स्वराज अभियान 21 मई से मराठवाड़ा और बुंदेलखंड में दस दिवसीय पदयात्रा करेगा। इस दौरान सूखे की मार झेल रहे किसानों की हालत का जायजा लेने और जमीनी हकीकत का आकलन करने के बाद वह आगे की राह तय करेगा। यात्रा के दौरान सूखा प्रबंधन और राहत कार्य में स्थानीय पहल और भागीदारी बढ़ाने के लिए सभी तहसील और जिलों में राहत समितियों का निर्माण होगा। सूखाग्रस्त गांवों को देखने और वहां के लोगों को मदद करने के लिए देश भर के विद्यार्थियों और युवाओं का आह्वान किया जाएगा।
स्वराज अभियान की ओर से सूखे पर राष्टीय विमर्श के दौरान यह घोषणा की गई। विमर्श का विषय था ‘चंूकि दिल और दिमाग नहीं सूखा’। इस दौरान देश भर के कृषि विशेषज्ञ और किसान कार्यकर्ता एक साथ नजर आए। विमर्श में इस बात का भी जिक्र किया गया कि देश के 13 राज्यों में कुल जनसंख्या के पांचवें हिस्सा का दोगुना, यानी 54 करोड़ किसान और ग्रामीण सूखा की गिरफ्त में हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जो लगातार दूसरे या तीसरे साल सूखे की मार झेल रहे हैं। ये लोग किसी तरह जीवन-यापन कर रहे हैं। भूखे-प्यासे घरेलू पशु मर रहे हैं। खेत बंजर पड़े हैं और जीवन में ठहराव आ गया है।
सूखे की राजनीतिक अर्थव्यवस्था नामक सत्र की अध्यक्षता इन्क्लूजिव मीडिया फॉर चेंज के संपादक विपुल मुगद्ल ने की। सूखे की राजनीति पर पुस्तक ‘एवरीवन लव्स अ गुड ड्राउट’ के लेखक पी सार्इंनाथ ने सूखा की राजनीति और अर्थव्यवस्था का विश्लेषण् पेश किया और इससे निपटने के कई उपाय सुझाए।
स्वराज अभियान की संयोजन समिति के सदस्य प्रशांत भूषण ने अभियान की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर सूखा राहत जनहित याचिका में उठाए गए महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की। इस याचिका में अपील की गई है कि अदालत केंद्र सरकार और 12 राज्यों को सूखा प्रबंधन नियमावली के तहत तुरंत राहत पहुंचाने का निर्देश दे। याचिका पर सुनवाई हो पूरी हो चुकी है और फैसला जल्द ही आने वाला है। भूषण ने बताया कि कैसे केंद्र सरकार ने कोर्ट में सारी कोशिशें की कि वह अपनी जिम्मेदारी से बच जाए। यहां तक कि सरकार ने कोर्ट में गलत और भ्रामक सूचनाएं दी।
सूखा पर दृष्टिकोण नामक पहले सत्र की अध्यक्षता स्वराज अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और समाजशास्त्री प्रोफेसर आनंद कुमार ने की। इस सत्र में ‘डाउन टु अर्थ’ पत्रिका के सूखा विशेषांक का विमोचन भी हुआ। जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय सह-संयोजक और कृषि कार्यकर्ता अभीक साहा ने बताया कि स्वराज अभियान का जय किसान आंदोलन और इसके साथी किसान संगठन अक्तूबर 2015 से सूखे पर काम कर रहे हैं। सूखा प्रभावित जिलों में चार यात्राएं हुर्इं और सर्वे किए गए। सर्वे में कई चौंकाने वाले नतीजे सामने आए जिसके बारे में सरकार को बताया और कार्रवाई के लिए दबाव बनाया गया। किसान कार्यकर्ता, किसान नेता और पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने दूसरे सत्र की अध्यक्षता की।