तथाकथित संत आसाराम को पैरोल देने के लिए 65 साल पुराने कानून के तहत विचार किया जाएगा। रेप मामले में जोधपुर की जेल में बंद संत ने 20 दिनों की पैरोल मांगी थी। लेकिन डिस्ट्रिक्ट एडवाइजरी पैरोल कमेटी ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि 2021 के नियमों के तहत उसे पैरोल पर रिहा नहीं किया जा सकता। आसाराम ने कमेटी के फैसले मानने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट के समक्ष फिर से अपनी अर्जी दायर की थी।

राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस विजय बिश्नोई और जस्टिस योगेंद्र कुमार पुरोहित की बेंच ने डिस्ट्रिक्ट एडवाइजरी पैरोल कमेटी को आदेश दिया कि वो आसाराम की याचिका पर फिर से विचार करे। हाईकोर्ट ने कहा कि पैरोल के लिए राजस्थान प्रिजनर्स रिलीज रूल्ज 1958 के तहत विचार किया जाए। डिस्ट्रिक्ट एडवाइजरी कमेटी ने आसाराम की अपील को राजस्थान प्रिजनर्स रिलीज ऑन पैरोल रूल्ज 2021 के तहत खारिज कर दिया था।

वकील बोला- 2018 में आसाराम को सुनाई गई थी सजा

आसाराम ने डिस्ट्रिक्ट एडवाइजरी पैरोल कमेटी के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उसके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया जो हितेश सप्रा के केस में दिया गया था। आसाराम के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल को ट्रायल कोर्ट ने अप्रैल 2018 में सजा सुनाई थी। उसे धारा 370(4), 342, 506, सेक्शन 376 (2) (डी) (एफ) के साथ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 के सेक्शन 23 के तहत सजा सुनाई गई थी।

दोषी को पैरोल देने के लिए 1958 के कानून के तहत हो विचार

वकील का कहना था कि आसाराम को पैरोल देने के लिए 1958 के नियम को ध्यान में रखा जाए, ना कि 2021 के नियम को, क्योंकि पैरोल रूल्ज 30 जून 2021 को बदले गए थे। जबकि आसाराम को सजा 2018 में ही सुनाई जा चुकी थी। लिहाजा 1958 के नियम को ध्यान में रखकर ही आसाराम की पैरोल पर विचार किया जाए। हाईकोर्ट ने पैरोल कमेटी को आदेश दिया कि आसाराम की अपील पर छह सप्ताह के भीतर फिर से विचार हो।

दूसरी तरफ असिस्टेंट एडवोकेट जनरल ने आसाराम की याचिका का विरोध तो किया लेकिन वो इस बात पर कोई विरोध नहीं कर सके कि आसाराम की याचिका पर 1958 के नियम के तहत विचार किया जाए। आसाराम ने 20 दिनों की पैरोल के लिए जेल प्रशासन से अपील की थी।