हर औरत के लिए मां बनना जिंदगी का सबसे खुबसूरत सपना होता है, लेकिन इस सपने के पूरा होने पर जिंदगी कई तरह से करवटें भी बदलती हैं। नौ महीने तक बच्चे को गर्भ में रखना और उसके बाद प्रसव पीड़ा पूरी जिंदगी को हिलाकर रख देती है।मां बनने के बाद बॉडी में बहुत सी चीजें नई-नई होने लगती है।
बच्चे को जन्म देने के बाद मां में कई तरह की भावनात्मक, फिजिकल और व्यावहारिक परिवर्तन भी आने लगते हैं। जब बच्चे के जन्म लेने के बाद फिजिकल, इमोशनल और व्यावहारिक परिवर्तन में जटिलताएं आने लगती है तो इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन या पीपीडी कहते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जिसमें नई बनी मां को पता नहीं होता है कि उसे क्या हुआ है लेकिन इससे कई तरह की समस्याएं पैदा होने लगती है।
कब होता है यह डिप्रेशन: मेंटल डिसोर्डर के लिए मैनुअल पुस्तिका डीएसएम-5 के मुताबिक पीपीडी डिप्रेशन से संबंधित बहुत बड़ी समस्या है जो आमतौर पर शिशु के जन्म लेने के लिए चार सप्ताह बाद सामने आती है। अधिकांश मां बच्चे के जन्म लेने के बाद बेबी ब्लू का अनुभव करती हैं। 10 में से एक मां को शिशु के जन्म के बाद बहुत तेज डिप्रेशन से गुजरना पड़ता है।
करीब 1000 में से एक महिला में जब यह कंडीशन बहुत ज्यादा हो जाए तो उसे पोस्टपार्टम साइकोसिस कहते हैं। हालांकि यह सुनने में अजीब लगेगा लेकिन यह भी सच है कि 10 में से एक पिता को शिशु के जन्म लेने के बाद डिप्रेशन से गुजरना पड़ता है। पिता को बच्चे के जन्म के एक साल के अंदर डिप्रेशन हो सकता है।
डिप्रेशन का कारण क्या है? पोस्टपार्टम डिप्रेशन आमतौर पर रासायनिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन के मिले जुले असर के कारण होता है। यह शिशु के जन्म लेने के बाद हो सकता है। रासायनिक परिवर्तन के तहत शरीर में कई तरह के हार्मोन में तब्दीली आती है। उसी तरह से नवजात आने के बाद सामाजिक परिवर्तन भी तय है और इन सबका असर मन पर पड़ता है जो मनोवैज्ञानिक परिवर्तन लाता है। हालांकि इसका वास्तविक कारण पता नहीं है।
लक्षण क्या है-शिशु के जन्म लेने के बाद अधिकांश महिलाओं में ये लक्षण दिखते हैं:
- सोने में दिक्कत
- भूख लगने में परिवर्तन
- बहुत ज्यादा थकान
- सेक्स या कामोत्तेजना में कमी
- जल्दी जल्दी मूड चेंज होना
अगर इन लक्षणों के साथ ये भी लक्षण आ जाए तो यह ज्यादा डिप्रेशन के संकेत हो सकते हैं
- शिशु के प्रति ज्यादा बॉन्डिंग महसूस न करना।
- हमेशा बिना किसी कारण चिल्लाते रहना।
- डिप्रेशन में रहना
- बहुत ज्यादा गुस्सा।
- सुख का अनुभव नहीं।
- निराश, हताशा, किसी चीज में मन न लगना।
इसका इलाज क्या है-
अलग-अलग तरह के पोस्टपार्टम डिप्रेशन के अलग-अलग इलाज है। यह डॉक्टर तय करता है कि आपको कौन सा डिप्रेशन है। एंटी-एंग्जाइटी और एंटीडिप्रेशन की दवाई से इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन डॉक्टर की सलाह से ही ऐसा करें। इसके लिए साइकोथेरेपी और पारिवारिक सपोर्ट से भी इसका निदान किया जा सकता है। मां के साथ मददगार व्यवहार उन्हें मदद पहुंचा सकता है।