तकरीबन 30 साल पहले भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव द्वारा लिया गया आर्थिक उदारीकरण का फैसला आज भी किसी सरकार के सबसे बड़े फैसलों में गिना जाता है। भारत की अर्थव्यवस्था को खोलने और भविष्य के भारत की तस्वीर तैयार करने में यह फैसला अहम रहा है। हालांकि, इस फैसले की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं रही है। बताया जाता है कि नरसिम्हा राव ने इकोनॉमी खोलने का यह फैसला महज 90 मिनट की एक बैठक के बाद ले लिया था।

आज से 30 साल पहले 20 जून 1991 को जब कांग्रेस के संसदीय पैनल ने प्रधानमंत्री पद के लिए पीवी नरसिम्हा राव को चुना, तो उसी दौरान देश के सामने आर्थिक संकट भी खड़ा था। संसदीय पैनल की बैठक के बाद पीवी नरसिम्हा राव सरकार गठन के दावे के साथ राष्ट्रपति से मिलने जाने वाले थे। लेकिन इससे पहले कि वे राष्ट्रपति से मिलते और पीएम पद की शपथ लेते, उन्हें देश के लिए एक अहम फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ा।

क्या था पूरा घटनाक्रम?: बताया जाता है कि संसदीय पैनल से पीएम पद के लिए नाम स्पष्ट हो जाने के बाद नरसिम्हा राव सबसे पहले 10 जनपथ में सोनिया गांधी से मिलने गए थे। जब वे लौट रहे थे, तभी उन्हें कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा का संदेश मिला, जिन्होंने राव से तुरंत मिलने का समय मांगा था। राव जब चंद्रा से मिलने पहुचे, तो उनके साथ वित्त सचिव और कई और अफसर फाइलों के साथ मौजूद थे। वित्त सचिव ने करीब 90 मिनट तक देश के होने वाले पीएम के सामने प्रेजेंटेशन दी। कहा जाता है कि यह वही 90 मिनट थे, जिन्होंने 1991 में ही अर्थव्यवस्था खोलने के नरसिम्हा राव के ऐतिहासिक फैसले की राह खोली। चौंकाने वाली बात यह है कि जब राव अधिकारियों के साथ इस मीटिंग में थे, तब कांग्रेस के कई बड़े नेता उन्हें बधाई देने के लिए उनके तीन मूर्ति स्थित घर में उनका इंतजार ही करते रह गए।

मीटिंग में किस संकट का अधिकारियों ने किया जिक्र?: कैबिनेट और वित्त सचिव की इस बैठक में राव को बताया गया था कि देश का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व यानी विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 2500 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। इससे महज तीन महीने के आयात ही किए जा सकते हैं। बताया जाता है कि इस स्थिति से निपटने के लिए वित्त मंत्रालय को स्टेट बैंक में पड़ा जब्त किया हुआ 47 टन सोना गिरवी रखना पड़ा। तब रेटिंग एजेंसियों ने भारत की अर्थव्यवस्था की रेटिंग को ‘खतरनाक’ के स्तर तक गिरा दिया था। इस दौरान बाहरी कर्ज जीडीपी के 22 फीसदी तक पहुंच गया, जबकि आंतरिक सार्वजनिक कर्ज भी 56 फीसदी हो गया था।

राजनीतिक आशंकाओं के बीच अधिकारियों ने राव को बताया कि उन्होंने वॉशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ 20 महीने की अवधि के लिए 23 लाख डॉलर का स्टैंडबाई लोन हासिल करने की बातचीत शुरू कर दी है। इस लोन के लिए आईएमएफ ने कई कठिन लिखित और अलिखित शर्तें रखी थीं। इसे लेकर कैबिनेट सचिव ने नरसिम्हा राव से साफ कर दिया था कि आगे का कोई भी फैसला राजनीतिक नेतृत्व को लेना है।

चौंकाने वाली बात यह है कि तब पीएम पद की शपथ भी न ले पाए नरसिम्हा राव ने अधिकारियों से साफ कर दिया कि वे आईएमएफ से बातचीत के साथ आगे बढ़ें। इसके लिए राव ने नरेश चंद्रा के साथ अलग से 10 मिनट बैठक भी की। उधर तीन मूर्ति लेन स्थित अपने आवास लौटने के बाद राव ने सभी चाहने वालों का शुक्रिया अदा किया और लगभग तुरंत ही अर्जुन सिंह, प्रणब मुखर्जी और एमएल फोटेदार जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की। किसी भी नेता को उनके आईएमएफ से बातचीत के फैसले की भनक नहीं थी। जिस दौरान यह चर्चा जारी थी, उस वक्त पीसी एलेक्जेंडर ने आईजी पटेल को वित्त मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया। हालांकि, पटेल ने अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

जब मनमोहन सिंह ने गंभीरता से नहीं लिया वित्त मंत्री का प्रस्ताव: एलेक्जेंडर ने इसके बाद मनमोहन सिंह को फोन लगाया, जिन्होंने प्रस्ताव को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि, जब नरसिम्हा राव ने खुद उनसे वित्त मंत्री बनने का आग्रह किया, तो मनमोहन सिंह ने इसे स्वीकार कर लिया। बताया जाता है कि इसके चलते मनमोहन सिंह को अपने दोस्तों के साथ डिनर को रद्द करना पड़ा था। बाद में राव ने मीटिंग में मनमोहन सिंह को अर्थव्यवस्था संभालने की पूरी आजाद दी। नरसिम्हा राव के एक करीबी साथी (दिवंगत नेता) देवेंद्र द्विवेदी ने खुलासा किया था कि अशोका हॉल में शपथ लेने के बाद मनमोहन सिंह ने राव को एक नोट दिया था। इसमें सुझाव दिया गया था कि सुधार से जुड़े मुद्दे कैबिनेट बैठक में न रखे जाएं, क्योंकि उनके साथी इन सुधारों को रोक सकते हैं। इसके अलावा आईएमएफ की कंडीशन को पूरा करने के चरणबद्ध तरीके भी नोट में ही दिए गए थे।