मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने साल 2020 में बीजेपी का हाथ थाम लिया था। ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। लेकिन अचानक बीजेपी में आने के उनके फैसले ने सबको चौंका दिया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और सीएम की कुर्सी कमलनाथ से शिवराज सिंह चौहान के पास पहुंच गई थी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया लंबे समय से कांग्रेस से नाराज़ चल रहे थे। ये कोई पहली बार नहीं है जब सिंधिया परिवार की नाराज़गी की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ी थी। ज्योतिरादित्य की दादी और राजमाता विजयराजे सिंधिया के समय पर भी ऐसा ही हुआ था। विजयराजे की गिनती जनसंघ की दिग्गज नेताओं में होती थी। विजयराजे ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस के टिकट पर की थी। 1957 में विजयराजे ने कांग्रेस के टिकट पर शिवपुरी (गुना) लोकसभा सीट से चुनाव जीता था।

हालांकि बाद में विजयराजे ने अपनी पार्टी बदल ली थी। विजयराजे ने मध्य प्रदेश में जनसंघ के विधायकों की मदद से सरकार बनाने में अहम योगदान दिया था। साल 1967 में विजयराजे सिंधिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डी.पी मिश्रा की सरकार को गिराया था और जनसंघ के समर्थन से गोविंद नारायण सिंह को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था। विजयराजे ने शक्ति प्रदर्शन के साथ साबित कर दिया था कि वह जनसंघ के लिए राजनीतिक दृष्टिकोण से कितनी अहमियत रखती हैं।

प्रचार के बाद भी हारे ज्योतिरादित्य सिंधिया: धीरे-धीरे विजयराजे को पार्टी में कई अहम पदों की जिम्मेदारी दी गई। साल 1980 में बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में राजमाता विजयराजे सिंधिया का नाम भी शामिल है। यही वजह रही कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया ने भी जनसंघ के टिकट पर पहली चुनाव लड़ा था। जबकि वह ज्यादा दिनों तक जनसंघ के साथ नहीं रह सके और उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। माधव राव सिंधिया का 30 सितंबर 2001 को आकस्मिक निधन हो गया था। इसके बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य ने राजनीति में एंट्री की थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए सबसे मुश्किल दौर था साल 2019 का, जब उनके पूरे परिवार ने लोकसभा चुनाव में मेहनत की थी, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।