प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जेहन में उत्तर प्रदेश के चुनाव हैं। तभी तो वे मछुआरों और जुलाहा समुदाय को रिझाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। दलितों के खिलाफ गौ-रक्षकों की हिंसा की घटनाओं के बाद वह डैमेज कंट्रोल मोड में हैं। इन घटनाओं से राज्य में भाजपा की संभावनाओं पर असर पड़ सकता था। गुजरात के उना में दलितों पर हुए हमले के बाद पैदा हुए विवाद पर मोदी ने यहां तक कह दिया कि ”मुझे गोली मार दो, मुझ पर हमला करो, मेरे दलित भाइयों पर नहीं।” उन्होंने जुलाहों के बारे में बात की, जो कि उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एक-चौथाई मतदाता हैं। उत्तर प्रदेश में 20 से 22 प्रतिशत दलित वोटर्स हैं। देश में तकरीबन 1.2 करोड़ जुलाहे बसते हैं जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम हैं और करीब 15 लाख घरों में हथकरघा चलता है। वे उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में फैले हुए हैं।
पिछले साल प्रधानमंत्री ने बनारस में बुनकरों की मदद के लिए ‘उस्ताद’ योजना लॉन्च की थी। 7 अगस्त को नेशनल हैंडलूम डे घोषित करने के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बुनकरों ने मोदी को धन्यवाद भी दिया था। हांलाकि समय-समय पर आलोचकों ने बुनकरों के लिए प्रधानमंत्री की ओर से की गई घोषणाओं पर सवाल उठाए हैं, मगर मोदी ने थीम बरकरार रखी है। रविवार को दूसरे राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस पर मोदी ने कहा कि यह क्षेत्र अनगिनत बुनकरों के लिए रोजगार का साधन है। इसलिए उन्होंने लोगों से ज्यादा हैंडलूम उत्पाद इस्तेमाल करने की अपील की। उससे एक दिन पहले, टाउन हॉल बैठक में ‘गौ-रक्षकों’ पर चुप्पी तोड़ने हुए भी पीएम ने हैंडलूम का जिक्र किया था।
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इस साल मई के पहले सप्ताह में, प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण निषाद समुदाय को लुभाने की कोशिश की। उन्होंने बनारस में गंगा पर तैरने के लिए असी घाट पर 11 सोलर पावर्ड ‘ई-बोट्स’ को लॉन्च किया। एक अनुमान के मुताबिक, राज्य में निषाद, बींद, मल्लाह और केवट करीब 4 प्रतिशत वोट बनते हैं। ये जातियां आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों में आती हैं। अपने भावनात्मक भाषण में मोदी ने निषाद समुदाय से कहा था कि उन्होंने देश में जीपीएस सिस्टम को शुरू करने के लिए लॉन्च किए गए सातों सेटेलाइट्स का नाम नाविक रखा है, इससे समुदाय अमर हो जाएगा।
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हालांकि प्रधानमंत्री दलितों के गुस्से को काउंटर करने के लिए कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गए हैं, इसपर शक है कि क्या जो नुकसान भाजपा को हुआ है, उसकी भरपाई की जा सकेगी?