आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र में समय से पहले हुई बारिश ने खरीफ की बुवाई के साथ-साथ ‘हीरा खोज’ की परंपरा को भी फिर से सुर्खियों में ला दिया है, जहां कुरनूल और अनंतपुर जिलों के गांवों में किसान और स्थानीय लोग हीरे जैसे बहुमूल्य रत्नों की तलाश में जुट गए हैं। जोनगिरी, तुग्गली और पेरेवाली मंडलों की वर्षा से भीगी भूमि पहले भी हीरा खोज के लिए प्रसिद्ध रही है, और अब भी किस्मत आजमाने वालों को आकर्षित कर रही है।
तेलंगाना के महबूबनगर निवासी व्यवसायी भरत पलोड़ ने एजंसी से कहा कि एक साधारण पत्थर भी आपकी किस्मत बदल सकता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने 2018 में अपना पहला हीरा खोजा था और इस वर्ष एक हीरा आठ लाख रुपए में बेचा है। सामाजिक कार्यकर्ता दीपिका दुशकांति ने बताया कि उन्होंने पहले पांच लाख रुपए में हीरा बेचकर गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाया था, और इसी तरह इस साल मिले 10 लाख रुपए का भी शिक्षा के लिए उपयोग करेंगी।
हीरे मिलने की कहानियां लंबे समय से प्रचलित
पुरातत्त्व शास्त्र के छात्र नमन ने कहा कि मैं तेलगु इतिहास का अध्ययन करने आया था, लेकिन जो पत्थर मिले हैं, वे न सिर्फ मेरी पढ़ाई का खर्च उठाएंगे, बल्कि शोध में भी सहायक होंगे।’ चित्तूर की एक किसान गोदावरीअम्मा ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर हीरे मिलने के वीडियो देखने के बाद जोनगिरी आकर किस्मत आजमाने का निर्णय लिया। मैं देर से आई लेकिन मेरी खोज जारी रहेगी। अगर कुछ मिला, तो मेरे परिवार की जरूरतें पूरी हो जाएंगी।
कुरनूल रेंज के डीआइजी कोया प्रवीण ने कहा कि इलाके में हीरे मिलने की कहानियां लंबे समय से प्रचलित हैं और लोग काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं, लेकिन मानसून आते ही वापस लौटकर हीरे की तलाश में जुट जाते हैं। अब तक कोई बड़ी आपराधिक घटना सामने नहीं आई है, हालांकि कुछ ग्रामीण बाहरी लोगों के प्रवेश का विरोध करते हैं। इस वर्ष हीरे मिलने की खबरें इलाके में उत्साह का कारण बनी हैं।
बताया जाता है कि पेरेवाली गांव के खेतिहर मजदूर वेंकटेश्वर रेड्डी ने 15 लाख रुपए में हीरा बेचा। अनंतपुर के एक जमींदार पी बजरंगलाल ने कहा कि उनके 40 एकड़ के खेत में लोग हीरे खोजते हैं और वे उन्हें पानी तथा भोजन तक मुहैया कराते हैं। कुरनूल जिले के मड्डिकेरा मंडल के किसान श्रीनिवासुलु द्वारा दो करोड़ रुपए का दुर्लभ हीरा बेचने की खबर ने क्षेत्र में सुर्खियां बटोरीं। तुग्गली मंडल के लोअर चिंतलकोंडा गांव की महिला किसान प्रसन्ना ने खेत जोतते समय एक चमकीला पत्थर पाया, जिसे उन्होंने 13.5 लाख रुपए में बेचा।
क्षेत्र की हीरा परंपरा मानी जाती है ऐतिहासिक
बरसात के मौसम में जोनगिरी, पगिदिराई, एर्रागुड़ी और उप्परलपल्ली जैसे क्षेत्रों में जब काली मिट्टी से ढके खेतों की परतें खुलती हैं, तो हीरे उजागर हो जाते हैं । यही वह समय है जब सबसे अधिक ‘हीरा खोज’ होती है। कुछ को ही सफलता मिलती है, और अधिकतर ग्रामीण कई दिन की खुदाई के बाद खाली हाथ लौटते हैं, फिर भी कभी-कभी मिलने वाला ‘जैकपाट’ हजारों लोगों को हर साल अपनी किस्मत आजमाने के लिए प्रेरित करता है।
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स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि अक्सर स्थानीय व्यापारी या जौहरी हीरों को सस्ते दामों पर खरीदते हैं, और कभी गुणवत्ता पर सवाल उठाकर, तो कभी कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर दाम घटा देते हैं। हाल के वर्षों में कुछ लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए या सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से बेहतर कीमतें पाने की कोशिश की है। प्रशासन इस व्यापार को औपचारिक रूप से नियंत्रित नहीं करता, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार को हस्तक्षेप कर उचित मूल्य तय करना चाहिए। श्रीनिवासुलु ने सवाल उठाया कि जब कृषि उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जा सकता है, तो हीरों का क्यों नहीं?। इस क्षेत्र की हीरा परंपरा ऐतिहासिक मानी जाती है।