राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर सबसे पहले मन में क्या विचार आता है, यही कि यह एक हिंदूवादी संगठन है, हिंदुत्व की विचारधारा आगे बढ़ाना ही इसका इकलौता मकसद है। लेकिन जिस विचारधारा के साथ संघ का जन्म हुआ था, समय के साथ और बदलते समीकरणों ने उसमें बदलाव ला दिया। आज का RSS हिंदू राष्ट्र तो चाहता है…. लेकिन वो मुसलमानों को भी साथ लेकर चलना चाहता है… RSS मुस्लिमों के बारे में क्या सोचता है… क्या संघ के हिंदू राष्ट्र में मुसलमानों के लिए कोई जगह है? मुस्लिमों को लेकर हेडगेवार, गोलवलकर और मोहन भागवत के विचारों में क्या अंतर है?

अब इन सवालों के जवाब मिलेंगे, लेकिन सबसे पहले जानते हैं कि संघ के संस्थापक हेडगेवार ने RSS की शुरुआत क्यों की थी, इसी जवाब में मुस्लिमों को लेकर उनकी नीति भी समझ आती है। असल में 1919 में पहला विश्व युद्ध खत्म हो चुका था। ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य का खात्मा कर तुर्की की सबसे बड़ी इस्लामिक राजशाही को सत्ता से बेदखल कर दिया था। इसके विरोध में भारत में भी खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ। महात्मा गांधी ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया। उन्हें लगा कि इस आंदोलन के जरिए हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया जाएगा।

हेडगेवार तब कांग्रेस के ही एक कार्यकर्ता हुआ करते थे। उन्हें गांधी के ये विचार पसंद नहीं थे। वे खिलाफत आंदोलन को देश के खिलाफ मानते थे। सीपी भिशीकर की किताब ‘केशव: संघ निर्माता’ में हेडगेवार के मतभेदों के बारे में खुलकर लिखा गया है। हेडगेवार ने गांधी के सामने कहा था- खिलाफत आंदोलन के दौरान हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई का नारा जरूर गूंज रहा हो। लेकिन मुसलमानों ने ये साबित कर दिया है कि उनके लिए देश से पहले उनका मजहब आता है।

हेडगेवार तो मुसलमानों की तुलना यमन सर्प से भी करते थे। असल में राष्ट्र विरोधी विदेशियों के लिए इस शब्द का इस्तेमाल होता था। इसके ऊपर कांग्रेस में रहते हुए वे कांग्रेस की तुष्टीकरण वाली राजनीति से परेशान हो चुके थे। उन्हें लगने लगा था कि कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम हित की बात कर रही थी, हिंदुओं पर जब भी हिंसा होती, वो मौन साध लेती। यह बताने के लिए काफी है कि जब RSS की 1925 में स्थापना हुई, तब मुस्लिमों को लेकर उनका रवैया खासा सख्त था।

अब हेडगेवार के मुस्लिमों को लेकर अपने विचार थे। लेकिन उनसे भी ज्यादा सख्त, उनसे भी ज्यादा तीखे हमले करने वाले शख्स थे- माधवराव सदाशिव गोलवलकर। उन्होंने अपनी किताब Bunch of Thoughts में मुस्लिमों की नीयत को लेकर एक बड़ी बात बोली थी। उनके मुताबिक भारत का पिछले 1200 साल से धर्म युद्ध का इतिहास रहा है। वहां भी हिंदुओं को खत्म करने की कोशिश हुई है। जब मुस्लिमों ने इस धरती पर कदम रखा, वे सिर्फ धर्मांतरण करना चाहते थे, वे देश को अपना गुलाम बनाना चाहते थे।

पत्रकार खुशवंत सिंह ने भी 1972 में गोलवलकर का इंटरव्यू किया था। उसका जिक्र उनकी किताब ‘Me, the Jokerman: Enthusiasms, Rants and Obsessions’ में मिलता है। जब मुस्लिमों को लेकर गोलवलकर से सवाल हुआ, उन्होंने थोड़ा नरम रुख अपनाते हुए कहा कि मुसलमान जो कुछ करते हैं, उससे कभी-कभी गुस्सा आता है, लेकिन हिंदू-रक्त ऐसा है कि उसमें दुर्भाव लंबे समय तक नहीं रहता। समय में घावों को भरने की महान क्षमता है। में आशावादी हूं और मुझे लगता है कि हिंदुत्व और इस्लाम एक-दूसरे के साथ रहना सीख लेंगे।

अब गोलवलकर आशावादी थे, वे हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करने लगे थे। लेकिन मुसलमानों का पहली बार खुलकर स्वागत बाला साहब देवरस ने किया था। बात 1977 की है, तब देवरस संघ प्रमुख थे… वे संघ की प्रतिनिधि सभा को संबोधित कर रहे थे। सामने से एक सवाल पूछा गया- क्या मुसलमानों को भी RSS में शामिल किया जा सकता है? इसके जवाब में बाला साहब देवरस ने कहा था- सैद्धांतिक रूप से हमारी पूजा-पाठ अलग हो सकती है, लेकिन यह मानना चाहिए कि मुसलमान भी राष्ट्र जीवन में समान रूप समरस हो सकते हैं। हमे नया RSS बनाना चाहिए, मुसलमानों के लिए दरवाजे खोलने चाहिए।

