4 अक्टूबर 1992। समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के एक ऐलान ने गुलाबी ठंड का स्वागत कर रहे उत्तर प्रदेश की सियासत में गर्माहट ला दी थी। तमाम उठापटक के बीच मुलायम ने अपनी अलग पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया और इसे नाम दिया ‘समाजवादी पार्टी’। मंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि में बनी पार्टी ने महीने भर बाद 4 नवंबर 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में अपना पहला कन्वेंशन आयोजित किया गया। इसमें मुलायम को निर्विरोध पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया।
मुलायम के अलावा जनेश्वर मिश्रा नवगठित पार्टी के उपाध्यक्ष और कपिल देव सिंह व आजम खान महासचिव चुने गए। हालांकि तब मुलायम के दाहिने हाथ बेनी प्रसाद वर्मा ने किसी कारणवश कन्वेंशन में शामिल होने से इनकार कर दिया था।
अखिलेश को अखबार से मिली जानकारी: उस वक्त मुलायम के बेटे अखिलेश यादव लखनऊ से सैकड़ों किलोमीटर दूर मैसूर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। तब उनकी दूर-दूर तक सियासत में कोई दिलचस्पी नहीं थी। अखिलेश की जीवनी ‘विंड्स ऑफ चेंज’ में वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरोन लिखती हैं कि युवा अखिलेश को डेक्कन हेराल्ड न्यूजपेपर के जरिए पता चला कि उनके पिता मुलायम सिंह ने नई पार्टी गठित कर ली है। उस दिन अखबार ने एक कार्टून भी छापा था, जिसमें मुलायम एक नाव में बैठे और इसे खेते नजर आ रहे थे।
रविवार को अखिलेश के कॉलेज पहुंच गए मुलायम:
अखिलेश जब मैसूर में पढ़ रहे थे तब वहां किसी को भी अपनी पहचान या दिग्गज राजनेता मुलायम का बेटा होने का जिक्र नहीं किया था। उनके आई कार्ड पर लिखा था- अखिलेश यादव और पिता का नाम एम एस यादव। एक बार मुलायम एक कांफ्रेंस का उद्घाटन करने मैसूर पहुंचे। उस दिन रविवार था और कॉलेज बंद था। मुलायम ने बेटे अखिलेश से मुलाकात की इच्छा जाहिर की और सोचा इस बहाने जिस कॉलेज में टीपू पढ़ रहे हैं, उसका भी जायजा ले लिया जाए।
मुलायम के आग्रह पर प्रिंसिपल ने एक स्टाफ के साथ मिलकर उनके विजिट की व्यवस्था की। मुलायम ने कॉलेज का दौरा किया और अखिलेश के साथ लंच किया। अगले दिन स्थानीय अखबारों में यह खबर छपी। तब अखिलेश के तमाम साथियों और कॉलेज के स्टाफ को उनकी असली पहचान का पता लगा।