जम्मू-कश्मीर की राजनीति में कई सालों बाद फिर अनुच्छेद 370 का मुद्दा ना सिर्फ गरमाया है बल्कि कहना चाहिए पूरी तरह सक्रिय भी हुआ है। गुरुवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार ने अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए एक प्रस्ताव पारित करवा दिया। सदन से पारित हुए उस प्रस्ताव में केंद्र सरकार के 5 अगस्त वाले फैसले को गलत बताया गया।
अनुच्छेद 370 को लेकर धर्मसंकट में कांग्रेस
अब उस प्रस्ताव को लेकर देश के सामने दो तस्वीरें प्रमुखता से सामने आईं- एक रही उमर का वो प्रस्ताव लाना और दूसरी रही बीजेपी का जमकर हंगामा करना। लेकिन इन दो तस्वीरों के बीच में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस कहीं खो सी गई, उसका ना कोई स्टैंड देखने को मिला, ना कोई स्पष्ट बयान आया और पार्टी पूरी तरह असमंजस की स्थिति में दिखाई दी। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है जब कांग्रेस 370 के मुद्दे पर धर्मसंकट में फंस गई हो।
पूर्ण राज्य की बात, 370 पर साधी चुप्पी
कांग्रेस के कुछ नेताओं को अगर छोड़ दिया जाए तो पार्टी कभी भी 370 का सीधा समर्थन नहीं करती है। लेकिन राजनीति का खेल ऐसा है कि वो उसका विरोध कर बीजेपी को भी सही नहीं दिखा सकती है। इसी वजह से जब भी देश की राजनीति में यह मुद्दा गरमाता है, कांग्रेस की स्थिति कन्फ्यूज वाली बन जाती है। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस ने अपने जम्मू-कश्मीर के घोषणा पत्र में भी कहीं यह नहीं बोला था कि वो 370 की बहाली करेंगे। उन्होंने सिर्फ पूर्ण राज्य के दर्जे की बात कही थी।
राहुल गांधी खुद 370 पर बोलने से बच रहे
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी जम्मू-कश्मीर में कई रैलियां की, लेकिन अनुच्छेद 370 को लेकर चुप्पी थी। यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर दोनों ही तरफ से बैटिंग कर रही है। उसके नेता जब बोलते हैं कि 370 को हटाने का तरीका संवैधानिक नहीं था, इससे वो घाटी के मुसलमानों को अपने पाले में रखने की कोशिश करते हैं, लेकिन अगर उनसे सवाल पूछा जाए कि क्या 370 को वापस भी वे लेकर आएंगे, कोई जवाब सामने से नहीं आता है। यही बताता है कि कांग्रेस यहां एक ऐसी असमंजस वाली स्थिति में फंसी हुई है कि ना खुलकर विरोध कर सकती है और ना ही खुलकर समर्थन।
जो हाल प्राण प्रतिष्ठा के दौरान, फिर वहीं दौर
कांग्रेस के लिए यह राम मंदिर जैसी ही स्थिति बन चुकी है क्योंकि वहां भी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जाने को लेकर ऐसा ही धर्मसंकट था। हिंदू वोट भी साथ रखना था और मुस्लिमों को तो नाराज करने का सवाल ही खड़ा नहीं होता। अब यहां भी कांग्रेस काफी संभलकर चलने की कोशिश कर रही है। उसे इस बात का अहसास है कि उसका एक गलत कदम बीजेपी को सबसे बड़ा मौका देने का काम करेगा। वैसे मौका तो अभी से मिल भी चुका है।
बीजेपी ने बना लिया बड़ा मुद्दा
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अगर कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रस्ताव का विरोध नहीं किया तो उस स्थिति में उसका वही हाल होगा जो 370 और 35ए का हुआ था। योगी का संदेश बताने के लिए काफी है कि अगर कांग्रेस ने इस विवाद पर अपना स्टैंड स्पष्ट नहीं किया तो बीजेपी जरूर उसे चक्रव्यूह में फंसाने वाली है, यह चक्रव्यूह राष्ट्रवाद का होगा, इसमें हिंदुत्व का तड़का होगा और देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।
झारखंड-महाराष्ट्र चुनाव पर क्या असर?