इसके दो साल बाद ही 1979 में मुस्लिमों को संघ के साथ जोड़ने का काम शुरू हो गया था। वॉल्टर एंडरसन की किताब के मुताबिक आज तो कई मुस्लिम छात्र उन स्कूलों में पढ़ रहे हैं। जिनका संचालन RSS कर रही है, संघ के स्वास्थ्य से जुड़े कई प्रोग्राम चल रहे हैं जिसका सीधा लाभ कई मुस्लिम परिवार भी ले रहे हैं। कुछ ऐसे भी मुसलमान हैं जिन्होंने संघ का तीन साल का ट्रेनिंग प्रोग्राम किया है और वे सभी फुल टाइम प्रचारक बन चुके हैं।

अब RSS के साथ मुस्लिम जुड़ रहे थे, लेकिन एक अलग विंग की दरकार बाकी थी। इस कमी को पूरा करने का काम मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने किया। ये कहने को संघ की कोई औपचारिक विंग नहीं है, लेकिन इसे पूरी तरह RSS से ही प्रेरित माना जाता है। अगर MRM की वेबसाइट का हम रुख करेंगे, वहां उसकी स्थापना के बारे में विस्तार से लिखा है। पता चलता है कि जब इस विंग की स्थापना हुई थी, समारोह में तब के संघ प्रमुख के सुदर्शन, संघ विचारक एमजी वैद्य, वरिष्ठ संघ नेता इंद्रेश कुमार शामिल हुए थे। वर्तमान में तो इंद्रेश कुमार ही MRM की कमान संभाल रहे हैं।ॉ

MRM अपने मिशन, अपने उदेश्य को लेकर स्पष्ट है। उसकी वेबसाइट पर लिखा है- हिंदू और मुस्लिमों के बीच में मतभेदों को कैसे कम किया जाए, किस तरह से नफरत की दीवार को तोड़ा जाए, यही राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का मिशन है। के सुदर्शन ने भी MRM की स्थापना के दौरान पूरे मुस्लिम समाज के लिए एक सवाल छोड़ दिया था- मुस्लिमों ने किस आधार पर खुद के लिए अल्पसंख्यक का दर्जा स्वीकार किया था। अगर वे मानते हैं कि वो भारत का हिस्सा हैं, अगर उनकी समान संस्कृति है, तो फिर अल्पसंख्यक का दर्जा क्यों?

वैसे RSS और MRM का रिश्ता भी खासा दिलचस्प है। कई मामलों में तो खुलकर संघ राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की तारीफ करता है। लेकिन जैसे ही कोई विवाद आता है, नाता तोड़ने में देर नहीं लगती। बात 2015 की है- MRM ने इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था। मेहमान के तौर पर बुलाए गए थे अब्दुल बासित, तब वे भारत के लिए पाकिस्तान के हाई कमिश्नर हुआ करते थे। लेकिन उनका आना विवाद का विषय बना। कुछ दिन पहले ही लश्कर के आतंकियो ने पंपोर में हमला किया था, 8 जवान शहीद हुए थे। पत्रकारों ने इफ्तार के दौरान इस हमले पर सवाल पूछ लिया और अब्दुल बासित ने बोला-PLEASE ENJOY THE IFTAR PARTY।

अब जवाब MRM के कार्यक्रम में दिया गया, लेकिन विरोधियों ने RSS को निशाने पर लिया। वैद्य को स्पष्टीकरण देना पड़ा- संघ और MRM अलग हैं… ये बोलना कि RSS ने इफ्तार स्पॉन्सर किया था गलत होगा। वैसे जानकारों के मुताबिक इन विवादों के बावजूद RSS ने अब मुस्लिमों को लेकर अपना रुख बदला है। मोहन भागवत ने एक नहीं कई ऐसे कई बयान दिए हैं जो बताने के लिए काफी है कि वे मुस्लिमों को भी साथ लाना चाहते हैं।

चार जुलाई 2021 को मोहन भागवत ने कहा था कि अगर कोई हिंदू कहता है कि मुसलमान यहां नहीं रह सकते तो वो हिंदू नहीं है। 6 सितंबर 2021 को उन्होंने बोला था- हिंदू और मुस्लिम एक ही वंश के हैं… हर भारतीय नागरिक हिंदू है। इसी तरह दो जून 2022 में भागवत ने ज्ञानवापी विवाद पर कहा था- हर मस्जिद में शिवलिंग को क्यों खोजना है, झगड़ा क्यों बढ़ाना है, मुस्लिमों के पूर्वज भी हिंदू ही हैं। अब ये सारे बयान बताते हैं कि RSS मुस्लिम समाज के भी करीब आने की कोशिश कर रहा है। वो चाहता है कि उसकी हिंदू राष्ट्र की जो परिकल्पना है। उसमें मुस्लिम भी शामिल हों। अब परिकल्पना RSS ने की है, प्रयास उसकी तरफ से हो रहे हैं, लेकिन सवाल वही है- मुस्लिम क्या सच में RSS के करीब आ पाए हैं?

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