सूखे की मार, फसल चौपट और मनरेगा में काम नहीं है। इन हालातों ने बुंदेलखंड के किसान को मजबूरी में मजदूर बना दिया है। बुंदेलखंड के कई किसान दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, गुजरात आदि राज्यों में पलायन कर चुके हैं। ग्रामीण अंचलों में घरों में लटके ताले यहां की भयावह स्थिति दर्शाते हैं। अनुमान के मुताबिक पलायन का आंकडा 25 लाख को पार कर चुका है। मनरेगा से पलायन रोकने का दम भरा जा रहा हो, पर यह कागजों और आंकड़ों की खानापूर्ति से ही सरकार की स्वयं पीठ थपथपाने जैसा है। अन्नदाताओं की यह दुदर्शा उस मध्य प्रदेश की है जिसे किसानों की दम पर ही लगातार चौथी बार कर्मण अर्वाड से नवाजा गया है।

लगातार सूखे को झेल रहे बुंदेलखंड के किसानों के नसीब में शायद अच्छे दिनों का लेख नहीं है। प्रकृति नाराज है तो सरकार मदद के कागजी घोडेÞ दौड़ा रही है। फसल खराब होती रही और किसान सरकार की ओर मुआवजा पाने के लिए मुंह ताकता रहा। किसानों को मुआवजा भी वितरित हुआ, पर इसकी आड़ में सरकारी तंत्र का एक ओर घोटाला भी सामने आता रहा। इससे आत्महत्याओं का दौर शुरू हो गया। फसल खराब, पानी की कमी और सरकार से उम्मीद नहीं होने के चलते बुंदेलखंड का किसान मजबूरी में मजदूर बन गया है। खजुराहो, महोबा, हरपालपुर, दमोह रेलवे स्टेशनों से महानगरों की ओर जाने वाली ट्रेनें इन दिनों पलायन करने वाले मजदूरों से ठसाठस देखी जा सकती हैं। पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ से करीब तीन दर्जन बसें प्रतिदिन सीधे दिल्ली, गुडगांव के लिए संचालित हैं। यह बसें केवल पलायन करने वालों के दम पर ही चल रही हैं।

एक आकलन के मुताबिक बुंदेलखंड से पलायन करने वालों का आंकड़ा 25 लाख को पार कर चुका है। सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्रिमंडल की आंतरिक कमेटी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार छतरपुर से लगभग आठ लाख, टीकमगढ़ से पांच लाख, सागर से 8.5 लाख, पन्ना से 2.5 लाख और दतिया से करीब 3 लाख लोग पलायन कर चुके हैं। हालात यह है कि कई गांवों में केवल बुर्जुग ही घरों में बचे हैं। दरअसल मनरेगा ने भी लोगों को बेसहारा कर रखा है। इस कारण हालात ओर अधिक बदतर हो चुके हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के वित्त वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार बुंदेलखंड के छह जिलों सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ, छतरपुर और दतिया जिलो में मनरेगा के तहत महज 25 प्रतिशत काम ही पूरा हो सका है।

आंकड़े बताते हैं कि सरकार मजदूरों को 100 दिन का रोजगार भी नहीं दे सकी है। इस वर्ष दौरान पन्ना में 3620 और दमोह में 8620 काम शुरू किए गए थे। मगर पन्ना में 74 और दमोह में 627 काम ही पूरे हो सके हैं। यही हाल बुंदेलखंड के अन्य जिलों का रहा। टीकमगढ़ में 27.3, छतरपुर 12.48, सागर 17.59 और दतिया में 25.1 प्रतिशत कार्य ही पूरे हो सके हैं।

सरकारी तंत्र का खेल भी निराला है। मनरेगा के तहत जिन लोगों ने काम किया, वे भी मजदूरी पाने के लिए भटक रहे हैं। सागर जिले में मार्च तक मजदूरी और मटेरियल का 23 करोड़ रुपए बकाया था। सूखे के दौर में मजदूरों को रोजगार देने वाली मनरेगा योजना के प्रति सरकार की गंभीरता को यह आंकड़े बताते हैं। फसलों की बर्बादी के बाद किसानों को स्थानीय रोजगार के साधनों की तलाश थी। मनरेगा के प्रति सरकारी संवेदनहीनता की कमी दिखी। यह अन्नदाता की मजबूरी ही है कि उसे मजबूर होकर न सिर्फ मजदूर बनना पड़ा बल्कि उसे अपना घर छोड़ कर परदेशी होना पड़ रहा है।