बहुत सी सेब की फसल सड़ गई क्योंकि इसे कश्मीर से बाहर नहीं ले जाया जा सकता था। ग्रामीणों के पास कोई काम नहीं है। सार्वजनिक परिवहन चल नहीं रहा। दुकानें खुलती हैं मगर मुश्किल से एक-दो घंटे के लिए।