अब बीजेपी जरूर चाहती है कि कांग्रेस अपना स्टैंड क्लियर करे, लेकिन कांग्रेस ऐसा क्यों नहीं करने वाली है, यह समझना जरूरी हो जाता है। असल में इस समय महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। दोनों ही राज्यों में मुकाबला सीधे-सीधे बीजेपी बनाम कांग्रेस का है। एक राज्य में अगर महा विकास अघाड़ी है तो दूसरे में जेएमएम गठबंधन चुनौती दे रहा है। इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी के लिए स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रवाद का मुद्दा भी जरूरी रहने वाला है।
राष्ट्रवाद के नेरेटिव पर आइसोलेट होने का डर
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बात जब भी राष्ट्रवाद मुद्दे की आएगी, पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और फायर ब्रैंड नेता योगी आदित्यनाथ को आगे कर दिया जाएगा। बीजेपी के लिए तो जम्मू-कश्मीर का मुद्दा भी भावनाओं वाला ही रहा है, उसकी विचारधारा एक देश एक विधान और एक निशान वाली रही है। समाज का एक बड़ा वर्ग भी इसी सिद्धांत से सहमत नजर आता है, ऐसे में कांग्रेस के लिए जवाब देना मुश्किल हो ही जाएगा। इसके ऊपर कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि बीजेपी को फिर राष्ट्रवाद की पिच पर उसे आइसोलेट करने का मौका मिल जाए।
राहुल का ‘संविधान बचाओ’ ना आ जाए खतरे में
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कड़ी मशक्कत के बाद राहुल गांधी ने संविधान वाले नेरेटिव को धार देने का का कम किया है, लोकसभा चुनाव में उसका असर भी देखने को मिला था। संविधान बचाओ अभियान का बीजेपी के पास अभी तक कोई ठोस काउंटर नहीं आया है, ऐसे में किसी भी कीमत पर कांग्रेस इस बढ़त को गंवाना नहीं चाहती। यह भी एक वजह है कि 370 का मुद्दा आते ही कांग्रेस साइलेंट क्यों पड़ जाती है।
कहीं 370 की वजह से ही तो उमर सरकार से दूरी?
वैसे अब तो कांग्रेस की इस चुप्पी के पीछे भी सोची-समझी रणनीति दिख रही है। याद करने की जरूरत है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के जब नतीजे आए, कांग्रेस ने सरकार में शामिल होने से ही मना कर दिया था। तर्क दिया गया कि जब तक पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा, सरकार में शामिल नहीं हुआ जाएगा। लेकिन यहां भी जानकार मानते हैं कि उमर अब्दुल्ला के 370 को लेकर एक्सट्रीम विचारों से बचने के लिए ही कांग्रेस ने जीत के बाद भी खुद को सत्ता से दूर रखने का फैसला किया।
उसे इस बात का अहसास है कि 370 का मुद्दा सिर्फ राष्ट्रवाद का ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। अगर बीजेपी को मौका लगा वो तुरंत कांग्रेस को देश विरोधी बता देगी जिसका सीधा नुकसान महाराष्ट्र और झारखंड में उठाना पड़ सकता है। ऐसे में कांग्रेस ने ना अभी 370 पर कुछ बोलेगी और शायद आगे भी ऐसी ही सियासी चुप्पी साधे रखेगी।
क्या था यह अनुच्छेद 370?
अक्टूबर 1949 में अस्तित्व में आया अनुच्छेद 370 कश्मीर को आंतरिक प्रशासन के मामलों में स्वायत्तता प्रदान करता था, तथा उसे विदेशी मामलों, वित्त, रक्षा और संचार को छोड़कर सभी मामलों में अपने नियम बनाने की अनुमति देता था। भारतीय प्रशासित क्षेत्र ने एक अलग संविधान और एक अलग ध्वज की स्थापना की और बाहरी लोगों को राज्य में संपत्ति के विशेषाधिकार से वंचित कर दिया। अनुच्छेद 35A, 1954 के अनुच्छेद 370 में जोड़ा गया एक और प्रावधान, राज्य के विधायकों को स्थायी राज्य निवासियों के लिए अलग अधिकारों और विशेषाधिकारों की गारंटी देने में सक्षम बनाता था।
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