2019 Lok Sabha Election: आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए भीतरघात से निपटना बड़ी चुनौती साबित होगा। उत्तर प्रदेश के आगरा डिविजन में पार्टी कार्यकर्ताओं में कुछ ज्यादा ही असंतोष देखा जा रहा है। बता दें कि आगरा डिविजन में मथुरा, आगरा और फतेहपुर लोकसभा सीट आती है। मथुरा से भाजपा ने एक बार फिर मौजूदा सांसद हेमामालिनी को ही टिकट दिया है। हालांकि हेमामालिनी के नाम को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखी जा रही है। सोमवार को हेमामालिनी ने मथुरा सीट से अपना पर्चा दाखिल किया। पर्चा दाखिल करने के बाद हेमामालिनी ने सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ एक जनसभा को संबोधित भी किया। लेकिन हैरानी की बात ये रही कि सीएम योगी की मौजूदगी के बावजूद जनसभा की काफी कुर्सियां खाली रहीं। जिन्हें देखकर मथुरा में पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी को साफ तौर से समझा जा सकता है। वहीं सपा-बसपा और रालोद के गठबंधन के बाद मथुरा सीट रालोद के खाते में गई है। गठबंधन को देखते हुए मथुरा सीट भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। अब यहां पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी ने पार्टी नेतृत्व की चिंता और बढ़ा दी है।
आगरा और फतेहपुर सीकरी में भी पार्टी को भीतरघात से जूझना पड़ सकता है। दरअसल आगरा से भाजपा ने मौजूदा सांसद और पार्टी के दलित चेहरे राम शंकर कठेरिया का टिकट काट दिया है उनकी जगह पर उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री एसपी सिंह बघेल को चुनाव मैदान में उतारा गया है। एसपी सिंह बघेल का मुकाबला बीएसपी के मनोज सोनी और कांग्रेस की प्रीता हरित के साथ होगा। राम शंकर कठेरिया को भाजपा ने इटावा (सुरक्षित) सीट से टिकट दिया है। हालांकि राम शंकर कठेरिया ने अपने एक बयान में कहा है कि ‘पार्टी के इस फैसले से दलित समुदाय को ठेस पहुंची है।’ बता दें कि राम शंकर कठेरिया आरएसएस से जुड़े रहे हैं और पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं। राम शंकर कठेरिया एससी/एसटी आयोग के अध्यक्ष भी हैं।
फतेहपुर सीकरी की बात करें तो यहां भाजपा ने राजकुमार चाहर को टिकट दिया है। राजकुमार चाहर फतेहपुर सीकरी से 3 बार अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन एक बार भी उन्हें जीत नसीब नहीं हुई है। साल 2002 में चाहर ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। वहीं साल 2007 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों ही दफा राजकुमार चाहर को हार का सामना करना पड़ा। साल 2012 में भाजपा ने चाहर को फतेहपुर सीकरी विधानसभा से टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय चुनाव लड़े और एक बार फिर हार गए। अब भाजपा ने लोकसभा के लिए चाहर पर दांव खेला है, देखने वाली बात होगी कि क्या इस बार चाहर जीत दर्ज करने में सफल होते हैं या नहीं?
