प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साल 2018-19 के बजट से किसानों के लिए आधुनिक बाजारों की एक श्रृंखला तैयार करने के लिए 2000 करोड़ रुपए आवंटित किए। एक रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि किसानों के लिए आवंटित राशि का एक बड़ा हिस्सा खर्च नहीं किया जा सका। सरकार ने जो राशि जारी कि उससे बाजार (मुख्य रूप से ग्रामीण स्तर के बाजार), कृषि उपज के लिए किसान के लिए जरूरी चीजों का एक प्वाइंट बनाया जाना था, जहां किसान और व्यापारी न्यूनतम नियमों के साथ स्वतंत्र रूप से लेन-देन कर सकें। इस व्यवस्था का उद्देश्य मौजूदा आपूर्ति श्रृंखलाओं का एक विकल्प बनाना भी था, ताकि बिचौलियों द्वारा धांधली रोकी जा सके और किसानों को लाभ हो सके।

अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स को मिले डेटा के मुताबिक सरकार द्वारा राशि आवंटित किए जाने के करीब दो साल बाद महज 10.45 करोड़ रुपए या 0.5 फीसदी राशि का इस्तेमाल किया गया है। यह राशि प्रस्तावित 22,000 बाजारों में से 376 को विकसित करने पर खर्च की गई है। हालांकि इनमें कोई भी सुविधा इस्तेमाल के लिए तैयार नहीं हो पाई है।

उल्लेखनीय है कि सरकार ने यूनियन बजट से 2000 करोड़ रुपए की राशि कृषि-बाजार अवसंरचना कोष (Agri-Market Infrastructure Fund) के तहत जारी की। कार्यक्रम के तहत नए विकसित बाजारों को ग्रामीण कृषि बाजार या GRAMS के रूप में जाना जाता। विशेषज्ञों का कहना है कि कृषि क्षेत्र में सुधार की एक और कोशिश सस्याओं का सामना कर रही है।

तमिलनाडु एग्रीकल्चरल युनिवर्सिटी (TAU) में अर्थशास्त्री केएस मणि कहते हैं, ‘कृषि बाजार में सुधार के प्रयास खंडहर रहे हैं और इसलिए संतोषजनक परिणाम नहीं आए। इसका एक उदाहरण यह है कि मॉडल कृषि उपज बाजार समिति अधिनियम 2003 को सभी राज्यों द्वारा सार्वभौमिक रूप से अपनाया नहीं गया है। व्यापारियों और कमीशन एजेंटों के साथ-साथ स्थानीय रूप से प्रभावशाली लोगों को अक्सर मंडियों पर कड़ा नियंत्रण रखने में निहित स्वार्थ होता है।’