कोरोना वायरस का संक्रमण देश में बहुत तेजी से फैल रहा है। इसके प्रकोप को देखते हुए देश को लॉकडाउन कर दिया गया है। नौकरशाहों की अगुवाई में कोरोना से जंग जारी है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सिविल सेवकों पर अधिक भरोसा कर रहे हैं और उनसे बातचीत कर सलाह-मशविरा लेते हैं। लेकिन रोज-रोज बड़ी संख्या में नौकरशाही द्वारा जारी किए जा रहे आदेशों और दिशानिर्देश से कई स्टेकहोल्डर, व्यवसायों और आम जनता के बीच अराजकता पैदा हो रही है। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, राज्यों और केंद्र को मिलकर अधिकारियों ने अबतक 4000 से ज्यादा ऑर्डर जारी किए हैं।

रिसर्च के मुताबिक अबतक चार महीनों में 4,130 आदेश जारी किए जा चुके हैं। द प्रिंट से बात करते हुए पूर्व आईएएस अधिकारी पदमवीर सिंह ने कहा कि कोविद -19 संकट के प्रति भारतीय नौकरशाहों की प्रतिक्रिया और अधिक सरल हो सकती है। हालही में जारी किए गए कुछ आदेश फील्ड-स्तर पर काम कर रहे एक साधारण सरकारी सेवक के समझ के परे थे।

सिंह ने कहा कि लॉकडाउन 2.0 और 3.0 में, “डूस एंड डोनट्स” (क्या करें और क्या नहीं) की सूची जारी की गई थी। जिसमें बताया गया था कि मॉल, पूजा स्थल और ऐसे स्थान जहां भीड़ इकट्ठा हो सकती है बंद रहेंगे। यह आदेश बहुत साधारण और मात्र दो लाइन का हो सकता था। लेकिन जारी किए गए आदेश में विवरण थे कि कौन से उद्योग खुल सकते हैं और क्या शराब और पान की दुकानें संचालित हो सकती हैं और नीचे इनकी अनुमतियों का विवरण भी था जो लोगों के लिए समझना काफी मुश्किल था।

राजस्थान ILD कौशल विश्वविद्यालय के कुलपति और पूर्व आईएएस अधिकारी ललित के.पंवार का कहना है कि ये 4,000 अधिसूचनाएं और कार्यकारी आदेश इस संकट से लड़ने के लिए जारी किए गए थे। वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए, भारत ने संकट को बहुत अच्छी तरह से मैनेज किया है। इतने सारे आदेशों से लोगों के बीच अराजकता पैदा करने को लेकर पंवार ने कहा मुझे नहीं लगता कि सिविल सेवकों ने अराजकता पैदा की है। उन्होंने इस महामारी को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और बहुत अच्छे से मैनेज किया है। इस तरह के घातक संकट में, किसी प्रकार की अराजकता अपरिहार्य है।

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