International Women’s Day 2025: देश और दुनिया में आज यानी आठ मार्च को महिला दिवस को सेलिब्रेट किया जा रहा है। इस दिन महिलाओं के योगदान, उनकी त्याग और साहस के साथ-साथ समाज, सियासत और आर्थिक क्षेत्र में उनकी तरक्की के जश्न के तौर पर भी सेलिब्रेट किया जाता है। भारतीय संस्कृति में नारी को देवी का रूप कहा जाता है। आज से नहीं बल्कि सदियों से भारत में महिलाओं की पूजा की जाती है।
आजादी की लड़ाई में महिलाओं की भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। महिला दिवस के मौके पर आज हम आपको देश की उन पांच सबसे वीर महिलाओं के बारे में बताएंगे, जो आजादी की लड़ाई में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती थीं। कई महिलाओं ने तो आजादी के बाद अपने नेतृत्व कौशल और दूरदर्शिता से भारतीय राजनीति में अपनी नई पहचान बनाई।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ ये कविता तो आप ने बचपन में पढ़ी ही होगी। आज भी यह कविता रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की गाथा बयां करने के लिए उतनी ही प्रासंगिक है। झांसी की रानी की नाम से प्रसिद्ध रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई ने साल 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए भारतीय विद्रोह में अहम भूमिका निभाई थीं। आज भी उन्हें भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
सरोजिनी नायडू
‘भारत कोकिला’ के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने खिलाफत आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाया था। सरोजिनी नायडू साल 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं।
कस्तूरबा गांधी
महात्मा गांधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी भी आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्होंने भी चंपारण सत्याग्रह में हिस्सा लिया। वह कई बार जेल भी गईं। आजादी की लड़ाई जब महात्मा गांधी लड़ रहे थे उसी दौरान कस्तूरबा गांधी ने काफी साथ दिया और सत्याग्रह, समर्पण और उनके त्याग में साथ निभाया।
कमला नेहरू
जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू ने भी स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाया। कमला नेहरू स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई सभाओं को संबोधित करती थीं। और शराब और विदेशी कपड़े की दुकानों के सामने भी प्रदर्शन करती थीं। कई बार तो उन्हें जुलूस निकालने और आंदोलन करने के लिए जेल जाना पड़ा। उन्होंने संयुक्त प्रांत में नो टैक्स अभियान को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विजया लक्ष्मी पंडित
विजया लक्ष्मी पंडित मोतीलाल नेहरू की पुत्री थीं, जो बाद में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष भी बनीं। विजया लक्ष्मी पंडित ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ने में अहम योगदान निभाया। असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक कई आंदोलनों में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया और कई बार तो उन्हें जेल भी जाना पड़ा। हालांकि, आजाद भारत में उन्होंने विदेशों में कई बार भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। आगे पढ़िएः अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? यहां जान लें क्या है इसके पीछे का पूरा इतिहास