देश की राजधानी दिल्ली के लिए आज का दिन काफी खास है। इसकी वजह ये है कि आज ही के दिन यानी 11 दिसंबर की मध्य रात 12:01 मिनट पर दिल्ली को देश की राजधानी घोषित किया गया। इससे पहले भारत की राजधानी कलकत्ता हुआ करती थी। इस खास कार्यक्रम के लिए खास आयोजन भी किया गया था। उस समय के तत्कालीन ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक दरबार में बकायदा इसकी घोषणा की गई थी। यह कार्यक्रम दिल्ली के बुराड़ी स्थित कोरोनेशन पार्क में आयोजित था। हालांकि अंग्रेज के आने से पहले दिल्ली मुगल काल में राजधानी रह चुकी थी।
दरअसल दिल्ली के राजधानी बनने से पहले भारत की दो राजधानी थी। एक तो कलकत्ता और दूसरी ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला। इस वजह से अंग्रेज कहीं ऐसी जगह पर भारत की राजधानी बनाना चाहते थे जिससे पूरे भारत में आना जाना आसान रहे। साथ ही शिमला के अलावा कहीं पूरी तरह से राजधानी का निर्माण किया जा सके। चूंकि दिल्ली शिमला से नजदीक था। इस वजह से शीतकालीन राजधानी के रूप में दिल्ली का चुनाव किया गया।
इस वजह से लुटियंस को बनाई गई देश की राजधानी
दिल्ली के चुनाव के बाद अंग्रेजों ने लुटियंस को तय नहीं किया था। अंग्रेजों की पहली पसंद पूर्वी दिल्ली के इलाके में राजधानी का विकास करना था। लेकिन बार-बार बाढ़ की चपेट में आने से अंग्रेजों ने जल्दी ही इस इलाके से विचार छोड़ दिया। इसके बाद यमुना किनारे बुराड़ी और उसके आसपास के इलाकों लेकर भी बातचीत शुरू हुई।
‘पटपड़गंज को भी IAS की फैक्ट्री कहा जाएगा’, अवध ओझा बोले- जहां महाभारत, वहां चुनौतियां
हालांकि जल्दी ही उसे भी खारिज कर दिया गया। अंत में तय हुआ कि दक्षिणी इलाके में स्थित पहाड़ी पश्चिम में रोहिला सराय तक जाती है। जो पूरी तरह से पहाड़ी इलाका था। जहां भवन निर्माण के लिए बहुत जगह था। समिति ने इस स्थल का चयन इसकी भौतिक स्वच्छता, कलात्मक सौन्दर्य के आधार पर किया।
कुछ इस तरह हुआ राजधानी का विकास
राजधानी घोषित होने के कुछ समय बाद 1912 में दिल्ली नगर योजना समिति की स्थापना की गई। इस समिति को राजधानी के लिए बनने वाले प्रमुख इमारतों जैसे वाइसराय भवन, सचिवालय समेत नए शहर के हिसाब से उससे जुड़े तमाम संरचनात्मक भवनों की डिजाइन और उसे बनाने का काम सौंपा गया। जिसके बाद लुटियंस को राजधानी का चीफ डिजाइनर और उनके साथ बेकर को उनका सहायक बनाया गया।
